।।राहुल सिंह।।
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मोदी की तरह ही चीन में नेता बन उभरे हैं शी चिनपिंग
।।राहुल सिंह।। भारत यात्रा पर पहुंच रहे चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग व भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में कुछ विषमताओं के साथ कई समानताएं भी हैं. दोनों शीर्ष नेताओं को अपने-अपने देश के राज्य में शासन करने का अनुभव है. दोनों नेता लगभग हम उम्र हैं और दोनों की पहचानअपने-अपने देश में बेहतर संगठनकर्ता व परिणाम […]
भारत यात्रा पर पहुंच रहे चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग व भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में कुछ विषमताओं के साथ कई समानताएं भी हैं. दोनों शीर्ष नेताओं को अपने-अपने देश के राज्य में शासन करने का अनुभव है. दोनों नेता लगभग हम उम्र हैं और दोनों की पहचानअपने-अपने देश में बेहतर संगठनकर्ता व परिणाम देने वाले नेता की है. मोदी ने जहां भाजपा संगठन के विभिन्न पदों पर काम कर पार्टी को बुलंदी पर ले जाने में योगदान दिया है, वहीं शी ने भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी संगठन के विभिन्न पदों पर काम करते हुए खुद के कुशल संगठनकर्ता होने की छाप छोड़ी.
दोनों नेताओं में एक अहम अंतर यह है कि मोदी जहां सेल्फ मेड पॉलिटिशयन हैं, वहीं शी को राजनीति विरासत में मिली है. शी दिग्गज कम्युनिस्ट नेता शी जांगजुन के बेटे हैं, जबकि मोदी स्टेशन पर चाय बेचने वाले दामोदर दास मोदी के बेटे हैं. दोनों नेताओं ने लगभग एक ही समय में राज्यों का शासन संभालने का अनुभव लिया है. मोदी जहां 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने, वहीं शी ने उनसे दो साल पूर्व 1999 में फूजियन प्रांत के गर्वनर बन गये थे.
2002 से 2007 के बीच वे जिझयांग प्रांत के गवर्नर रहे. दोनों नेताओं को अपने-अपने देश के तटीय राज्यों का शासन संभालने का अनुभव है. पर, शी को अपनी प्रशासनिक दक्षता दिखाने में उस समय थोड़े समय के लिए ब्रेक लगा जब उन्हें 2007 में पार्टी सेक्रेटरी बना कर स्थानांतरित कर दिया गया. हालांकि यह स्थानांतरण कुछ समय के लिए किया गया था,जब इस पद से चेन लियांग्यू को बरखास्त कर दिया गया था.
कुछ ही समय बाद साल 2007 के अक्तूबर माह में ही उन्हें प्रोन्नत कर पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी व सेंट्रल सेक्रेटेरियट में जगह दे दी गयी. इस पद पर पहुंचना उनके राजनीतिक जीवन के लिए अहम साबित हुआ. यहां काम करते हुए उनका कौशल निखरा और वे तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ के विकल्प के रूप में उभरे. शी की ही तरह मोदी को भी इच्छा के विरुद्ध राजनीतिक स्थानांतरण देखना पड़ा और उन्हें गुजरात के अहमदाबाद-गांधीनगर से स्थानांतरित कर दिल्ली शी की ही तरह सचिव बना कर भेज दिया गया, जिसके कारण पार्टी संगठन में राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें अपना कौशल दिखाने का मौका मिला और फिरवे भी शी की तरह राज्य का शासन संभालने के लिए भेज दिये गये.
आश्चर्यजनक रूप में अपने-अपने देश में शी व मोदी के नेतृत्व को उभार उनके द्वारा भ्रष्टाचार को राजनीतिकविमर्श का प्रमुख विषय बनाने के करण मिला. शी व मोदी दोनों ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाया. दोनों नेता आर्थिक सुधारों, शासन के अधिक खुले नजरिये व व्यापकराष्ट्रीय पुनर्निर्माण के पैरोकार हैं. शी जहां अपनी पार्टी की पांचवी पीढ़ी के नेता हैं, वहीं मोदी अपनी पार्टी की तीसरी पीढ़ी के नेता हैं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी-दीनदयाल उपाध्याय, अटल-आडवाणी के बाद अब मोदी पार्टी के स्वाभाविक नेता के रूप में उभरे हैं. शी जब मात्र दस साल के थे तभी उनके पिता ने उन्हें एक कारखाना में काम करने के लिए भेज दिया था. उनकी सेंकेडरी की पढ़ाई देश में सांस्कृतिक क्रांति के कारण रुक गयी थी.
