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गैर जिम्मेवारी के कारण गर्त में जा रहा पाकिस्तान!

नयी दिल्‍ली : जब व्यक्ति, समाज, राष्ट्र अपने इतिहास से ही नफरत करने लगे और उस नफरत को ही वह अपने अस्तित्व का आधार मानने लगे तो उसके भविष्य की सहज कल्पना की जा सकती है. ईर्ष्या आज तक कभी तरक्की का आधार नहीं बनी है. पाकिस्तान जिसे अपना इतिहास बताता है, मानता है, उसकी […]

नयी दिल्‍ली : जब व्यक्ति, समाज, राष्ट्र अपने इतिहास से ही नफरत करने लगे और उस नफरत को ही वह अपने अस्तित्व का आधार मानने लगे तो उसके भविष्य की सहज कल्पना की जा सकती है. ईर्ष्या आज तक कभी तरक्की का आधार नहीं बनी है.

पाकिस्तान जिसे अपना इतिहास बताता है, मानता है, उसकी कुल आयु अभी 100 वर्ष भी नहीं हुई है. पाकिस्तान शब्द का जन्म 1930 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय में छात्र चौधरी रहमत अली के द्वारा हुआ. इससे पहले 1930 में शायर मुहम्मद इकबाल ने पश्चिमी प्रांतों को मिला कर एक अलग राष्ट्र बनाने की मांग की थी. अंतत: अपने स्वतंत्र अस्तित्व की जिद के कारण 14 अगस्त 1947 को एक राष्ट्र राज्य के रूप में पाकिस्तान का उदय हुआ.

