मोदी के साथ रिश्ता, बेहद पवित्र, भावनात्मक और मजबूत : राजनाथ
कोई उन्हें यह श्रेय दे या न दे, पर इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में ही भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने में सफलता हासिल की. इस शानदार कामयाबी के बाद उन्हें सरकार में गृह मंत्री की जिम्मेदारी दी गयी. लेकिन, उनके पद […]
कोई उन्हें यह श्रेय दे या न दे, पर इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में ही भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने में सफलता हासिल की. इस शानदार कामयाबी के बाद उन्हें सरकार में गृह मंत्री की जिम्मेदारी दी गयी. लेकिन, उनके पद संभालने के साथ ही कुछ ऐसी बातें भी हवा में तैरने लगीं, जिनसे यह संदेश गया कि गृह मंत्री और प्रधानमंत्री के बीच रिश्ते पूरी तरह सामान्य नहीं हैं. या यों कहें कि राजनाथ सिंह की सरकार में वह हैसियत नहीं है, जो एक गृह मंत्री की होती है. ‘गवर्नेस नाउ’ पत्रिका के संपादक अजय सिंह से बातचीत में राजनाथ सिंह ने इन सवालों का बड़ी साफगोई से जवाब दिया. बातचीत का दूसरा मुख्य विषय रहा आंतरिक सुरक्षा. आज देश के सामने उग्रवाद, आतंकवाद, अलगाववाद माओवाद की बड़ी चुनौती है. इनसे निबटने के लिए उठाये जा रहे कदमों के बारे में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने जानकारी दी.
लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद आपने कहा था कि आप सरकार में शामिल नहीं होंगे और भाजपा अध्यक्ष बने रहना पसंद करेंगे. आपने अपना फैसला बदल दिया. क्यों?
यह सच है, लेकिन मैं कभी अपनी भूमिका तय नहीं करता. पार्टी के शीर्ष नेताओं और खास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार में जिम्मेदारी लेने को कहा. मैंने संगठन के सामूहिक विवेक एवं फैसले के साथ जाने का निर्णय किया. मैं हमेशा ही ऐसा करता हूं और इस बार भी इसमें कुछ नया नहीं था. वैसे मैंने संगठन में कहा था कि संगठन का दायित्व निभाने में मुझे सुखद अनुभूति होगी.
नरेंद्र मोदी की वजह से पार्टी का सर्वोच्च पद छोड़ने और सरकार में शामिल होने का कोई अफसोस?
मैं अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कभी श्रेष्ठ पद या कहें प्रमुखता पाने के लिए लालायित नहीं रहा. यहां तक कि 1977 में जब मैंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ा- मैंने उसके लिए नहीं कहा था. जो लोग मुझे जानते हैं, वे इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि मैंने कभी कुछ नहीं मांगा. इसलिए अफसोस करने का कोई सवाल ही नहीं है. फिर भी, मैं कहना चाहूंगा कि राजनीति में सबसे लोकप्रिय नेता को ही सर्वोच्च पद हासिल होता है. आपको देखना चाहिए था कि गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जब मोदी जी को पार्टी की प्रचार समिति का प्रमुख बनाया गया था, तब भी मैंने उनकी सर्वोच्चता को स्वीकृति दी थी. पार्टी में उनकी नयी भूमिका के बारे में जब उन्हें संकेत भी नहीं मिले थे, मैंने इस विषय पर बोलना शुरू कर दिया था. वे देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं. इसके अलावा भारतीय मंत्रिमंडल प्रणाली में प्रधानमंत्री को ही सर्वोच्च शक्ति मिलती है. यह प्रधानमंत्री की स्वाभाविक और कानूनी स्थिति है. जहां तक मेरी भूमिका का सवाल है, मैंने कभी स्वयं की सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए काम नहीं किया. कोई परिवार बिना किसी की प्राइमेसी (प्रमुखता) के नहीं चल सकता. मोदी जी की प्राइमेसी थोपी हुई नहीं, बल्कि स्वाभाविक है.
ऐतिहासिक तौर पर देखें तो प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बीच संबंधों को लेकर हमेशा से अटकलें लगती रही हैं. नेहरू के वक्त में, उनके और सरदार पटेल के राजनैतिक रिश्तों को लेकर खासी चर्चा होती थी. हाल के वर्षो में, पिछली एनडीए सरकार के वक्त वाजपेयी-आडवाणी के संबंध मीडिया में सुर्खियां बनते रहे. इसी तरह आपके मामले में, आपके और प्रधानमंत्री के रिश्तों को लेकर मीडिया में खासी अटकलें हैं. आप इसे किस तरह देखते हैं?
