हरियाणा विस चुनावः जाट लैंड में बदल गयी राजनीतिक फिजा

नयी दिल्लीः हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने इस जाट लैंड की राजनीतिक फिजा ही बदल दी है. इस जीत का श्रेय पार्टी वहां की जनता और कार्यकर्ताओं को दे रही है. इस जीत के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश करें, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 19, 2014 5:45 PM

नयी दिल्लीः हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने इस जाट लैंड की राजनीतिक फिजा ही बदल दी है. इस जीत का श्रेय पार्टी वहां की जनता और कार्यकर्ताओं को दे रही है. इस जीत के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश करें, तो भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में जातिगत समीकरण का पूरा ध्यान रखा. पार्टी ने चौधरी वीरेन्द्र सिंह और कैप्टन अभिमन्यु को जाट चेहरे के रूप में पेश किया.

पार्टी का यह कदम सुनियोजित और दूरदर्शी था. इस कदम का फायदा भी भाजपा को पूरा मिला. इसके अलावा कई प्रमुख पार्टी से जब नेता टूटकर भाजपा में शामिल हुए तो भाजपा की ताकत हरियाणा में और मजबूत हुई. पार्टी ने सिर्फ जाट बल्कि राव इंद्रजीत सिंह जैसे प्रमुख यादव चेहरे का भी भरपूर इस्तेमाल किया. हरियाणा में जाट और यादव समुदाय प्रभावी है. जीत का एक बहुत बड़ा कारण मोदी लहर को भी माना जाता है.

अभी लोकसभा चुनाव में पार्टी को शानदार जीत मिली है. इसका असर जनता पर अभी भी सिर चढ़कर बोल रहा है. नरेंद्र मोदी ने भी उपचुनाव के बाद मोदी लहर पर उठ रहे सवाल के जवाब के रूप में विधानसभा चुनाव में ताबड़तोड़ रैलियां की. हरियाणा में मोदी की रैलियों में उमड़ती भीड़ ने भी इस जीत की ओर इशारा कर दिया था. पार्टी की जीत में मुख्य रूप से अकेला चुनाव में विश्वास के साथ खड़ा होना भी अहम रहा. पार्टी हरियाणा में कभी अकेले दम पर चुनाव नहीं लड़ी. उसे हमेशा क्षेत्रीय पार्टियों के दम पर खड़ा होना पड़ा. भाजपा ने यहां कभी भी दो अंक में सीटें नहीं जीती.
लेकिन इस बार पार्टी ने आत्मविश्वास के साथ जातिगत समीकरणों का ध्यान रखा ही अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद बनाये रखा. शाह पूर्व के अध्यक्षों की कार्यशैली से हटकर काम करते हैं.वे चुनाव में पार्टी की जिम्मेवारी प्रभारी महासचिवों पर नहीं छोड़ते बल्कि सीधे चुनाव वाले राज्य में नेता एवं कार्यकर्ता से संवाद करते हैं. उन्हें इसके लिए प्रभारी महासचिव या राज्य और केंद्र के किसी बड़े नेता के रूप में किसी मध्यस्थ की जरूरत नहीं पड़ती है. इसका बेहतर परिणाम भाजपा को चुनाव में मिला. शाह ने आज प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी इस बात की चर्चा करते हुए कहा कि हम अपनी कार्यकर्ताओं की कीमत पर किसी के साथ गंठबंधन नहीं चला सकते. शाह की यह कार्यशैली भाजपा कार्यकर्ताओं में उत्साह भरती है. इसका परिणाम बेहतर जीत के साथ पार्टी को हरियाण व महाराष्ट्र में मिला है.
हरियाणा में इस बार शाह ने बूथ पर कार्यकर्ताओं की तैनाती पर पूरा जोर दिया. माना जाता है कि इसी कारण पहली बार राज्य में 76.5 फीसद मतदान हुआ. इससे पहले 1967 में 72.65 फीसद मतदान हुआ था. प्रदेश में हमेशा कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल के बीच मुख्य लड़ाई रही है, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में जीत के बाद भाजपा हरियाणा के मैदान में अकेले ही उतरी और अन्य पार्टियों के लिए चुनौती बनीं.
साल 2009 के चुनाव के आंकड़ों को देखें तो उस वक्त भी कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला था. कांग्रेस को मात्र 40 सीटें मिली थी, जबकि वहां बहुमत के लिए 90 सीटों में से सामान्य 46 सीटें चाहिए. हरियाणा में दस साल मुख्यमंत्री भूपिंद्र सिंह हुड्डा ने शासन किया है उन्होने भी अपनी पार्टी की हार स्वीकर करते हुए कहा, मैं जनमत का सम्मान करता हूं और हार स्वीकार करता हूं. साथ ही कहा कि मैं नयी बनने वाली सरकार को बधाई देता हूं और आशा करता हूं कि वे इसी गति से लोगों के लिए काम करेंगे.
किसने जीती कितनी सीटें
हरियाणा में विधानसभा चुनाव के परिणाम
पार्टी जीत
भारतीय जनता पार्टी 47
बहुजन समाज पार्टी 01
इंडियन नेशनल कांग्रेस 15
हरिय़ाणा जनहित कांग्रेस 02
इंडियन नेशनल लोकदल 19
शिरोमणी अकाली दल 01
अन्य
05

Next Article

Exit mobile version