महाराष्ट्र में भाजपा बहुमत के नजदीक, शिवसेना व एनसीपी दोनों समर्थन को तैयार

नयी दिल्ली : महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन कर उभरी है. 288 विधानसभा सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा 122 सीटों पर चुनाव या तो जीत चुकी है या फिर आगे चल रही है. जबकि उसकी पूर्व सहयोगी शिवसेना 64, कांग्रेस व एनसीपी 41-41 सीटों पर जीत चुकी है या आगे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 19, 2014 6:57 PM
नयी दिल्ली : महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन कर उभरी है. 288 विधानसभा सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा 122 सीटों पर चुनाव या तो जीत चुकी है या फिर आगे चल रही है. जबकि उसकी पूर्व सहयोगी शिवसेना 64, कांग्रेस व एनसीपी 41-41 सीटों पर जीत चुकी है या आगे चल रही है. हंगामेदार राजनीति करने वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना मात्र तीन सीटों पर सिमट गयी है. निर्दलीय छह, सपा एक, बहुजन विकास अगाडी दो, ऑल इंडिया मजलिस ए इत्थेदुल मुसलमीन तीन, बरिप्पा बहुजन महासंघ, पेसेंट एंड वर्कर पार्टी ऑफ इंडिया तीन सीटों पर जीत दर्ज करा चुकी है या आगे चल रही है.
चुनाव नतीजों से साफ है कि राज्य में अगली सरकार भाजपा के नेतृत्व में ही बनेगी. महाराष्ट्र में भाजपा को 26.7 प्रतिशत वोट मिले हैं. जबकि शिवसेना को 20.5, एनसीपी को 18.7, कांग्रेस को 18.1 प्रतिशत वोट मिले. भाजपा के लिए यह चुनाव परिणाम उत्सावर्धक है. मोदी व भाजपा के लहर में महाराष्ट्र में नारायण राणो जैसे कद्दावर नेताओं को भी हार का मुंह देखना पड़ा. भाजपा नेताओं को अनुसार, शिवसेना के साथ गंठबंधन का मुद्दा नामांकन के एक-दो दिन शेष रह जाने तक लटके होने के कारण पार्टी सीटों पर पर्याप्त मेहनत नहीं कर सकी, नहीं तो उसे वहां स्पष्ट बहुमत मिल जाता.
भाजपा ने शरद पवार का गढ़ माने जाने वाले मराठवाड़ा में भी शानदार प्रदर्शन किया है. उत्तर महाराष्ट्र, पश्चिमी महाराष्ट्र, मुंबई-ठाणो व पुणो में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया है. भाजपा अपने गढ़ विदर्भ में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रही है. एनसीपी पश्चिमी महाराष्ट्र में बेहतर प्रदर्शन कर किसी तरह अपनी इज्जत बचा सकी है.
भाजपा की इस जीत का श्रेय नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी व प्रदेश के नेताओं की मेहनत व तालमेल को जाता है. मराठी अस्मिता व गुजराती वर्चस्व को शिवसेना ने मुद्दा बनाने की कोशिश की. नरेंद्र मोदी इसका कभी सीधा जवाब नहीं दिया, बल्कि यह गिनाया की किस तरह उन्होंने मराठी महापुरुषों के प्रति अपना सम्मान बार-बार अपने काम के माध्यम से प्रकट किया है. उन्होंने इशारों में दबंगई व परिवार की राजनीति पर हमला किया. बहुत निचले स्तर के आरोप का जवाब देने की जरूरत पड़ी भी तो उसके के लिए प्रदेश इकाई के स्थानीय नेताओं को आगे किया गया. ताकि भाजपा को मराठी अस्मिता के तीर से जख्मी नहीं किया जा सके. मोदी की यह रणनीति सफल रही.
नरेंद्र मोदी ने शिवसेना से अलगाव के बाद भी राजनीति में गरिमा को बनाये रखा और कभी भी शिवसेना, बाला साहेब पर राजनीतिक हमला नहीं किया. वहीं, शिवसेना ने भाजपा को पितृपक्ष का कौवा बताने से लेकर हर तरह के तीखे राजनीतिक कटाक्ष किये. राजनीतिक गरिमा का प्रदर्शन करने के कारण भाजपा को इसका लाभ मिला.
मोदी ने महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस-एनसीपी के भ्रष्टाचार, किसानों की समस्या, युवाओं के लिए रोजगार को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया. मोदी के आक्रामक चुनाव प्रचार का भाजपा को भरपूर लाभ हुआ. जिसके परिणाम स्वरूप राज्य में सबसे बड़ी के रूप में उभर कर सरकार गठित करने के बिल्कुल करीब पहुंच गयी है. बहरहाल, शिवसेना व एनसीपी दोनों उसे सरकार गठन के लिए समर्थन देने को तैयार है.

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