उपवास के बावजूद भी मोदी को कहां से मिलती है काम करने की ऊर्जा

नयी दिल्लीः दुनिया के सबसे ताकतवर और सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रमुख नरेंद्र मोदी और बराक ओबामा के बीच हुई मुलाकात बेहद अहम थी. इस मुलाकात के वक्त डिनर में कई लजीज व्यंजन परोसे गये. गौर करने वाली बात यह थी कि इस डिनर पार्टी में कोई मांसाहारी भोजन नहीं था. कई तरह के पेय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 30, 2014 6:47 PM

नयी दिल्लीः दुनिया के सबसे ताकतवर और सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रमुख नरेंद्र मोदी और बराक ओबामा के बीच हुई मुलाकात बेहद अहम थी. इस मुलाकात के वक्त डिनर में कई लजीज व्यंजन परोसे गये. गौर करने वाली बात यह थी कि इस डिनर पार्टी में कोई मांसाहारी भोजन नहीं था. कई तरह के पेय पदार्थ थे.

लेकिन उन्होंने अपने सामने परोसी गयी थाली को छुआ तक नहीं और दूसरे मेहमानों को शुरू करने का अनुरोध किया. उन्होंने यहां सिर्फ गर्म पानी पिया. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने इसकी जानकारी दी और उन दोनों के बीच हुई मुलाकात का जिक्र किया. मोदी के समर्थक सोशल मीडिया और आपसी बातचीत में नरेंद्र मोदी के उपवास की चर्चा कर रहे हैं. उपवास के बावजूद भी मोदी को इतनी ऊर्जा कहां से मिलती है.

बरसों से रख रहे हैं उपवास
नरेंद्र मोदी साल में दोनों नवरात्र के अवसर पर उपवास रखते है. इस दौरान वह सिर्फ पानी पीकर अपना सारा काम करते हैं. मोदी इस दौरान कुछ नहीं खाते. मोदी लगभग 40 साल से उपवास रख रहे हैं. इन दिनों वह अपनी दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं लाते और अपना काम ठीक उसी तरह करते हैं जैसे सामान्य दिनों में करते हैं. प्रधानमंत्री मोदी 26 से 30 सितंबर तक अमेरिकी दौरे पर रहे और इस दौरान उनकी बराक ओबामा से दो बार मुलाकात हुई. भोज में परोसे गए एक से एक लजीज व्यंजनों में से एक दाना भी नहीं चखा. हालांकि प्रोटोकॉल का ध्यान रखते हुए उनके सामने थाली परोसी गयी थी. मोदी अपने उपवास के कारण अमेरिका में एक अन्न का दाना तक ग्रहण नही किया. मोदी की आस्था और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास कई दौरो में दिखा है. पहली बार जब मोदी जीतने के बाद बनारस पहुंचे, तो उन्होंने विधिवत पूजा पाठ की. इसके अलावा जब उन्होंने नेपाल दौरा किया तो वहां भी पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा पाठ की.
कहां से मिलती है ऊर्जा
मोदी अपनी नियमित दिनचर्या को लेकर काफी गंभीर हैं. सुबह उठकर योग करना उनकी दिनचर्या में शामिल है. उनके करीबियों का मानना है कि मोदी को योग से बहुत शक्ति मिलती है. नरेंद्र मोदी बचपन से ही योग करते आ रहे हैं. काफी कम उम्र में ही उनका रिश्ता आरएसएस से जुड़ गया. आरएसएस जुड़े रहने के कारण योग और व्यायाम से उनका अटूट नाता हो गया. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के भाषण में भी योग के महत्व को समझाया. उन्होंने देश की परंपरा और योग के महत्व को समझाते हुए योग दिवस मनाने की अपील की. नरेंद्र मोदी ने देश में भी योग को लेकर कई बार बातचीत की. उन्होंने योगा को एक्सप्लेन करते हुए कहा था , मन कुछ कहता है और शरीर कुछ करता है और समय हमें टकराव की दिशा में ले जाता है. जो इन तीनों चीजों में तालमेल बिठा पाता है उसे ही योग कहते हैं. साधारण भोजन और काम के प्रति मोदी संवेदनशीलता की चर्चा भी खूब रही है. मोदी की इच्छा शक्ति बहुत मजबूत है और इसी के कारण वह कई काम कर जाते हैं. मोदी दोपहर के भोजन में नास्ते के रूप में बहुत हल्का खाना पसंद करते हैं दोपहर का खाना भी वह बहुत कम खाते हैं. उन्हें गुजराती खाना पसंद है और दोपहर के भोजन के बाद कभी आराम नहीं करते. नरेंद्र मोदी लगातार 18 से 20 घंटे काम करते हैं. मोदी के मंत्रिमंडल में कई मंत्री ऐसे हैं जिन्हें आराम से काम करने की आदत थी. मोदी अपने मंत्रिमंडल से काम करवाना जानते हैं. उन्होंने लालकिले से अफसर और मंत्रियों को भी कहा था कि आप जितना काम करेंगे मैं उससे ज्यादा काम करूंगा. मोदी कई बार आधी रात में भी अपने मंत्रियों को फोन पर काम के आदेश देते हैं.
व्यस्तता के बाद भी रखा परंपरा का खयाल
देश के प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के पास कई जिम्मेवारियां है. एक प्रधानमंत्री को कई कार्यक्रम में शामिल होना होता है. जिस वक्त वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे उस वक्त भी उन्होंने नवरात्र का उपवास जारी रखा था. इस परंपरा को उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नहीं तोड़ा. देश के प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के लिए अमेरिका यात्रा बेहद महत्वपूर्ण थी. इस दौरे से देश की कई उम्मीदें टिकी थी. यूएन में मोदी का भाषण, मेडिसन स्क्वायर में मोदी का प्रवासियों का संबोधन, बड़ी कंपनियों के सीईओ से मुलाकात, ओबामा और उनकी मुलाकात कई ऐसे कार्यक्रम थे जिनमें प्रधानमंत्री को कई मुद्दों पर बेहद गंभीर बातचीत करनी थी. लेकिन उपवास के बावजूद उन्होंने एक साधारण व्यक्ति से बढ़कर काम किया. कई कार्यक्रम में वह घंटों बोले, यहां तक की यूएन में भी उन्होंने 15 मिनट की जगह 34 मिनट का भाषण दिया. इतनी वयस्तता के बाद भी मोदी ने उपवास को नहीं टाला.
नये राजनीतिक युग में भी उपवास
भारत की राजनीतिक परंपरा मूल रूप से पारंपरिक रही है. नरेंद्र मोदी गांधी की उन विचारधाराओं को आगे लेकर जाने की कोशिश में हैं जिनमें 2 अक्टूबर से शुरू किया जा रहा सफाई अभियान बेहद महत्व रखता है. लंबे समय तक कांग्रेसी गांधीवाद या गांधीवादी मूल्यों के इर्द गिर्द कायम रहे. 90 के दशक के बाद इसमें धीरे- धीरे बदलाव होने लगा. लेकिन उसी 90 व 2000 के दशक में नरसिंम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी ने धोती कुर्ता पहनकर राजनीति की पर गांधी वादी मूल्य और प्रयोग किनारे लग गये, गांधी के तमाम प्रयोगों में उपवास उनका अभिनव प्रयोग था व उपवास के माध्यम से प्रायश्चित करते मौन धारण करते और ईश्वर का भजन करते. मोदी ने सद्भावना उपवास और मौन व्रत भी रखा था गांधी जहां राम-राम बोला करते थे वहीं नरेंद्र मोदी गीता लेकर घुमा करते हैं.

Next Article

Exit mobile version