अब डीएनए जांच से साबित होगी साथी की बेवफाई

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि जीवनसाथी की बेवफाई साबित करने के लिए बच्चे की डीएनए जांच की इजाजत पति या पत्नी के विरोध के बावजूद दी जा सकती है. न्यायालय ने कहा कि यदि ऐसी जांच का प्रतिरोध किया जाता है तो इसका प्रतिकूल मतलब विरोध करने वाले व्यक्ति के खिलाफ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 16, 2014 6:57 AM
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि जीवनसाथी की बेवफाई साबित करने के लिए बच्चे की डीएनए जांच की इजाजत पति या पत्नी के विरोध के बावजूद दी जा सकती है.
न्यायालय ने कहा कि यदि ऐसी जांच का प्रतिरोध किया जाता है तो इसका प्रतिकूल मतलब विरोध करने वाले व्यक्ति के खिलाफ निकाला जा सकता है. न्यायमूर्ति जेएस केहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा है जिसके तहत एक बच्चे की डीएनए जांच का निर्देश दिया गया था.
यह निर्देश उस वक्त की याचिका पर जारी किया गया था जिसने अपनी पत्नी पर बेवफाई का आरोप लगाते हुए कहा था उसकी पत्नी की किसी दूसरे व्यक्ति के साथ संबंध से इस बच्चे का जन्म हुआ.
पीठ ने कहा, ‘‘पति को लगता है कि उसके द्वारा लगाए गए आरोपों (पत्नी की बेवफाई का) को साबित करना सिर्फ डीएनए जांच के जरिए ही संभव है. तो, हम उनसे सहमत हैं. हमारे विचार से पति के लिए यह नामुमकिन होगा कि वह अपनी दलील में कही गई बातों की पुष्टि कर पाए. इसलिए हम इस बात से संतुष्ट हैं कि उच्च न्यायालय का निर्देश पूरी तरह से न्यायोचित है.’’
पीठ ने शीर्ष न्यायालय के पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि इसलिए यह स्पष्ट है कि अदालत को इसकी इजाजत है कि वह डीएनए जांच कराने की इजाजत दे, बशर्ते कि इसकी बेहद जरुरत हो. हालांकि, इसके पहले पक्षों के हितों को संतुलित कर लिया जाए.
हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि पत्नी उच्च न्यायालय के निर्देश का अनुपालन करने से इनकार करती है तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 144 में जिक्र की गई एक पूर्वधारणा बनाई जा सकती है.
पीठ ने कहा कि डीएनए जांच सर्वाधिक खरा और वैज्ञानिक रुप से उपयुक्त जरिया है जिसका इस्तेमाल पति बेवफाई के अपने आरोप की पुष्टि करने में कर सकता है. साथ ही, पति के आरोपों का खंडन करने के लिए ऐसा ही अधिकार पत्नी के पास भी होगा ताकि वह साबित कर सके कि वह बेवफा नहीं है.

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