मुझे इस बात को पूरी साफगोई से स्पष्ट करने दीजिए, ताकि अटकलों पर विराम लग सके. सार्वजनिक जीवन में, मैं रिश्ते निभाने को लेकर तय मानकों से बंधा हूं. मेरी राजनीति उन्हीं पैमानों से संचालित होती है. यदि मैंने किसी व्यक्ति के साथ निजी तौर पर बेहत भावनात्मक संबंध विकसित कर लिया तो मैं उसे किसी भी तरह से नुकसान पहुंचाने की बात नहीं सोच सकता. मैं अपने बेहत घनिष्ठ रहे व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने का पाप नहीं कर सकता. भले ही, उसके साथ मेरे मतभेद हो जायें. यह मेरी राजनीति नहीं है. मैं स्वीकार करता हूं कि पूर्व की गलतफहमियों की वजह से कुछ लोगों को यह शायद मुझसे शिकायत हो. मैं खुलेदिल से उनसे बात करने और मामले को सुलझाने के लिए तैयार हूं. आप मेरे व्यवहार में यह निरंतरता देख सकते हैं. खास कर उस दौर में भी, जब उत्तर प्रदेश में मेरे दोस्त विरोधी हो गये थे, मैंने अपने दुश्मन के लिए भी कभी अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया. न ही कभी उन्हें क्षति पहुंचायी.
मेरा सवाल आपके और प्रधानमंत्री के बीच के रिश्तों को लेकर है.
मैं उसी मुद्दे पर आ रहा हूं. मैं आपको बताना चाहता हूं कि बीते डेढ़ वर्ष में हमारे रिश्ते खासे मजबूत हुए हैं. वे देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, जो देश को मुश्किल दौर से निकालने की कोशिश में लगे हैं. जो लोग हमारे रिश्ते को लेकर अटकलबाजी करते हैं, वे इस रिश्ते की गहराई से अनभिज्ञ हैं. यह बेहद पवित्र, भावनात्मक और मजबूत है. कोई इसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता. मैं ऐसा होने भी नहीं दूंगा, चाहे मुझे इससे कोई नुकसान ही क्यों न हो. अपने सार्वजनिक जीवन में मैंने विश्वसनीयता ही कमाई है और मैं दृढ़प्रतिज्ञ हूं कि मेरी विश्वसनीयता को किसी कीमत पर ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए. पशुवत जीवन जीना स्वीकार नहीं है.
एक बार फिर मेरा सवाल प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बीच कथित प्रतिद्वंद्विता की ऐतिहासिकता से जुड़ा है. आखिर गृह मंत्री का पद इस तरह क्यों निर्मित किया गया कि वह प्रधानमंत्री के पद को चुनौती देता प्रतीत होता है?
यह अब बीते दिनों की ही बात रहेगी. मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि आनेवाले दिन अलग होंगे. नया भविष्य होगा, जिसमें पूर्व का दोहराव नहीं होगा. इतिहास को पीछे थोड़ हमें आगे बढ़ना दीजिये. वैसे अटल जी-आडवाणी जी के रिश्तों को लेकर लोगों में भ्रम था. यथार्थ यह है कि दोनों के रिश्ते अच्छे थे.
चलिए अब अगले सवाल की बात करते हैं. गृह मंत्री का पद क्या एक मुश्किल और बिना लाभ का पद नहीं दिखता? जब कुछ हो जाता है तो उसे लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ता है. हालांकि, जब आप कुछ अच्छा करते हैं तो कोई उसकी प्रशंसा नहीं करता है. आपका अपना अनुभव क्या कहता है?
मैं हमेशा पद को पूरी जिम्मेदारी के भाव से ग्रहण करता हूं. मेरे लिए पद प्रतिष्ठा नहीं, वरन् दायित्व है. मैं अपने कार्य को पूरी विनम्रता और कुशलता से निभाने की कोशिश करता हूं, जितना मेरे हाथ में है. मैं न तो सराहना से प्रफुल्लित होता हूं और न ही आलोचना से विचलित होता हूं. गृह मंत्री के रूप में मेरा काम यह नहीं है कि मैं किसी को इसलिए खुश रखूं, क्योंकि वह अनुगृहीत महसूस करेगा या मुझे धन्यवाद कहेगा. मैं इस तरह की बाधाओं से विचलित हुए बगैर अपनी राह चल रहा हूं और कर्तव्यबोध से काम कर रहा हूं.
अब मुझे और मुश्किल सवाल पूछने दीजिए. सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के लिए बनी अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट (एसीसी) से जब आपको अलग रखा गया तो आपको कैसा महसूस हुआ?
