सीआरपीएफ ने की बेहतर हथियारों की मांग
नयी दिल्ली: केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानिदेशक प्रणय सहाय ने आज कहा कि सुरक्षाबलों के लिए हथियार और उपकरणों के आयात अच्छी स्थिति में नहीं हैं क्योंकि विदेशी निर्माता भारतीय आवश्यकताओं पर पूरी तरह खरे नहीं उतरते. सहाय ने कहा कि स्थानीय कंपनियों द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान एवं विकास भी अपेक्षित स्तर […]
नयी दिल्ली: केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानिदेशक प्रणय सहाय ने आज कहा कि सुरक्षाबलों के लिए हथियार और उपकरणों के आयात अच्छी स्थिति में नहीं हैं क्योंकि विदेशी निर्माता भारतीय आवश्यकताओं पर पूरी तरह खरे नहीं उतरते.
सहाय ने कहा कि स्थानीय कंपनियों द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान एवं विकास भी अपेक्षित स्तर का नहीं है. उन्होंने उद्योग चेंबर पीएचडीसीसीआई द्वारा आयोजित “उद्योग जगत से उग्रवाद रोधी बलों की उम्मीद” विषयक एक सम्मेलन में कहा कि हमने देखा है कि स्थानीय उद्योग ऐसे उपकरण या हथियार नहीं बना पाता, जिनकी बलों को आवश्यकता है.
उपकरणों और हथियारों का व्यापक तौर पर आयात होता है और इसे लेकर भी कोई अच्छी स्थिति नहीं है. विदेश में बनने वाले उपकरण हमारी आवश्यकताओं पर पूर्णतया खरे नहीं उतरते. सहाय ने कहा कि मानवरहित हवाई यान (यूएवी) जैसे अत्याधुनिक उपकरण और हथियारों को विदेश से मंगाने में समय लगता है और इससे (उग्रवाद रोधी) अभियान प्रभावित हो रहा है.
उन्होंने कहा कि केंद्रीय सुरक्षाबलों की खरीद आवश्यकताओं में उतार चढाव होता है इसलिए केवल दूसरे पायदान वाली कंपनियां ही बिक्री प्रक्रिया में हिस्सा लेती हैं और ऐसे में डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन), आयुध कारखाने और केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों जैसे स्वदेशी संगठनों पर निर्भर होना पडता है.सहाय ने कहा कि भारतीय कंपनियों और सार्वजनिक उपक्रमों की अपनी सीमाएं हैं. वे उतनी मात्रा में निर्माण नहीं कर पाती हैं, जितनी हमें जरुरत होती है.
सुरक्षाबलों के लिए उपलब्ध भोजन के बारे में सहाय ने कहा कि अन्य देशों के मुकाबले भारत में किसी अभियान के दौरान सुरक्षा जवानों को दिया जाने वाला “रेडी टू ईट (खाने के लिए तैयार) भोजन” भारी होता है और उसमें पोषण तत्व भी कम होते हैं.उन्होंने कहा कि सीआरपीएफ कमांडो अपने साथ 1 . 74 किलो वजन का खाने का पैकेट लेकर चलता है जबकि अमेरिकी बलों में यह वजन 600 ग्राम होता है. सहाय ने कहा कि हमें हेलमेट की आवश्यकता है जो राइफल की गोलियों से बचा सके लेकिन हमारे पास जो (हेलमेट) उपलब्ध है, वह जवानों को केवल पिस्तौल की फायरिंग से बचाता है.
उन्होंने कहा कि किसी अभियान में लगे जवानों को दी जाने वाली जीवन रक्षक मेडिकल स्ट्रिप “ब्रांडेड” होती है और इनका आयात करना मुश्किल हो जाता है. सहाय ने भारतीय उद्योग से कहा कि वे सुरक्षाबलों को आवश्यक हथियार और उपकरणों का निर्माण कर उग्रवाद के खिलाफ लडाई में योगदान करे. इन उपकरणों में बारुदी सुरंग रोधी वाहन, नाइट विजन उपकरण और जीपीएस सेट शामिल हैं.
सहाय के नजरिये से सहमत सशस्त्र सीमा बल के महानिदेशक अरुण चौधरी ने कहा कि भारत में रक्षा उद्योग के स्वदेशीकरण की आवश्यकता है. हमारी जरुरत के उपकरणों और हथियारों का निर्माण चूंकि स्थानीय स्तर पर नहीं होता इसलिए उनकी कीमत काफी अधिक हो जाती है.