विश्व मीडिया की नजर में नरेंद्र मोदी सरकार के 100 दिन

।। विकास पांडे ।। प्रधानमंत्री के रूप में सौ दिन पूरे करने पर नरेंद्र मोदी अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खी भी बने हुए हैं. ऐसा लगता है कि अंतरराष्ट्रीय अखबारों में उनके नेतृत्व के प्रति शुरु आत में अपनाये गये निराशावादी रु ख के वास्तविक आकलन का समय अब आया है, जब कई नीतियां लागू हुई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 7, 2014 7:05 AM

।। विकास पांडे ।।

प्रधानमंत्री के रूप में सौ दिन पूरे करने पर नरेंद्र मोदी अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खी भी बने हुए हैं. ऐसा लगता है कि अंतरराष्ट्रीय अखबारों में उनके नेतृत्व के प्रति शुरु आत में अपनाये गये निराशावादी रु ख के वास्तविक आकलन का समय अब आया है, जब कई नीतियां लागू हुई हैं. पश्चिमी मीडिया ने अप्रैल में हुए चुनाव अभियान के दौरान मोदी की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठाये थे. इनमें द इकॉनिमस्ट और द गार्डियन प्रमुख हैं.
द इकॉनिमस्ट ने मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर कहा था कि भारत इससे बेहतर का हकदार है. अंतरराष्ट्रीय अखबारों ने नयी वित्तीय नीतियों को लागू करने में नाकाम होने की ओर भी ध्यान दिलाया है. उनकी तमाम नीतियों पर सवाल खड़े करने के बाद अखबारों ने उनकी कुछ अप्रत्याशित पहलों के लिए तारीफ की है. उनका चुनाव कई कारणों से दुनिया भर में सुर्खियों में था.
द इकॉनिमस्ट ने आगे लिखा था कि वे हमें अगर गलत साबित करते हैं, तो हमें ख़ुशी होगी. तो क्या मोदी ने पत्रिका को गलत साबित कर दिया? इसका जवाब है- पूरी तरह से तो नहीं. देश में हिंदूवाद को बढ़ावा देनेवाली बयानबाजी, मुद्रास्फीति की ऊंची दर और बड़े आर्थिक सुधार की अनुपस्थिति अब भी मोदी के लिए सवाल हैं.
* क्रांतिकारी सुधार नहीं : द इकॉनॉमिस्ट मोदी सरकार की ओर से उठाये गये कुछ कदमों की प्रशंसा करते हुए कहा है कि सरकारी कर्मचारी अब काम पर समय से आते हैं और यहां-वहां नहीं थूकते, लेकिन ये सुधार क्रांतिकारी नहीं हैं. नयी सरकार के सत्ता में आये जब दो महीने हुए थे, तो चर्चा थी कि पीएम अपनी प्रशासनिक शैली को लेकर मुग्ध हैं, जबकि वे अपने राजनीतिक जनादेश का बहुत कम इस्तेमाल करते हैं. मोदी सत्ता में उम्मीदों के भारी दबाव के बीच आये हैं और भारतीयमतदाता कम समय में बड़ा बदलाव चाहता है. लेकिन क्या उन्होंने जो वायदे किये थे, उन्हें वे पूरा करने जा रहे हैं? विश्लेषकों का कहना है कि मोदी ने स्पष्ट रूप से अपनी योजना नहीं बनायी है.
वोटरों ने तीन दशक बाद किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिया है और एक ऐसे व्यक्ति को चुना जो कभी रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता था. कई अंतरराष्ट्रीय अखबारों ने कांग्रेस पार्टी की हार को दिल्ली में ह्यकुलीन वर्ग के शासनह्ण की समाप्ति के तौर पर देखा. मोदी ने सत्ता संभालने के बाद कुछ सही कदम उठाये हैं. अंतरराष्ट्रीय अखबारों में 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हुए मोदी के भाषण में स्वच्छता का मसला उठाने की भी तारीफ की गयी है. किसी ने भी भारत के प्रधानमंत्री से इस ऐतिहासिक दिन पर यह उम्मीद नहीं की थी कि वे खुले में शौच से जुड़ी बलात्कार की समस्या पर बात करेंगे.
।। साभार : बीबीसी ।।
– इन अखबारों की नजर में
* रूसी अखबार कोमरसैंट में मोदी को लेकर कुछ आशंका जतायी गयी थी कि वे अंतरराष्ट्रीय पहचानवाले शख्सीयत नहीं हैं. जुलाई में रूसी अखबार मोदी के नेतृत्व में भारत व रूस संबंधों की बेहतर संभावनाओं की उम्मीद जताने लगे.
* मिस्र के अखबार अल-मिसरी अल यावम ने मोदी के महिलाओं की सुरक्षा के लिए शौचालय बनाने की जरूरतवाले बयान पर रिपोर्ट छापी है.

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