56 इंच के सीने वाले पीएम मोदी को कहीं रणनीतिक चुनौती तो नहीं दे रहा है पाकिस्तान-चीन?
नयी दिल्ली : कालिदास की मशहूर सुक्ति है स्तुति किम न तुष्टतयो अर्थात प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस समय महाराष्ट्र-हरियाणा में लगातार अपनी चुनावी रैलियों में रामायण और महाभारत काल से शुरू कर कांग्रेस काल तक में भारत का डंका दुनिया में सिर्फ उनके कार्यकाल में ही बजने का दावा कर […]
नयी दिल्ली : कालिदास की मशहूर सुक्ति है स्तुति किम न तुष्टतयो अर्थात प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस समय महाराष्ट्र-हरियाणा में लगातार अपनी चुनावी रैलियों में रामायण और महाभारत काल से शुरू कर कांग्रेस काल तक में भारत का डंका दुनिया में सिर्फ उनके कार्यकाल में ही बजने का दावा कर रहे हैं, उसी समय पाकिस्तानी सेना एक दशक बाद सबसे गंभीर व आक्रामक तरीके से भारतीय सीमा पर गोलीबारी कर रही है. कम से कम कमजोर माने जाने प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ऐसे हालात नहीं आए. सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार 2003 में ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई थी, तब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे. एक ओर जहां सीमा पर सात भारतीय मारे जा चुके हैं और 50 से अधिक घायल हो चुके हैं, वहीं मोदी अपनी पार्टी के देश के लिए दो सूबों की चुनावी जंग को जितने के अभियान में जी-जान से जुटे हैं.
यह सही है कि भारतीय सुरक्षा बल सीमा पर पाकिस्तान गोलीबारी का माकूल जवाब दे रहे हैं, पर भारतीय सेना की यह काबिलियत उसकी अपनी बनायी हुई है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खुद का योगदान शून्य है. बल्कि नयी परिस्थितियों में मोदी के लिए भारतीय सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ाना भी एक चुनौती है. जिस तरह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत दौरे के दौरान ही 1000 चीनी सैनिक भारत के चुमार सेक्टर में भारतीय सीमा में घुस आये वह भी पीएम मोदी के लिए 56 इंच के सीने के दावे के सामने एक चुनौती है. इसलिए पहले नीतीश कुमार और अब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री का 56 इंच का सीना कहां गया. कांग्रेस ने एक कदम और आगे बढ़ कर कहा है कि पीएम मोदी का सीना तो 56 इंच का नहीं बल्कि 5.6 इंच का है.
भले पीएम मोदी व उनकी टीम अपनी कूटनीतिक उपलब्धियों लाख डंका पिटे, लेकिन कड़वी हकीकत यही है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हालिया गोलीबारी के मामले में संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून के प्रवक्ता ने उनके हवाले से कहा है कि भारत-पाकिस्तान को कश्मीर विवाद शांति के लिए आपसी बातचीत से सुलझाना चाहिए. यह सच है कि मून ने अभी भारत-पाक को आपसी बातचीत से ही मामले को सुलझाने को कहा है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि यूएनओ की नजर में अब भी यह मामला द्विपक्षीय है. लेकिन वर्षो से
सीमा पर गोलीबारी व अलगाववादियों को बढ़ावा देकर वह चाहता है कि इस मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण हो जाये.
प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में सीमा पर दबाव काफी बढ़ा है. सीमा विवाद के कारण हाल ही में हमारे सेना प्रमुख ने अपनी विदेश यात्र अंतिम समय में रद्द की थी. मोदी जब प्रधानमंत्री नहीं थे, तब कांग्रेस की घेराबंदी करने के लिए भी वे पाकिस्तान की धृष्टता व वहां के द्वारा प्रायोजित आतंकवाद को राजनीतिक मुद्दा बनाते थे. नि:संदेह मोदी का इसका राजनीतिक लाभ भी मिला. उन्होंने पाकिस्तान की आर्थिक घेराबंदी करने तक की बात कही थी. लेकिन, अब उनकी वे घोषणाएं सिफर हो गयी हैं. यह सच है कि चुनाव की तैयारी कर रहे देश के एक राजनीतिक नेता के बयान व चीजों को पेश करने का अंदाज और देश की जिम्मेवारी संभाल रहे राष्ट्रनेता की कूटनीतिक व सुरक्षा नीतियों में मौलिक व आवश्यक अंतर होता है. लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान और चीन आपसी समझ से भारत के मजबूत नेतृत्व व 56 इंच के सीने होने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री की छवि को तो उनके देशवासियों की नजर में ऐसा कर चुनौती नहीं दे रहा है.