एनजेएसी विधेयक को चुनौति देने वाली याचिकाएं खारिज,कोर्ट ने कहा याचिका समय से पूर्व दाखिल

नई दिल्ली:उच्चतम न्यायालय ने 121वें संविधान संशोधन तथा एनजेएसी विधेयक को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है. इस मामले पर न्यायाधीश ए आर दवे की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि याचिकाएं समय से पूर्व आयी हैं. पीठ ने इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं को बाद के चरण में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 25, 2014 2:38 PM

नई दिल्ली:उच्चतम न्यायालय ने 121वें संविधान संशोधन तथा एनजेएसी विधेयक को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है. इस मामले पर न्यायाधीश ए आर दवे की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि याचिकाएं समय से पूर्व आयी हैं. पीठ ने इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं को बाद के चरण में न्यायालय से संपर्क करने की अनुमति दी.

उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति संबंधी कोलेजियम व्यवस्था के स्थान पर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के तहत नई व्यवस्था स्थापित करने के लिए लाए गए संविधान संशोधन विधेयक की संवैधानिक वैधता के मुद्दे पर इस चरण में हस्तक्षेप करने से आज इंकार कर दिया.

पीठ ने कहा, हमारा यह विचार है कि याचिकाएं समय से पूर्व आयी हैं. याचिकाकर्ताओं को अनुमति है कि वे बाद के चरण में इसी आधार पर न्यायालय से संपर्क कर सकते हैं. पीठ में न्यायाधीश जे चेलमेश्वर और न्यायाधीश ए के सीकरी भी शामिल हैं.

एनजेएसी विधेयक के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के लिए विशेष तौर पर हुई बैठक में पीठ ने करीब डेढ घंटे तक धैर्य के साथ बात को सुना लेकिन इस चरण में विधेयक के संबंध में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया.

एनजेएसी के संबंध में उठाए गए कदम को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय में चार जनहित याचिकाएं दाखिल की गयी हैं. संसद ने हाल ही में संपन्न बजट सत्र में उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए कोलेजियम व्यवस्था को समाप्त करने और इसके स्थान पर नई प्रणाली स्थापित करने को लेकर दो विधेयक पारित किए थे.

जनहित याचिकाएं पूर्व अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल बिश्वजीत भट्टाचार्य,अधिवक्ताओं आर के कपूर और मनोहर लाल शर्मा तथा उच्चतम न्यायालय के कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड ऐसोसिएशन की ओर से दाखिल की गयी हैं.

वकीलों ने अपनी याचिकाओं में कहा है कि संसद द्वारा पारित एनजेएसी विधेयक और 121वां संविधान संशोधन विधेयक असंवैधानिक हैं क्योंकि ये संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करते हैं.

उन्होंने कहा कि संविधान स्वयं न्यायपालिका को कार्यकारिणी से स्पष्ट रुप से अलग रखने को मान्यता देता है जो एक मजबूत न्यायिक व्यवस्था की प्रमुख ताकत है. कपूर ने शीर्ष अदालत से कहा, यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि संविधान के तहत राज्यों के नीति निर्देशक सिद्धांतों का अनुच्छेद 50 न केवल निचली न्यायपालिका पर लागू होता है बल्कि यह उच्च न्यायपालिका पर भी लागू होता है क्योंकि शक्तियों का बंटवारा और न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान की मूलभूत अचल विशेषताएं हैं.

भट्टाचार्य ने कहा कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में होने वाली हर नियुक्ति में उनका निर्णय लेना और एक अदालत से दूसरी अदालत में जजों के प्रत्येक तबादले में फैसला करने की व्यवस्था करने की भारत के प्रधान न्यायाधीश की शक्तियां दूसरे को देना ,न्यायपालिका की स्वतंत्रता और शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत के लिए विध्वंसकारी होगा जो कि भारतीय संविधान की दो मूलभूत विशेषताएं हैं.

लोकसभा द्वारा 121वें संविधान संशोधन विधेयक और एनजेएसी विधेयक को मंजूरी दिए जाने के एक दिन बाद राज्यसभा ने 14 अगस्त को इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया था.लोकसभा ने विपक्षी कांग्रेस द्वारा सुझाए गए एक महत्वपूर्ण संशोधन के साथ इसे पारित किया था. इस संशोधन को सरकार ने स्वीकार कर लिया था.

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