टूजी मामला : विशेष लोक अभियोजक ने उच्चतम न्यायालय से अपना आदेश वापस लेने का आग्रह किया

नयी दिल्ली : विशेष लोक अभियोजक ने उच्चतम न्यायालय से सीबीआई निदेशक के आंगुतक सूची मामले में पोल खोलने वाले के नाम का खुलासा करने का अपना आदेश वापस लेने का आग्रह किया है. टूजी मामले में विशेष जन अभियोजक ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि पोल खोलने वाले की पहचान उद्घाटित करने से कोई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 16, 2014 2:06 PM

नयी दिल्ली : विशेष लोक अभियोजक ने उच्चतम न्यायालय से सीबीआई निदेशक के आंगुतक सूची मामले में पोल खोलने वाले के नाम का खुलासा करने का अपना आदेश वापस लेने का आग्रह किया है. टूजी मामले में विशेष जन अभियोजक ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि पोल खोलने वाले की पहचान उद्घाटित करने से कोई उद्देश्य हासिल नहीं होगा.

अभियोजक ने न्यायालय से कहा कि चूंकि सूचना सीबीआई निदेशक के निजी मामले से संबंधित नहीं है, ऐसे में लोगों को अधिकारी के रुप में उनके आचरण के बारे में जानकारी पाने का हक है. सीबीआई निदेशक का टू जी मामले के आरोपियों से मुलाकात करना निश्चय ही अनुचित है. इस बात का परीक्षण करना होगा कि क्या ऐसे आचरण अदालत की अवमानना हैं या नहीं.

विशेष लोक अभियोजक आनंद ग्रोवर ने न्यायालय से यह भी अनुरोध किया कि वकील प्रशांत भूषण को जांच ब्यूरो के निदेशक के निवास की आगंतुक सूची सहित तमाम दस्तावेज सौंपने वाले व्हिसिल ब्लोअर :भंडाफोड करने वाला : का नाम जानने पर जोर नहीं दिया जाये.

उन्होंने कहा कि जनता को ब्यूरो के निदेशक के आचरण के बारे में जानने का अधिकार है क्योंकि यह उनके निजी मामले से संबंधित नहीं है. उन्होंने कहा कि कोई भी कानून रजिस्टर में शामिल सूचना को संरक्षण प्रदान नहीं करता है और शीर्ष अदालत को इसकी जांच करनी चाहिए.

ग्रोवर ने अपने 15 पेज की रिपोर्ट में कहा है कि लोक अभियोजक ने कहा कि 2जी मामलों की जांच और मुकदमे के दौरान सीबीआई निदेशक और इस प्रकरण के अभियुक्तों के प्रतिनिधियों की बार बार मुलाकात निश्चित ही अनुचित है, इस बात की जांच करनी होगी कि क्या ऐसा कृत्य न्यायालय की अवमानना कानून 1971 के तहत आपराधिक अवमानना है और वे न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने समान है.

उन्होंने कहा कि यह सूचना निदेशक के निजी मामलों से संबंधित नहीं है और नागरिकों को आधिकारिक हैसियत में उनके आचरण के बारे में जानने का अधिकार है और निदेशक किसी सांविधानिक अधिकार के उल्लंघन का दावा नहीं कर सकते हैं.

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