स्वच्छता के लिए लोगों के व्यवहार व सोच में बदलाव लाना है सबसे जरूरी

अपने देश में हर सद प्रयासों की खिल्ली उड़ाने की बड़ी अजीब परंपरा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा गांधी जयंती पर शुरू किये गये स्वच्छ भारत अभियान का सोशल मीडिया पर या इसका राजनीतिकरण कर ऐसे और दूसरे प्रयासों का मजाक उड़ाना उचित नहीं है. पिछले पखवाडे अपने कर्नाटक दौरे के दौरान जब प्रधानमंत्री […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 2, 2014 8:59 PM

अपने देश में हर सद प्रयासों की खिल्ली उड़ाने की बड़ी अजीब परंपरा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा गांधी जयंती पर शुरू किये गये स्वच्छ भारत अभियान का सोशल मीडिया पर या इसका राजनीतिकरण कर ऐसे और दूसरे प्रयासों का मजाक उड़ाना उचित नहीं है. पिछले पखवाडे अपने कर्नाटक दौरे के दौरान जब प्रधानमंत्री ने गांधी जयंती पर स्वच्छता अभियान का शुभारंभ करने व खुद हाथ में झाडू लेकर सफाई करने का एलान किया था, तो उसके बाद ही यह एक सार्वजनिक विमर्श का मुददा बन गया.

भले ही इस अभियान को आज आरंभ किया गया हो, लेकिन दफ्तरों में, स्कूलों में व अन्य सामाजिक दायरों में इस पर लोगों ने काम आरंभ कर दिया था. छोटे बच्चे भी प्रधानमंत्री की पहल से प्रभावित हो चुके थे और वे निजी स्तर पर इसके लिए जागरूक हो रहे हैं. मोदी ने अगर स्वच्छता को बापू से जोड़ कर अगर इसे सार्वजनिक विमर्श का आज केंद्रबिंदु बना दिया तो क्या यह किसी भी तरह अनुचित है.

बापू की जयंती को आरामतलबी का दिन बनाने के बजाय अगर देश के लाखों सरकारी कर्मियों ने सांकेतिक ही सही स्वच्छता के कार्य में योगदान दिया तो यह एक उपलब्धि ही है. अगर आज स्कूल के बच्चे खुद सफाई कर रहे हैं, स्कूलों मेंउस पर चर्चा हो रही है तो यह हमारी अगली पीढी के लिए अच्छा ही होगा. इस अभियान से सरकारी कार्यालयों की गंदगी भी कम होगी. अच्छे-अच्छे सरकारी कार्यालय कूडे की ढेर पर नजर आती हैं.

इन सब के बीच सबसे अहम है आम आदमी में व्यवहारगत बदलाव आना. गंदगी का सबसे प्रमुख कारण लोगों की स्वच्छता को लेकर उदासीनता व उसमें रुचि नहीं लेना है.लोग अपने घर का कचरा रोड पर फेंकते हैं. उसे उसकी तय जगह कूडेदान में नहीं फेंकते. अगर रेल से यात्रा करते हैं, तो गंदगी अपनी सीट के नीचे ही फेंकते हैं, उसे खिडकी से बाहर या रेल की कचड़े के डब्बे में नहीं फेंकते है. इन सब आदतों में बदलाव लाना जरूरी है.

स्वच्छता को लेकर हुए कार्यक्रम के बाद भी लोगों ने जिस तरह पानी की बोतलें व अन्य चीजें छोड दी, उसमें भी वही मानसिकता व व्वहारगत समस्या दिखती है. पर, आज से शुरू हुए अभियान का अगर 10 प्रतिशत भी परिणाम मिला तो देश बहुत हद तकस्वच्छ हो जायेगा.

पढिए मोदी द्वारा लोगों को स्वच्छता के संबंध में दिलाये गये शपथ का मूल पाठ

महात्मा गांधी ने जिस भारत का सपना देखा था, उसमें सिर्फ राजनीतिक आजादी ही नहीं थी, बल्कि एक स्वच्छ एवं विकसित देश की कल्पना भी की थी. महात्मा गांधी ने गुलामी की जंजीरों को तोडकर मां भारती को आजाद कराया. अब हमारा कर्तव्य है कि गंदगी को दूर करके भारत माता की सेवा करें. मैं शपथ लेता हूं कि मैं स्वयं स्वच्छता के प्रति सजग रहूंगा और उसके लिए समय दूंगा. हर वर्ष 100 घंटे यानी हर सप्ताह दो घंटे श्रमदान करके स्वच्छता के इस संकल्प को चरितार्थ करुंगा.

मैं न गंदगी करुंगा, न किसी और को करने दूंगा. सबसे पहले मैं स्वयं से, मेरे परिवार से, मेरे मोहल्ले से, मेरे गांव से एवं मेरे कार्यस्थल से इसकी शुरुआत करुंगा. मैं यह मानता हूं कि दुनिया के जो भी देश स्वच्छ दिखते हैं, उसका कारण यहहै कि वहां के नागरिक गंदगी नहीं करते और न ही होने देते हैं. इस विचार के साथ-साथ मैं गांव-गांव और गली-गली स्वच्छ भारत मिशन का प्रचार करुंगा.

मैं आज जो शपथ ले रहा हूं, वह अन्य 100 व्यक्तियों से भी करवाऊंगा, वे भी मेरी तरह स्वच्छता के लिए 100 घंटे दें, इसके लिए प्रयास करुंगा. मुझे मालूम है कि स्वच्छता की तरफ बढाया गया मेरा एक कदम पूरे भारत देश कोस्वच्छ बनाने में मदद करेगा.

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