सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज मार्कंडेय काटजू ने आज अपने ब्लॉग पर जो कुछ लिखा है वह हमारे देश में जजों की नियुक्ति पर कई सवाल खड़े करता है. काटजू ने लिखा है कि हमारे देश में हाईकोर्ट के जज अपनी प्रतिभा के बल पर नहीं बल्कि पहचान और पहुंच के बल पर नियुक्त होते रहे हैं.
काटजू ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील का उदाहरण देते हुए लिखा है कि उनकी नियुक्ति जज के पद पर सिर्फ इसलिए हुई, क्योंकि उनका परिवार आजादी के पहले से ही कांग्रेस का समर्थक था और उक्त जज पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अंध भक्त थे.
काटजू ने लिखा है कि उक्त जज को हाईकोर्ट में एक विदूषक(राजदरबार में राजा को खुश करने वाला) के तौर पर जाना जाता था. लेकिन वे लोगों की सोच से ज्यादा स्मार्ट थे और अपना हित साधना जानते थे. काटजू ने लिखा है कि उक्त जज ने उन्हें खुद इस बात की जानकारी दी थी, कैसे उनकी नियुक्ति जज के सम्मानित पद पर हुई थी.
काटजू ने लिखा है कि एक बार वे महाशय दिल्ली गये और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनके आवास पर मुलाकात की. यहां उन्होंने अपनी विदूषक कला का परिचय देते हुए उनसे कहा, माताजी आप देवी दुर्गा की तरह सर्वशक्तिशाली हैं. दुनिया में कोई ऐसा काम नहीं जो आप नहीं कर सकतीं.
आपने ज्ञानी जैल सिंह जैसे अनपढ़ व्यक्ति को देश का राष्ट्रपति बना दिया, तो मैं मानता हूं कि आप कुछ भी कर सकतीं हैं. इसके बावजूद अगर आप मुझे अगर छोटी सी चीज नहीं दे पा रही हैं यानी हाईकोर्ट के जज के पद पर नियुक्त नहीं करवा पा रहीं हैं, तो इसका अर्थ यही हुआ कि भगवान नहीं चाहता है कि मैं हाईकोर्ट का जज बनूं.
जज के इन शब्दों को सुनने के बाद इंदिरा गांधी इतनी प्रभावित हो गयीं कि उन्होंने अपने सचिव से कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में किसी भी जज की नियुक्ति तब तक नहीं होगी, जब तक की उक्त जज की नियुक्ति न हो जाये. तो इस विधि से वह भद्र पुरुष हाई कोर्ट के जज बने और अपनी विदूषक कला(चमचागीरी) का परिचय दिया.
सेवानिवृत्ति के बाद वर्ष 2005 में महाशय को विजिलेंस की टीम ने ट्रेन में गलत तरीके से सफर करते हुए गिरफ्तार कर लिया था. वे एसी-2 टीयर में सफर कर रहे थे और उनके पास जो पास था, उसकी तारीख खत्म हो चुकी थी. जज महाशय को सेवा के बदले मिलने वाले लाभ में वह पास भी शामिल था और उस पास की तारीख वर्ष 2001 में ही खत्म चुकी थी.
अपने दूसरेब्लॉग में काटजू ने वर्तमान न्याय व्यवस्था की तुलना अकबर के काल से करते हुए आइना ए अकबरी का उदाहरण दिया है. उन्होंने लिखा है कि बादशाह अकबर ने अपने शासनकाल के दौरान न्यायाधीशों को यह निर्देश देकर रखा था कि भले ही न्याय के लिए आवेदन करने वालों को न्याय देर से मिले लेकिन धर्म या संप्रदाय के नाम पर प्रभावित होकर कोई काम नहीं करेगा.