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खट्टर को हरियाणा की कमान सौंपने के हैं गहरे निहितार्थ
राहुल सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब भाजपा में काम कर रहे संघ के प्रचारक मनोहर लाल खट्टर को 60 साल की उम्र में पहली बार चुनावी राजनीति में उतारा तो उसी समय यह साफ था कि मोदी व उनके सहयोगी अमित शाह ऐसा इसलिए कर रहे हैं, ताकि हरियाणा में पार्टी की जीत मिलने […]
राहुल सिंह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब भाजपा में काम कर रहे संघ के प्रचारक मनोहर लाल खट्टर को 60 साल की उम्र में पहली बार चुनावी राजनीति में उतारा तो उसी समय यह साफ था कि मोदी व उनके सहयोगी अमित शाह ऐसा इसलिए कर रहे हैं, ताकि हरियाणा में पार्टी की जीत मिलने पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जा सके. हालांकि आमतौर पर चमकदार चेहरों के पीछे भागने वाले मीडिया ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और भाजपा की कद्दावर नेता सुषमा स्वराज से कैप्टन अभिमन्यु व राव इंद्रजीत सिंह के नाम के मुख्यमंत्री के रूप में कयास लगते रहे.
राव इंद्रजीत व कैप्टन अभिमन्यु के बीच मुख्यमंत्री को लेकर प्रतियोगिता चुनाव प्रचार व परिणाम आने के बाद भी बार-बार सबके सामनेआती रही. चुनाव परिणाम आने के बाद शाही परिवार से आने वाले व यादव समुदाय के राव इंद्रजीत ने अपने समर्थक विधायकों को दिल्ली बुला कर मुख्यमंत्री बनने के लिए कुछ अधिक ही आतुरता दिखा दी. वहीं, अंतिम समय तक कैप्टन अभिमन्यु को यह भान रहा कि वे अमित शाह के करीबी और भरोसमंद हो चुके हैं, इसलिए कमान उन्हें ही सौंपी जायेगी. वहीं, पार्टी का कोई नेता यह भी कह रहा था कि जब राज्य में कोई पार्टी का नामलेवा भी नहीं था, तो वह ही भाजपा का झंडा ढो रहे थे, इसलिए हाइकमान को उन्हीं पर विश्वास जताना चाहिए. हालांकि इन सबके बीच संघ के करीबी रहे प्रदेश अध्यक्ष रामविलास शर्मा अपेक्षाकृत अधिक गंभीर उम्मीदवार थे.
लेकिन अंतिम समय में मनोहर लाल खट्टर अपनी मजबूत सांगठनिक पृष्ठभूमि के कारण मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने में सफल रहे हैं. रोहतक के बनियानी गांव में जन्मे खट्टर का शुरुआती दिनों से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ाव रहा है. देश के विभाजन के बाद उनका परिवार 1947 में पाकिस्तान वाले हिस्से से हरियाणा में आ बसा. मैट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें दिल्ली के सदर बाजार में दुकान चलाने के लिए परिवार ने भेज दिया. बाद में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक किया. 1977 तक 24 साल की उम्र में वे संघ से गहरे जुड़ चुके थे और 1980 आते-आते 27 साल की उम्र में वे प्रचारक बन गये और आजीवन विवाह नहीं करने व संगठन का काम करने का संकल्प ले लिया.
संघ ने बाद में उन्हें 1994 में भाजपा में काम करने के लिए भेज दिया. वे अपने गृह राज्य हरियाणा में पार्टी के अहम पद संगठन मंत्री का काम संभालते रहे हैं. भाजपा के सांगठनिक ढांचे में अध्यक्ष व संगठन मंत्री का पद सबसे अहम होता है. संगठन मंत्री को पार्टी की रीढ़ माना जाता है. खट्टर ने दो दशक तक पार्टी के सांगठनिक ढांचे को वहां खड़ा किया और अंतत: उसे शून्य से शिखर पर पहुंचा दिया. जाहिर है, उन्हें इसके बदले पार्टी से सम्मान मिलना था ही, और राज्य में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री का पद मिलना उनका सम्मान ही तो है.
हरियाणा का सीएम एक प्रचारक ही क्यों
हरियाणा की राजनीति बहुत दिलचस्प है. वहां की राजनीति में पूंजीपतियों, दबंगों व बड़े जातीय समुदायों का नेतृत्व करने वालों का ही दबदबा रहा है. मनोहर लाल खट्टर न पूंजीपति या उद्योगपति हैं और न ही दबंग या हरियाणा के बड़े जातीय समुदाय से आते हैं. वे रिफ्यूजी पंजाबी समुदाय के हैं. हां, वे संगठन के आदमी व कार्यकर्ता जरूर हैं. हरियाणा की राजनीति का भ्रष्टाचार व दबंगई राष्ट्रीय मीडिया की भी सुर्खियां बनता रहा है. मोदी जब पार्टी के हिमाचल प्रदेश के प्रभारी थे, तो खट्टर उनके सहयोगी के रूप में सह प्रभारी थे. जाहिर है मोदी खट्टर को करीब से जानते हैं. ऐसे में नरेंद्र मोदी-अमित शाह के जोड़ी ने एक निर्विवाद शख्स को जिसकी कभी कोई निजी महत्वाकांक्षा नहीं रही है, राज्य का मुख्यमंत्री बना कर हरियाणा की राजनीति को स्वच्छ बनाने का अभियान शुरू किया है.याद कीजिए हरियाणा की राजनीति के भ्रष्टाचार व दबंगई दोनों को मोदी ने चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनाया था.
कहां चूक गयी कांग्रेस
कांग्रेस के हरियाणा के सीएम रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने दस सालों तक हरियाणा की कमान संभाली. वे राज्य के दबंग जाट समुदाय से आते हैं. वहीं, हुड्डा व कुमारी शैलजा के बीच की राजनीतिक अनबन भी हमेशा में चर्चा में रही. दलित समुदाय से आने वाली शैलजा केंद्र में लंबे समय तक मंत्री रहीं और इशारों में हमेशा उन्होंने मुख्यमंत्री पद की इच्छा जतायी और हुड्डा से अपनी खुन्नस को प्रकट किया. हरियाणा में जाट समुदाय की दबंगई सर्वाधिक वहां के दलित समुदाय को ङोलनी पड़ी. कांग्रेस के साथ दिक्कत यह थी कि अगर वह हुड्डा की जगह शैलजा को प्रमोट करती तो उसे जाट वोटों से हाथ धोना पड़ता. वहीं, अमित शाह ने बड़े रणनीतिक ढंग से जाट चेहरे कैप्टन अभिमन्यु को आगे रखा. वहीं, दलितों का संगठन के लिए भरोसा जितने के लिए भी खूब काम किया. उन्होंने अपने दलित सांसदों को दलित बहुल इलाकों में चुनाव कार्य में लगाया. हरियाणा में 20 प्रतिशत दलित आबादी का भाजपा के पक्ष में झुकाव उसकी जीत का बड़ा कारण बना.
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