अस्तित्व में आने के बाद से पाकिस्तान लगातार अनिश्चितताओं, सैन्‍य तानाशाही, राजनीतिक अराजकता व अतिवादी धार्मिक ताकतों से जूझता रहा है. इन चीजों से जूझते पाकिस्तान के अवाम का जीवन लगातार कठिन होता गया. आश्चर्यजनक यह कि ये अलग-अलग शक्तियां हमेशा यही बताती रहीं कि वे एक बेहतर पाकिस्तान बनाना चाहते हैं, लेकिन इन अतिवादियों की महत्वाकांक्षा ने पाकिस्तान की स्थिति दिन प्रतिदिन बदतर ही की.
पाकिस्तान के ताजा हालात पर वहां के अखबार दैनिक जंग ने अपनी चिंता प्रकट करते हुए लिखा है कि ज्यादातर देश चुनाव व्यवस्था से जुड़ी खामियों के बावजूद तरक्की की राह पर बढ़ रहे हैं, जबकि सभी संसाधनों से संपन्न मुसलिम देश मुश्किलों में घिरे हैं. मुसलिम देश के राजनेता अपने सियासी लक्ष्य और इरादों को हासिल करने के लिए अफरातफरी और हलचल पैदा करने वाले रास्ते चुनते हैं, जिससे देश मुश्किलों में घिरता है.
दरअसल पाकिस्तान की राजनीतिक बिरादरी को राष्ट्रीय राजनीतिक संस्कार नहीं मिला है. तभी तो देश को संकट में फंसते देख भी विरोधी नेता स्वहित में लगे रहते हैं. इस स्थिति को खुद पाकिस्तानी अखबार ही बयां करते हैं. वहां के अखबार आजकल ने एक कार्टून बनाया है, जिसमें दिखाया गया है कि नवाज शरीफ और उनके सहयोगी नदी में डूब रहे हैं और पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ एक टीले पर बैठ कर मुस्करा रहे हैं. पाकिस्तान से अलग भारत के राजनेता अपनी तमाम खामियों के साथ एक राष्ट्रीय राजनीतिक संस्कार रखते हैं, जिस कारण राष्ट्रीय संकट के दौरान तमाम मतभेदों को भुला कर वे एक हो जाते हैं.
पाकिस्तान के सरकारी टीवी चैनल पीटीवी पर राष्ट्रीय हित की बात करने वाले उग्र प्रदर्शनकारियों का कब्जा करना और प्रसारण रोकना गांव-घर में चोरों द्वारा की जाने वाली चोरी की घटना की याद दिलाता है, जिसमें चोर घर में चोरी करने से पहले रोशनी को बुझा देता है.
जब यह चरित्र पाकिस्तान के प्रदर्शनकारियों का है तो भला वे राष्ट्र भक्त हैं या राष्ट्र में अराजकता फैलाने वाले तत्व. बहरहाल, पाकिस्तान की हालत बेहद चिंताजनक हैं. एक राष्ट्र राज्य के रूप में उसके अस्तित्व पर बार-बार उठने वाले सवाल न सिर्फ वहां के अवाम के लिए परेशान करने वाली है, बल्कि भारत जैसे पड़ोसी मुल्क के लिए भी खतरनाक है. सुख से रहने के लिए यह जरूर है कि आपका पड़ोसी भी खुशहाल हो. अगर उसके घर में कलह होगा, झगड़े होंगे, गरीबी होगी तो आप भी खुशहाल नहीं रहेंगे. उनके कलह, झगड़े व गरीबी आपके लिए समस्या खड़े करेंगे ही.
पाकिस्तानी पत्रकार व वहां बीबीसी के संवाददाता वुसतुल्लाह खान ने अपने ब्लॉग पर एक पाकिस्तानी नागरिक के रूप में अपनी पीड़ा जाहिर की. उन्होंने भारतीयों के लिए इस मामले को समझाने के लिए आचार्य जी और सचिन तेंदुलकर जैसे पात्रों का उल्लेख किया है. उन्होंने लिखा है : मेरी तकलीफ समझनी है तो जरा देर के लिए आंखें बंद कर लें और तसव्वुर(कल्पना) कर लें कि कोई एनआरआइ आचार्य जी दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर उतरते ही एलान कर दें कि लोकतंत्र तो एक फ्रॉड है और उसके नाम पर पिछले छह दशक से जनता पर जुल्म किया गया है.
उन्होंने आगे लिखा है कि जिस समय आचार्य जी एलान कर दें कि ऐसे लोकतंत्र का तख्ता पलट करने के लिए वे आगरा से दिल्ली तक दस लाख लोगों के साथ क्रांति मार्च करेंगे, उसी समय कोई सचिन तेंदुलकर ये एलान कर दे कि मोदी सरकार धांधली की उपज है, जिसने जनता का वोट चुराया है. इसलिए मेरे हजारों सहयोगी तब तक संसद नहीं चलने देंगे, जबतक की मोदी सरकार इस्तीफा नहीं देती. और फिर आचार्य जी और सचिन तेंदुलकर एक दूसरे के आगे पीछे नयी दिल्ली में दाखिल हों और संसद को घेर कर धरना दे दें और विपक्ष समेत किसी की भी बात सुनने से इनकार कर दें.
दरअसल, वुसतुल्लाह खान जैसे संजीदा पत्रकार ने हम भारतीय को यह बताने की कोशिश की है कि अगर आपके देश में पाकिस्तान के मौलवी ताहिरुल कादरी जैसा कोई धर्मगुरु व इमरान खान के जैसा लोकप्रिय कोई क्रिकेटर ऐसी स्थिति (अराजकता) उत्पन्न करे तो हम पर जो कुछ गुजरेगा, वही उन पर गुजर रहा है. खैरियत है कि हमारे यहां न कोई आचार्य जी इतने गैर जिम्मेवार हैं या फिर जनता ने उन्हें इतना ताकतवर नहीं बनने दिया है कि वे ऐसी गैर जिम्मेदारी पर उतर आयें और न ही कोई लोकप्रिय क्रिकेटर ऐसी स्थिति उत्पन्न करने की कल्पना कर सकता है.
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के नेता इमरान खान और पाकिस्तान अवामी तहरीक के ताहिरुल कादरी ने अपने देश में जो स्थिति बनायी है, वह खौफनाक है. पहले से ही लगातार राजनीतिक अस्थिरता व अराजकता की मार झेल रहे पाकिस्तान को नये हालात कहां ले जायेंगे कहना मुश्किल है. दिलचस्प यह कि कादरी को एक धर्म गुरु के रूप में स्थापित करने में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के पिता व खुद शरीफ का अहम योगदान है.

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