नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज उस जनहित याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया जिसमें सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट (सीसैट) को समाप्त करने समेत अन्य राहत की मांग की गई थी. अदालत ने कहा कि यह मुद्दा केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है.
न्यायमूर्ति बी डी अहमद और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की पीठ ने याचिका को वापस लिया हुआ मानकर खारिज कर दिया. हालांकि, अदालत ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग से कहा कि याचिका पर ज्ञापन के तौर पर विचार करे और जरुरत पडने पर फैसला करे.
पीठ ने कहा, इस तरह का ज्ञापन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के समक्ष दिया जाना है और अगर जरुरत पडे तो वह यूपीएससी के साथ विचार-विमर्श करेगी. वह इस पर विचार करने का प्रयास करेगी. पीठ ने इसके अलावा कहा कि शीर्ष अदालत पहले ही इस मुद्दे पर सुनवाई कर चुकी है और जिस राहत की प्रार्थना की गई है वह नहीं दी जा सकती क्योंकि प्रारंभिक परीक्षा पहले ही हो चुकी है.
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता विक्रमजीत सिंह रंगा से पूछा कि क्या उन्होंने सरकार को कोई ज्ञापन दिया है कि प्रश्न पत्र संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित सभी क्षेत्रीय भाषाओं में होने चाहिए. पीठ ने कहा, आपको वैसा करना चाहिए. यह सरकार का विषय है. यह उनके अधिकार क्षेत्र में आता है. यह एक नीतिगत फैसला है.