नयी दिल्ली: माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल के साहसिक कार्य का जज्बा उन्हें जीवन में आगे बढने की प्रेरणा देता है.‘कर सकते हैं’ वाले रवैये के साथ रहने वाली 60 वर्षीय पाल कहती हैं कि वक्त की जरुरत है कि भारतीय महिलाएं ‘जीवन में कुछ भी नामुमकिन नहीं’ है ऐसी सोच रखें’.
पाल ने कहा, ‘इस देश की महिलाओं के साथ यह दिक्कत है कि जब वह पर्वत चढने जैसी चुनौतियों का सामना कर रही होती हैं तो वे महसूस करती हैं. ओह, मैं एक महिला हूं और मैं यह नहीं कर सकती. आपको जीने के लिए और लडने के लिए यह रवैया छोडना होगा चाहे यह पर्वत चढना हो या फिर खुद की सुरक्षा के लिए लडना हो’
1984 में माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पंहुच कर तिरंगा फहराने वाली पूर्व पर्वतारोही सभी महिला सदस्यों वाले पर्वतारोही दल को तिब्बत में खरता घाटी के लिए रवाना करने के लिए शहर में थी.
सात सदस्यीय महिला दल में झारखंड से प्रेमलता अग्रवाल और संगीता एक्का हैं, जबकि दिल्ली से ज्योति शर्मा और तनु वर्मा, पश्चिम बंगाल से चेतना साहू, उत्तराखंड से माधवी शर्मा और गुजरात से अनिता वैद्य शामिल हैं. ये महिलाएं कडी ठंड का सामना करते हुए खरता घाटी पहुंचेंगी.
तय कार्यक्रम के मुताबिक पर्वतारोहि फूलों की घाटी से होते हुए माउंट एवरेस्ट की पूर्वी ओर जाएंगी, जिसे कंगशुंग नाम से जाना जाता है. कंगशुंग माउंट एवेरस्ट के तीन प्रमुख ग्लेशियों में से एक है.
पाल ने कहा कि ‘पर्वतारोहण लोगों को कठोर बनाता है और उनके जीवन कौशल को विकसित करता है. उनको नेतृत्व कौशल, समस्या को हल करने का रवैया और अंत तक लडना सिखाता है. अगर महिलाएं जीवन में तह दिल से कुछ पाना चाहती हैं तो मैं महिलाओं से गुजारिश करती हूं कि वे जीवन में कुछ भी नमुमकिन नहीं हैं ऐसी सोच रखें.’
इसके लिए पाल दुनिया के सात पर्वतों पर चढने वाली पहली भारतीय महिला और 48 वर्ष की सबसे ज्यादा आयु में माउंट एवरेस्ट पर चढने के लिए तैयार प्रेमलता अग्रवाल का उदाहरण दिया.