1968 में शी जब 15 साल के थे तब उनके पिता जेल चले गये. 1971 शी चिनपिंग ने कम्युनिस्ट यूथ लीग ज्वाइन कर लिया, फिर वह 1974 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना में उन्होंने प्रवेश किया. 1975 में शिन्हुआ यूनिवर्सिटी में केमिकल इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया. बाद में वे महज 22 वर्ष की उम्र में अपनी पार्टी की उत्पादन शाखा के सचिव बने. 1979 से 1982 तक वे अपने पिता के पूर्व सहयोगी जिंग बियो के सचिव के रूप में कार्य किया. इसके बाद सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के उप प्रमुख और फिर महासचिव बने. उनके विचार व काम करने के तरीके से कम्युनिस्ट पार्टी इतनी प्रभावित हुई कि उन्हें 1983 में सीपीसी जेनिडंग काउंटी कमेटी का सचिव नियुक्त किया. दोनों नेताओं का अपने-अपने देश के राष्ट्रीय फलक पर उदय मौजूदा चुनौतियों के कारण ही हुआ.
अपने-अपने देश में कई प्रमुख नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगना इनके उभार के लिए सहायक साबित हुआ. शी के मजबूत चीन के वादे की तरह प्रधानमंत्री मोदी ने भी देश की जनता को एक मजबूत भारत बनाने का ख्वाब दिखाया है. शी ने शीर्ष पद कब्जा अंगरेजी में निपुण इस पद के दूसरे दावेदार ली क्विइयंग को हरा कर किया और भारत में ऐसा ही मोदी ने अपनी पार्टी में कुछ नेताओं पीछे छोड़ कर किया.
2012 के नवंबर में जब शी ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो की नयी स्टैंडिंग कमेटी का बीजिंग में नेतृत्व किया तभी विश्व समुदाय को यह संकेत मिल गया था कि अगले दशक के लिए वे चीन का नेतृत्व करेंगे और भारत में 2013 के जून में गोवा में भाजपा की पार्टी कार्यकारिणी के दौरान मोदी को जब आडवाणी की नाराजगी के बावजूद भाजपा की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया तो यह संकेत मिल गया था कि मोदी ही भाजपा का नेतृत्व अगले दशक में करेंगे. हालांकि भारत के एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते मोदी को अपनेविचारों व मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाना पड़ा और मोदी को जनता ने प्रबल बहुमत से विजय दिलायी. मोदी अब खुद कह रहे हैं कि वे एक दशक तक तो देश का नेतृत्वकरेंगे. शी और मोदी दोनों अपने आइडिया को लेकर बहुत स्पष्ट और ठोस होते हैं. अपने आइडिया को लेकर वे किसी भी तरह के संशय में कभी नजर नहीं आते. अपनी सोच को क्रियान्वित करने को लेकर दोनों नेता बहुत रणनीतिक ढंग से काम भी करते हैं.
दोनों नेताओं ने साल भर से कुछ ज्यादा समय के अंतराल पर अपने-अपने देश का नेतृत्व संभाला है. ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि दोनों नेताओं में समानताएं भी काफी हैं और उनसे उनके देश की जनता को उम्मीदें भी काफी हैं. अब इस सुखद संयोग को भविष्य में ये नेता क्या स्वरूप देंगे यह देखना दिलचस्प होगा. क्षेत्रीय शांति, संतुलन व लोगों का जीवन स्तर ऊंचा करने के लिए जरूरी है कि दोनों नेता आपसी विश्वास को बहाल करते हुए भारत व चीन की जरूरतों को पूरा करने में मददगार हों. यह कतई उपयुक्त नहीं होगा कि हम एक-दूसरे के प्रति शंकालु बने रहें. 1962 में चीनी शासन ने कुटिलता पूर्वक जिसतरह भारत पर हमला किया, उससे एक आम भारतीय के मन में चीन को लेकर गहरा अविश्वास है.
इसके सामने सैकड़ों साल के रिश्ते भी अपना असर खो चुके हैं. भले ही बदलते दौर में दोनों देश लगातार आपसी वाणिज्य-व्यापार को बढ़ाने पर साथ काम कर रहे हों, लेकिन चीन सैनिकों की घुसपैठ और चीन के द्वारा अपने नक्शे में भारतीय हिस्से को बार-बार शामिल कर दिखाने की उसकी प्रवृत्ति व पाकिस्तान के साथ मिल कर भारत की घेराबंदी करने की कोशिश के कारण वह रूस, जापान या अमेरिका की तरह भारतीयों के भरोसे को नहीं जीत पा रहा है. उस युद्ध ने भारत-चीन के बीच के सैकड़ों साल के सांस्कृतिक-आध्यात्मिक रिश्ते को भी फीका कर दिया. ऐसे में अपने-अपने देश की कमान संभाल रहे मोदी व शी एक-दूसरे की सीमा व संप्रभुता का सम्मान करने का विश्वास परस्पर दोनों देश की जनता को दिला पायेंगे, तो दुनिया की एक तिहाई आबादी वाले इस भूभाग के लोगों के जीवन में नयी खुशहाली आ सकेगी.
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