मैं लोगों के तिल का ताड़ बनाने की प्रवृत्ति को लेकर हैरान हूं. यह एक प्रक्रियागत मामला है. इस तरह के मामले में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत ही नहीं. मैं वही कर रहा हूं, जो मुझे करना है.मैंने सुना है कि गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ पहली बैठक में आपने उन्हें आश्वस्त किया कि उनका ट्रांसफर नहीं किया जायेगा. आपने इस तरह का यथास्थितिवाद क्यों अपनाया?
यह कोई यथास्थितिवाद नहीं है. कुछ महीनों तक उनका काम देखने के बाद निर्णय करूंगा. यह अधिकारियों को एक तरह का आश्वासन था कि अगर वे बेहतर काम करते हैं तो उन्हें परेशन होने की जरूरत नहीं है. हकीकत में, मैंने गृह मंत्रालय में अधिकारियों के साथ पहली बैठक में साफ-साफ कहा कि मैं उन पर विश्वास करता हूं, लेकिन यह जिम्मेदारी उनकी है कि इस विश्वास को न तोड़ें. मैंने सिर्फ उनसे एक बात कही- आप मेरा विश्वास मत तोड़िएगा. यह कोई बहुत बड़ा आदेश नहीं है और मुझे पूरा यकीन है कि मेरे अधिकारी इस महत्वपूर्ण, किंतु आसान परीक्षा में अवश्य पास होंगे.
क्या आप हमें उन कदमों के बारे में बता सकते हैं, जो आपने बतौर गृह मंत्री उठाये?
मैंने जो पहल की हैं, वे खुद बोलेंगी. मैं उन कदमों के बारे में कुछ नहीं बोलना चाहूंगा, क्योंकि फिर मुझे कुछ हद तक ऑपरेशनल जानकारी देनी होगी. लेकिन मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि पाकिस्तान की तरफ से सीजफायर उल्लंघन के बारे में आपने जो कुछ सुना है, उस पर हमारे सुरक्षा बलों ने करारा जवाब दिया है. मेरा पहला काम हमारे सुरक्षा बल का मनोबल बढ़ाना है. मैंने साफ निर्देश दिये हैं कि हमें सुरक्षा बल को किसी कीमत पर झुकने नहीं देना है. फिर चाहे जो हो जाये. यही वजह है कि हमने एंटी-नक्सल ऑपरेशन में लगे सुरक्षा बलों के जवानों के भत्ते और सुविधाएं बढ़ाने का फैसला किया, जो सेना के समान हैं. माओवाद की समस्या का समाधान संतुलित सोच और कार्य योजना के आधार पर करेंगे.
आपको वाम अतिवादिता से निबटने की चुनौती विरासत में मिली है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आंतरिक सुरक्षा के लिए उसे सबसे बड़ा खतरा माना था. माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन बड़े जोर-शोर से शुरू किया था. अब आप इसे किस तरह आगे बढ़ायेंगे?
मेरे लिए ऑपरेशनल जानकारी देना संभव नहीं है, यह मैं आपसे पहले ही कह चुका हूं. लेकिन, हम जल्दी ही बड़ी सफलता हासिल करने को लेकर आशान्वित हैं. आपको शायद मालूम नहीं होगा कि हमारे जवान घने जंगलों में बहुत भीतर तक पहुंच कर अपने काम को अंजाम दे रहे हैं. हम निश्चित रूप से सभी पहलुओं को ध्यान में रखेंगे.
आपने वामपंथी अतिवाद से निपटने के लिए कड़े कदम उठाने की बात की. लेकिन आप दक्षिणपंथी अतिवाद से कैसे निपटेंगे? इससे अमूमन आपकी पार्टी को जोड़ा जाता है.भारतीय जनता पार्टी का किसी भी तरह के अतिवाद से कोई लेना-देना नहीं है. हमारी पार्टी की विचारधारा किसी भी तरह के अतिवाद को जगह नहीं देती. मैं कहूंगा कि समाज में किसी भी तरह का अतिवाद स्वीकार्य नहीं है. हम इसे बढ़ावा नहीं देते.
अपनी पार्टी के कई नेताओं द्वारा उत्तर प्रदेश में भड़काऊ बयानों के संदर्भ में आप इस बात को कैसे स्पष्ट करेंगे? हाल के दिनों में कथित लव जेहाद के विरोध में चलाये अभियान के संदर्भ में. क्या इससे आपका काम मुश्किल नहीं होता?
मैं सोच-समझ कर बोलने का पक्षधर हूं. मैं वही सुनता हूं, जो सुनना चाहता हूं. जो सुनने योग्य नहीं होता, उसे नहीं सुनता.
आपने हाल में पूर्वोत्तर के लिए वार्ताकार नियुक्त किया. क्या ऐसा कश्मीर के लिए भी करेंगे?
