मायावती पैसे लेकर देती हैं उम्मीदवारों को टिकट : अखिलेश दास
अखिलेश दास भारतीय राजनीतिक के अजूबे शख्स हैं. वे दूसरी बार राष्ट्रीय मीडिया के केंद्र में आये हैं. वह भी तब जब उन्होंने बसपा को मायावती को कोसते हुए छोड़ दिया. इससे पहले वह तब राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छाये थे जब रहस्यमय तरीके से नवंबर 2008 में केंद्र की यूपीए सरकार में स्टील […]
अखिलेश दास भारतीय राजनीतिक के अजूबे शख्स हैं. वे दूसरी बार राष्ट्रीय मीडिया के केंद्र में आये हैं. वह भी तब जब उन्होंने बसपा को मायावती को कोसते हुए छोड़ दिया. इससे पहले वह तब राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छाये थे जब रहस्यमय तरीके से नवंबर 2008 में केंद्र की यूपीए सरकार में स्टील मंत्री होते हुए कांग्रेस छोड़ बहन मायावती के चरण स्पर्श कर बसपा में शामिल हो गये थे. सोनिया गांधी का भी उन्हें कांग्रेस में विश्वास हासिल था और युवावस्था में ही 35 वर्ष की उम्र में 1996 में वे कांग्रेस से राज्यसभा के सदस्य बन गये थे. इससे पहले 1993 में वे लखनऊ के मेयर चुने गये थे. संसद परिसर में 2008 में कांग्रेस छोड़ते वक्त उन्होंने अच्छा-खासा राजनीतिक बवाल काटा था. ऐसा कम ही होता है कोई नेता केंद्र के मंत्री बंद को त्याग कर किसी दूसरी पार्टी में शामिल हो जाये और ऐसा होता भी है, तो उसके पीछे लोगों को कोई रहस्य ही नजर आता है.
वह दौर भारतीय राजनीति में मायावती के उभार का दौर था. इस आशय की राजनीतिक रिपोर्टे लिखी जा रही थीं कि 2009 के लोकसभा चुनाव में अगर बहन मायावती ने 50 सीटें जीत लीं, तो देश की प्रधानमंत्री भी बन जायेंगी. स्पष्ट बहुमत के साथ तो देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तरप्रदेश में उनकी सरकार उस समय थी ही. उत्तरप्रदेश की राजनीति में दास की पहचान एक उद्योगपति राजनेता के रूप में है, जिनके कई तरह के कारोबार हैं और जो शख्स देश के सबसे बड़े निजी विश्वविद्यालयों में एक का संचालक है. बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त अखिलेश दास की राजनीति में प्रबंधन कौशल दिखता है, जब वह अचानक अपने भावी हितों का ख्याल रखते हुए चौंकाने वाले राजनीतिक कदम उठाते हैं. 2008 में भी उन्होंने चौंकाया था और 2014 में भी चौंका रहे हैं. उनके पास कानून व लोक प्रशासन की भी डिग्रियां हैं.
मायावती बोलीं, 100 करोड़ में मांग रहे थे राज्यसभा की सीट
बसपा सुप्रीमो बहन मायावती ने बुधवार को कहा कि अखिलेश दास 100 करोड़ रुपये में उनसे राज्यसभा की सीट मांग रहे थे. उन्होंने यूपी से राज्यसभा भेजे जाने वाले दो उम्मीदवारों के नामों का एलान भी किया. लखनऊ के मॉल एवेन्यू में प्रेस कान्फ्रेंस में पत्रकारों से उन्होंने कहा, अखिलेश ने 100 करोड़ रुपये की पेशकश की. उसने कहा कि इतना पैसा ले लीजिए और राज्यसभा में भेज दीजिए, मैंने मना कर दिया. बसपा धन्ना सेठों से नहीं, सर्वसमाज के सहयोग से चलने वाली पार्टी है. तुम अगर मुङो 200 करोड़ रुपये भी दोगे तो राज्यसभा का टिकट नहीं मिलेगा. इस दौरान मायावती ने राज्यसभा के लिए राजाराम व वीर सिंह को दोबारा उम्मीदवार बनाने की भी घोषणा की.
अखिलेश ने किया इनकार, लगाये टिकट बेचने के आरोप
उधर, दो दिन पहले बसपा की सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा दे चुके अखिलेश दास ने बसपा मुखिया मायावती के इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया है कि उन्होंने राज्यसभा का टिकट पाने के लिए उन्हें सौ करोड़ रुपये की पेशकश की थी. दास ने मायावती के आरोप के कुछ ही घंटों बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘मायावती जी से मेरी जो भी बात हुई वह बंद कमरे में हुई थी. मैंने आफर किया अथवा उन्होंने मांगा होगा यह सब लोगों के समझने की बात है.’’उन्होंने बसपा मुखिया पर पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि वे विधानसभा की आरक्षित सीटों के लिए 50-50 लाख और सामान्य सीटों के टिकट के लिए एक-एक करोड़ रुपये लेती हैं, जो दे पाते हैं वहीं टिकट पाते हैं.
छह वर्षो तक बसपा के महासचिव रह चुके अखिलेश दास ने दावा किया कि वे बसपा मुखिया की तरफ से भेजे एक नेता के बार-बार आग्रह पर कांग्रेस छोड़ कर बसपा में शामिल हुए थे. उन्होंने बताया, ‘‘मायावती ने मेरे सामने लखनऊ से लोकसभा का चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा. मेरे यह कहने पर कि मैं चुनाव जीत नहीं पाऊंगा, उन्होंने कहा कि मगर लखनऊ से मेरे लड़ने का प्रदेश में संदेश अच्छा जायेगा. इसलिए उन्होंने मुङो 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले 2008 में राज्यसभा भेज दिया था.’’
दास ने दावा किया कि उनके लोकसभा चुनाव लड़ने से प्रदेश भर में बसपा को फायदा हुआ और 2009 में उसे 20 सीटों पर जीत मिली. वह लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव भले ही हार गये, लेकिन बसपा को 25 प्रतिशत वोट मिले. मायावती के इस आरोप पर कि वे वैश्य समाज को बसपा से जोड़ नहीं पाये, अखिलेश दास ने पहले ही बसपा छोड़ अन्य दलों में जा चुके कुछ बड़े वैश्य नेताओं का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘मैंने मायावती जी को अपनी तरफ से समझाने की कोशिश की कि लोगों को अपमानित करके उन्हें साथ नहीं लाया जा सकता.’’ भावी योजना के बारे में पूछे जाने पर अखिलेश दास ने कहा कि वे अपने समर्थकों से विचार-विमर्श करने के बाद इस संबंध में कोई निर्णय लेंगे.