कांग्रेस की किसी हार की जिम्मेवारी सोनिया-राहुल पर नहीं!
नयी दिल्ली : लगातार विधानसभा चुनाव में मिल रही हार की दर्द से कराह रही कांग्रेस एक बार फिर अपने दर्द के कारणों पर परदा डालने के अभियान में जुट गयी है. पार्टी नेता व प्रवक्ताओं की फौज पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बचाव में जुट गयी है. कांग्रेस नेता शोभा […]
नयी दिल्ली : लगातार विधानसभा चुनाव में मिल रही हार की दर्द से कराह रही कांग्रेस एक बार फिर अपने दर्द के कारणों पर परदा डालने के अभियान में जुट गयी है. पार्टी नेता व प्रवक्ताओं की फौज पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बचाव में जुट गयी है. कांग्रेस नेता शोभा ओझा ने कांग्रेसियों के चीर-परिचित संकल्प को दोहराते हुए कहा है कि राहुल गांधी हमारे नेता हैं और वे चिंता न करें, हम उनके साथ खड़े हैं.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अर्णव गोस्वामी ने इस मुद्दे पर चुटकी लेते हुए सवाल पूछा है कि अगर राहुल गांधी लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव या म्यूनिसिपल चुनाव में कांग्रेस की हार के लिए जिम्मेवार नहीं है, तो फिर कौन जिम्मेवार है? ट्विटर पर यह सवाल भी उठ रहा है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी क्या प्रेस कान्फ्रेंस कर इस हार की जिम्मेवारी लेंगे. बहरहाल, कांग्रेस के नेता सोनिया-राहुल के बचाव में लगे हुए हैं.
मीडिया में आ रही खबरें सच साबित हुई तो साफ है कि महाराष्ट्र व हरियाणा में हार की सजा दोनों राज्यों में सरकार का नेतृत्व करने वाले क्रमश: पृथ्वीराज चह्वाण व भूपिंदर सिंह हुड्डा को मिलेगी. आश्चर्य की बात यह कि कांग्रेस ने चुनाव परिणाम से पूर्व ही अपने पार्टी प्रवक्ताओं की बैठक कर उन्हें यह निर्देश दे दिया कि सोनिया-राहुल का बचाव करना है और हार मिलने पर उसके लिए कैसे अन्य कारण बताये जायें. टीवी बहसों व टीवी पर प्रतिक्रिया देने वाले कांग्रेस नेता अब भी सोनिया-राहुल का बचाव कर रहे हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पूर्व में भी पार्टी की हार के सवाल पर अपने पुत्र राहुल गांधी का बचाव करती रही हैं. उन्होंने पिछले दिनों जम्मू कश्मीर के दौरे पर यह भी कहा कि एनसीपी से गंठबंधन टूटने के लिए वे, राहुल या उनकी पार्टी जिम्मेवार नहीं है. कांग्रेस की परेशानी यह है कि वह चाहती है कि वह राहुल गांधी उसका स्वाभाविक नेतृत्व करे. ऐसा राहुल व सोनिया भी चाहते हैं. लेकिन राहुल गांधी मोर्चे पर आकर पार्टी का नेतृत्व व बचाव नहीं करते.
लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने यह संकेत दिया कि जीत मिलने पर वे प्रधानमंत्री बनने को तैयार हैं, लेकिन हार मिलने पर वे संसद में पार्टी का नेतृत्व करने आगे नहीं आये, बल्कि एक बुजुर्ग नेता को आगे कर दिया. जब पार्टी राजनीतिक मुश्किलों में फंसी होती है, तब वे मीडिया के सामने नहीं आते और पार्टी के बचाव के लिए बयान जारी नहीं करते. सक्रिय नेता की बजाय वे मौसमी नेता के रूप में दिखते हैं. जब राजनीतिक रूप से सक्रिय होते हैं, तो खूब सक्रियता-आक्रमकता दिखाते हैं, फिर अचानक कई दिनों तक मीडिया से दूर रहते हैं. जबकि पार्टी का नेतृत्व करने वाले शख्स से यह उम्मीद की जाती है कि वह हर समय मीडिया के माध्यम से जनता के सामने रहे. अच्छे व बुरे दोनों मौकों पर.