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दो कदम ही सही भारत-चीन साथ-साथ तो चले

II राहुल सिंह II भारत और चीन की शिखर वार्ता के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग साझा प्रेस कान्फ्रेंस कर रहे थे, तो दोनों नेताओं के संबोधन में इस बात के स्पष्ट संकेत थे कि यह दुनिया की दो उभरती ताकतों की प्रेस कान्फ्रेंस है, जो पड़ोसी भी हैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 18, 2014 9:12 PM

II राहुल सिंह II

भारत और चीन की शिखर वार्ता के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग साझा प्रेस कान्फ्रेंस कर रहे थे, तो दोनों नेताओं के संबोधन में इस बात के स्पष्ट संकेत थे कि यह दुनिया की दो उभरती ताकतों की प्रेस कान्फ्रेंस है, जो पड़ोसी भी हैं और उनके बीच सीमा विवाद भी हैं, लेकिन इन्हें आगे बढ़ने के लिए एक-दूसरे का हाथ पकड़ने की भी दरकार है और ये इसके लिए तैयार भी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो टूक शब्दों में चीन के राष्ट्रपति को कहा कि आपसी सहयोग व बेहतर संबंध के लिए सीमा विवाद को दूर करना जरूरी है.

वहीं, चीन के राष्ट्रपति शी ने इन मुद्दों पर नये सिरे से बातचीत शुरू करने का एलान करते हुए अपनी विनम्रता की चाशनी में लिपटी अकड़ के साथ कहा कि हमारी सीमा पर छोटे-मोटे विवाद हमारे आपसी रिश्तों व हितों को प्रभावित नहीं कर सकते. राष्ट्रपति शी ने भारत-चीन के सीमा विवाद को इतिहास की बात बताया और कहा कि भारत-चीन एक स्वर में बोलेंगे तो दुनिया सुनेगी. पर, शी को अपने बयान को हकीकत में बदलना होगा. इसके लिए सबसे जरूरी है भारत को शांति, सहयोग व उससे भी बढ़ कर सीमा का अतिक्रमण नहीं करने का भरोसा दिलाना.

अब तक का इतिहास यही रहा है कि चीन इस मुद्दे पर खरा नहीं उतरता. इसलिए दोनों देशों के गौरवशाली ऐतिहासिक रिश्ते होते हुए भी मौजूदा रिश्ते कभी सहज, स्वाभाविक व आत्मीय रूप नहीं ले पाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसलिए चीन के राष्ट्रपति के दौरे के दौरान उन्हें बार-बार सांस्कृतिक-आध्यात्मिक रिश्तों की याद दिलायी है, ताकि चीन अपने विस्तारवादी रवैये को छोड़ आपसी सहयोग व शांति के लिए तैयार हो जाये. मोदी ने बनी-बनायी परंपरा को तोड़ते हुए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की जगह देश के एक ऐसे शहर को शी के स्वागत के लिए चुना, जिससे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जुड़ाव रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी शी को सबसे पहले बापू के साबरमती आश्रम ले गये और एक गाइड की तरह उन्हें बापू का कमरा, उनकी चीजें व उनसे संबंधित अहम जानकारियां दीं. मोदी के साथ शी ने चरखा भी चलाया और सूत की माला व बंडी भी पहनी. भले ही यह सब चीजों सतही तौर पर औपचारिकता भर लगे, लेकिन इसके प्रतीकात्मक मायने काफी अहम हैं. प्रधानमंत्री ने बापू के बहाने चीन को क्षेत्रीय व वैश्विक शांति, प्रगति व साझा प्रयास की सीख दी.

मोदी ने मंगलवार को अहमदाबाद रवाना होने से पूर्व चीनी मीडिया से बात करते हुए कहा था चीन-भारत में दुनिया की 35 प्रतिशत आबादी रहती है और दोनों देशों को गरीबी उन्मूलन पर फोकस करना चाहिए. उन्होंने कहा था कि वे चीन के राष्ट्रपति के साथ अपनी बैठक को एक नयी शब्दावली देना चाहेंगे, जिसे इंच से मील की बढ़ना कहेंगे. उनके अनुसार, इंच का मतलब इंडिया-चाइना है, जबकि मील की तरफ बढ़ने का अर्थ है : असाधारण तालमेल के साथ सहस्त्रब्दी की ओर जाना. उन्होंने कहा था कि हमारे संबंधों, शांति, स्थिरता के वातावरण को बनाये रखने के लिए द्विपक्षीय सहयोग, अंतरराष्ट्रीय साङोदारी व अवसरों का अधिकार एक दूसरे को मुहैया करायें.

उन्होंने स्पष्ट किया था कि उनकी सरकार की उच्च प्राथमिकता चीन के साथ बेहतर रिश्ता भी है. उन्होंने कहा था कि हम एक करीबी विकासात्मक साङोदारी की तलाश कर रहे हैं. मोदी से उलट शी ने दोनों देशों के ऐतिहासिक रिश्तों को अपने संबोधन में फोकस नहीं किया. शी ने ऐतिहासिक संदर्भ देने की जगह दोनों देशों के बीच वाणिज्य-व्यापार बढ़ाने पर जोर दिया. वह भी काफी सधे कदमों के साथ. उम्मीद के विपरीत इसके लिए भी चीन से कम ही घोषणा हुई. चीनी राष्ट्रपति ने भारत में अगले पांच सालों में 20 अरब डॉलर भारत में निवेश करने का एलान किया.

उनके एक बयान से यह साफ हो गया कि वे सीमा को लेकर भारत के संबंधों पर ध्यान तो दे रहे हैं, लेकिन उसको लेकर उस कदर संवेदनशील नहीं है, जैसा भारत है. शी ने कहा – सीमा पर होने वाली छोटी-मोटी घटनाएं दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध को प्रभावित नहीं कर सकेंगी. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद इतिहास की बात है और हम इसे मिलजुल कर सुलझायेंगे. लेकिन चीन के राष्ट्रपति के दौरे के दौरान ही मीडिया में यह खबर आयी कि 1000 चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुस गये हैं.

शी के संबोधन से यह स्पष्ट था कि भारत की राजनीतिक अनिश्चिता खत्म होने के बाद देश को मिले पूर्ण बहुमत की सरकार के बाद वह भारत को हल्के में नहीं ले सकता. चीनी मीडिया ने शी के दौरे के दौरान अपने देश को आगाह किया है कि वह भारत को गरीब नहीं माने और उसे हल्के में नहीं ले, बल्कि दोनों देशों की साझा समस्याएं एक जैसी हैं, इसलिए इसे दूर करने के साझा प्रयास हों. भारत के विकास के लिए प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों की तारीफ करते हुए शी ने उन्हें अगले साल के आरंभ में चीन के दौरे पर आमंत्रित किया है.

भारत-चीन के बीच उम्मीदों के विपरीत गुरुवार को मात्र 12 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जबकि मीडिया दो दर्जन से अधिक समझौतों की उम्मीद लगाये हुए था. इससे साफ है दोनों देश एक दूसरे से रिश्तों को आगे बढ़ाने को लेकर काफी सधे हुए कदम से आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन, इसका स्वागत किया जाना चाहिए, दोनों देश दो कदम ही सही साथ-साथ आगे तो बढ़े. सचमुच यह शुरुआत इंच से मील की ओर है.

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