हम वार्ताकार नियुक्त करके कितना आगे जा सकते हैं? पूर्व में अपनाये गये, तरीके, जिनका कोई लाभ नहीं हुआ, उन्हें अब हमें तिलांजलि देनी चाहिए. इसलिए मैं जम्मू-कश्मीर के लिए वार्ताकार नियुक्त करने के पक्ष में नहीं हूं. अब समय आ गया है कि वार्ताकार के मुद्दे पर हम गंभीरता से सोचें. मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं बातचीत का विरोधी नहीं हूं. हां, मैं बिना नतीजोंवाली उस बातचीत के पक्ष में नहीं हूं, जो राष्ट्रविरोधी तत्वों द्वारा संचालित होती है- वह भी सिर्फ अपनी छवि चमकाने के लिए. फिर चाहे बात जम्मू कश्मीर की हो या पूर्वोत्तर की. खास कर पूर्वोत्तर में, हम आम लोगों के सशक्तीकरण के साथ शंति भी चाहते हैं. राष्ट्रविरोधी तत्वों को ज्यादा महत्व देने का कोई अर्थ नहीं है.
हाल में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने अपने गुप्त ऑपरेशन के लिए कानूनी अधिकार मांगे हैं, ताकि आतंकवाद से सख्ती से निपटा जा सके. क्या आप सुरक्षा एजेंसियों द्वारा गुप्त ऑपरेशन के लिए कानूनी अधिकार की मांग के पक्ष में हैं? यह प्रश्न गुजरात में हुए कुछ पुलिस एनकाउंटर में आइबी अधिकारियों के जुड़ाव के संबंध में ज्यादा प्रासंगिक है.
मैं एनआइए की इस मांग से अवगत नहीं हूं. यदि ऐसा कुछ सामने आता है, तो हम मेरिट के आधार पर निर्णय करेंगे. मैं एक बात को लेकर बहुत स्पष्ट हूं- वह यह कि आइबी की सूचनाएं लीक नहीं होनी चाहिए. इन सूचनाओं में छिपी महत्वपूर्ण जानकारियों को लेकर किसी भी स्तर पर कोई समझौता नहीं किया सकता, क्योंकि यह राष्ट्र हित में नहीं है.
कुछ आलोचक कहते हैं कि ‘आधार’ का कार्य ‘नेशनल पापुलेशन रजिस्टर’ के काम को ‘ओवरलैप’ करता है. आप इन दोनों में सामंजस्य कैसे स्थापित करेंगे?
संशयात्मक स्थिति है, तो उसे जल्दी दूर कर लिया जायेगा. बड़ी बात यह कि हम अगले साल तक 25 करोड़ नागरिक कार्ड वितरित करेंगे. यह आबादी के बड़े हिस्से को कवर करेगा. ‘यूआइडीएआइ’ ने 65 करोड़ से अधिक का डाटाबेस और ‘आधार’ नंबर तैयार किया. ‘एनपीआर’ और ‘यूआइडीएआइ’ दोनों आपसी सहयोग के साथ काम कर रहे हैं.
नैटग्रिड, आतंकवाद से निबटने के लिए बनायी गयी एक प्रमुख विंग आज नेतृत्वहीन है. इंटेलीजेंस संबंधी महत्वपूर्ण डाटा को जमा एवं विेषण करनेवाली इस एजेंसी को अलग-थलग क्यों छोड़ दिया गया है? खास कर तब, जबकि आतंकवाद से मुकाबले की मुहिम को आपने अपनी प्राथमिकता में रखा है.
यह संस्था बहुत ज्यादा दिनों तक नेतृत्वहीन नहीं रहेगी. इसके अलावा मैं कहना चाहता हूं कि नैटग्रिड बहुत प्रभावी तरीके से काम कर रही है. काम चल रहा है और रुका नहीं है.
मेरा आखिरी सवाल अलकायदा प्रमुख अल जवाहिरी के नये वीडियो से संबंधित है, जिसमें वह दक्षिण एशिया में जेहाद की चेतावनी दे रहा है. खास कर भारत के कुछ हिस्सों में. सरकार इस धमकी से निपटने के लिए कितना तैयार है?
यह गंभीर मसला है. इसे अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में देखा जाना चाहिए. दरअसल, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस धमकी के मद्देनजर सख्त कदम उठाने चाहिए. जहां तक भारत का सवाल है तो अल जवाहिरी के ‘घातक दर्शन’ को भारतीय मुसलिम समुदाय में कोई समर्थन नहीं है. हकीकत यह है कि भारतीय मुसलमानों को यहां के लोकतंत्र और विविधतापूर्ण समाज पर गर्व है. कुछ लोग भ्रमित और पथभ्रष्ट हो सकते हैं, लेकिन सरकार ऐसे लोगों से निबटने के लिए पूरी तरह सक्षम है.
(गवर्नेस नाउ से साभार)