इतिहासकार प्रोफेसर बिपन चंद्र का निधन,एक युग का अंत
नयी दिल्ली:देश के प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर बिपिन चंद्र नहीं रहे. आज सुबह ही 86 वर्ष की उम्र में गुड़गांव स्थित घर में उनका निधन हो गया है. आधुनिक भारत के इतिहास के प्रमुख इतिहासकार रहे चंद्र ने आज सुबह 6 बजे अंतिम सांस ली.उनके शिष्य एवं जवाहरल लाल नेहरु विश्वविद्यालय के ऐेकेडमिक स्टाफ कॉलेज के […]
नयी दिल्ली:देश के प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर बिपिन चंद्र नहीं रहे. आज सुबह ही 86 वर्ष की उम्र में गुड़गांव स्थित घर में उनका निधन हो गया है.
आधुनिक भारत के इतिहास के प्रमुख इतिहासकार रहे चंद्र ने आज सुबह 6 बजे अंतिम सांस ली.उनके शिष्य एवं जवाहरल लाल नेहरु विश्वविद्यालय के ऐेकेडमिक स्टाफ कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राकेश बटब्याल ने यह जानकारी दी.
उन्होंने बताया, ‘‘बिपिन चंद्र का आज सुबह 6 बजे गुडगांव में उनके घर पर नींद में ही निधन हो गया.’’ उनका अंतिम संस्कार आज अपराह्न 3 बजे लोधी रोड स्थित श्मशान घाट में होगा.
डॉ. बटब्याल ने चंद्र को महान इतिहासकार करार देते हुए कहा, ‘‘आधुनिक भारत के इतिहास में उनका महत्वपूर्ण योगदान था. उन्होंने इतिहास और राष्ट्रवाद को एक नया मोड दिया.’’
उन्होंने कहा कि खालिस्तान आंदोलन के खिलाफ सबसे बडी आवाज बिपिन चंद्र ने उठाई थी और उन्होंने इसे हिन्दू तथा सिखों को बांटने वाली सांप्रदायिकता करार दिया था.
वर्ष 1928 में हिमाचल प्रदेश के कांगडा में जन्मे बिपिन चंद्र ने फार्मन क्रिश्चियन कॉलेज लाहौर, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी अमेरिका और दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की थी.
वह कई साल तक दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज में लेक्चरर और फिर रीडर रहे. इसके बाद उन्होंने जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय दिल्ली में प्रोफेसर के रूप में पढ़ाना शुरु किया. 1993 में वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सदस्य बने.
साल 2004 से 2012 तक नेशनल बुक ट्रस्ट दिल्ली के अध्यक्ष रहे बिपिन चंद्र को आधुनिक भारत के आर्थिक एवं राजनीतिक इतिहास में विशेषज्ञता हासिल थी.
बटब्याल ने कहा कि उनकी किताब ‘द राइज एंड ग्रोथ ऑफ इकनॉमिक नेशनलिज्म’ ने लोगों के सोचने के ढंग को बदल दिया था.
भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन में अग्रणी रहे बिपिन चंद्र ने ‘इंडिया आफ्टर इंडिपेंडेंस’ और ‘इंडियाज स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस’ जैसी कई मशहूर किताबें लिखीं.