महाराष्ट्र चुनावः दो भाई, एक विरासत अलग पार्टियां और जीत की हुंकार
नयी दिल्ली: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को लेकर गहमागहमी बढने लगी है. राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता इस कहावत का चरितार्थ करती ऐसी कई कहानियां विधानसभा चुनाव में इतिहास रचने को तैयार है. पहली जोड़ी राज और उद्धव ठाकरे की है तो दूसरी रंजीत देखमुख और अमोल देशमुख की. दो भाई राजनीति […]
नयी दिल्ली: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को लेकर गहमागहमी बढने लगी है. राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता इस कहावत का चरितार्थ करती ऐसी कई कहानियां विधानसभा चुनाव में इतिहास रचने को तैयार है. पहली जोड़ी राज और उद्धव ठाकरे की है तो दूसरी रंजीत देखमुख और अमोल देशमुख की. दो भाई राजनीति में अपने -अपने दम पर सफलता हासिल करने की कोशिश में हैं.
एक तरफ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे तो दूसरी तरफ एमएनएस( महाराष्ट्र नव निर्माण सेना) के राज ठाकरे मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं पर इन दोनों का रास्ता अलग अलग है. भाजपा और शिवसेना के गंठबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति है तो दूसरी तरफ एमएनएस भी इस गंठबंधन पर नजरे गड़ाये बैठी है. भाजपा और एमएनएस के गंठबंधन को लेकर भी सुगबुगाहट शुरु हो गयी है.
अगर शिवसेना और भाजपा का रिश्ता टूटता है तो एमएनएस अपना ऱिश्ता लेकर भाजपा के पास पहुंच सकती है. ऐसे में महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ आयेगा. सूत्र बताते है कि राज बहुत पहले से ही भाजपा से रिश्ता जोड़ना चाहते हैं. मोदी की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं. उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान ही भाजपा को समर्थन और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की वकालत की थी. अब महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा की बीच के रार से एमएनएस को फायदा होगा ऐसी उम्मीद की जा रही है. ऐसी ही दूसरी जोड़ी अमोल देशमुख और आशीष देशमुख की है.
दोनों पिता की विरासत आगे ले जाने के लिए चुनावी मैदान में कूदने की तैयारी कर रहे हैं. दोनों भाइयों में से एक कांग्रेस में है तो दूसरा भाजपा में. पूर्व में दो बार महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके रंजीत देखमुख के बडे बेटे अमोल देशमुख ने कहा, ‘‘यह बहुत चुनौतीपूर्ण है.’’ पेशे से डॉक्टर अमोल रामटेक निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस का टिकट चाहते हैं.वहीं उनके छोटे भाई और अलग विदर्भ राज्य के कट्टर समर्थक आशीष देखमुख भाजपा के टिकट पर सावनेर विधानसभा सीट से चुनाव लडना चाहते हैं. वह 2009 में पार्टी में शामिल हुए थे.
अमोल ने कहा, ‘‘आप में उंचे स्तर की समझ होनी चाहिए. मैं कहूं तो आखिरकार हम भाई ही हैं लेकिन हमारी विचारधाराएं अलग हैं.’’उन्होंने कहा कि वह भाजपा की विचारधारा का समर्थन नहीं कर सकते और भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने जो धुव्रीकरण किया है, वह उसे सही नहीं समझते.
अमोल ने भाजपा और आरएसएस को धुव्रीकरण का जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, ‘‘मेरे दोस्त जो कभी भी जात-पात की बात नहीं करते थे, अब इसकी और वह (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) उनपर (मुसलमानों) कैसे काबू पा सकते हैं, इसके बारे में बातें कर रहे हैं. कांग्रेस हम सभी को एक देश के तौर पर साथ आगे ले जाने की बडी कीमत चुकाती रही है. लेकिन दुर्भाग्य से इस देश में धर्मनिरपेक्षता एक घटिया शब्द बन गया है.’’ बहरहाल चुनाव परिणाम ही बतायेंगे कि कौन भाई किस भाई से भारी पड़ रहा है.