हैदराबाद: देश में इन दिनों महत्वपूर्ण खनिजों के भंडार पाए जा रहे हैं, जिससे पूरे भारत देश की ताकत मजबूत हो रही है. इन दुर्लभ खनिजों के मिलने से राज्य भी मालामाल और विकास कर रहा है. इसी कड़ी में आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का भंडार पाए गए है, जिसका सबसे अधिक इस्तेमाल सेलफोन, टीवी और कंप्यूटर से लेकर ऑटोमोबाइल जैसे दैनिक उपयोग की चीजों में इस्तेमाल किए जाते हैं.
इन खनिज पदार्थ की खोज हैदराबाद स्थित नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने की है. दरअसल, एनजीआरआई के वैज्ञानिक साइनाइट जैसी गैर-पारंपरिक चट्टानों के लिए सर्वेक्षण कर रहे थे. उसी दौरान उन्होंने लैंथेनाइड श्रृंखला में खनिजों की महत्वपूर्ण खोज की. पहचान किए गए तत्वों में एलानाइट, सीरीएट, थोराइट, कोलम्बाइट, टैंटलाइट, एपेटाइट, जिरकोन, मोनाज़ाइट, पायरोक्लोर यूक्सेनाइट और फ्लोराइट शामिल हैं.
एनजीआरआई के वैज्ञानिक पीवी सुंदर राजू ने कहा कि रेड्डीपल्ले और पेद्दावदागुरु गांवों में अलग-अलग आकार का जिक्रोन देखा गया. उन्होंने कहा कि मोनाजाइट के दानों में अनाज के भीतर रेडियल दरारों के साथ उच्च-क्रम के कई रंग दिखाई देते हैं, जो रेडियोधर्मी तत्वों की उपस्थिति का संकेत देते हैं.
वैज्ञानिक पीवी सुंदर राजू ने टीओआई को बताया कि इन आरईई के बारे में अधिक जानने के लिए डीपड्रिलिंग द्वारा अधिक व्यवहार्यता अध्ययन किया जाएगा. इन तत्वों का उपयोग स्वच्छ ऊर्जा, एयरोस्पेस, रक्षा और स्थायी चुम्बकों के निर्माण में भी किया जाता है – आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स का एक प्रमुख घटक – पवन टर्बाइन, जेट विमान और कई अन्य उत्पाद है. REE का व्यापक रूप से उच्च प्रौद्योगिकी में उपयोग किया जाता है क्योंकि उनके ल्यूमिनेसेंट और उत्प्रेरक गुण होते हैं. एनजीआरआई के वैज्ञानिकों ने कहा कि मेटलोजेनी के प्रभावों के साथ आरईई का मूल्यांकन अब एपी में क्षारीय साइनाइट परिसरों में चल रहा है.
वैज्ञानिकों ने कहा कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा पहले रिपोर्ट किए गए कई क्षारीय साइनाइट जमाओं को आरईई युक्त खनिजों के लिए नए सिरे से देखा गया था. अनंतपुर और चित्तूर जिलों में दंचेरला, पेद्दावदुगुरु, दंडुवरिपल्ले, रेड्डीपल्ले चिंतलचेर्वू और पुलिकोंडा परिसर इन आरईई युक्त खनिजों के लिए संभावित केंद्र हैं. मुख्य डेंचेरला साइनाइट पिंड अंडाकार आकार का है और इसका कुल क्षेत्रफल 18 वर्ग किमी है. एक वैज्ञानिक ने कहा कि आरईई खनिजीकरण की क्षमता को समझने के लिए तीन सौ नमूनों को और भू-रासायनिक अध्ययन के अधीन किया गया था.