कांग्रेस पर अपनों का वार, भाजपा का अपनों पर वार

राहुल सिंह कांग्रेस और भाजपा अपने अपने राजनीतिक जीवन के सबसे रोचक मोड़ पर है. कांग्रेस अपने लंबे राजनीतिक सफर के बाद सबसे बुरे दौर में हैव गड्ढों से भरे चौराहे पर खड़ी हैं, जिसे पार करना उसके लिए चुनौती है. वहीं, भाजपा अपनी 89 साल लंबे वैचारिक सफर (आरएसएस) और 63 साल लंबेराजनीतिकसफर(जनसंघ व […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 6, 2014 4:27 PM
राहुल सिंह
कांग्रेस और भाजपा अपने अपने राजनीतिक जीवन के सबसे रोचक मोड़ पर है. कांग्रेस अपने लंबे राजनीतिक सफर के बाद सबसे बुरे दौर में हैव गड्ढों से भरे चौराहे पर खड़ी हैं, जिसे पार करना उसके लिए चुनौती है. वहीं, भाजपा अपनी 89 साल लंबे वैचारिक सफर (आरएसएस) और 63 साल लंबेराजनीतिकसफर(जनसंघ व भाजपादोनों स्वरूप में) में सबसे खुशनुमा दौर में है और एक ऐसी चिकनी राह पर है, जहां इस पार्टी की गाड़ी सरपट दौड़ भी सकती है और दुर्घटनाग्रस्त होकर क्षत-विक्षत भी हो सकती है.
बहरहाल, कांग्रेस के सबसे बुरे दौर में जहां उस पर उसके अपने लगातार वार कर रहे हैं, वहीं भाजपा अपने सबसे अच्छे दौर में अपनों पर प्रहार कर रही है. दस साल तक अप्रत्यक्ष तौर पर सत्ता के शीर्ष पर रहने के दौरान जिन लोगों की जुबान नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ खुलती नहीं थी, वे आज तरह-तरह से उसके नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं और हमले कर रहे हैं. वहीं, भाजपा की स्थिति यह है कि वहां नरेंद्र मोदी अमित शाह की जोड़ी के सामने अब किसी की उनके खिलाफ कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती. इस जोड़ी के सामने पार्टी का हर बड़ा, हर छोटा सावधान की मुद्रा में रहता है.
भाजपा का अपनों पर वार
भाजपा अपनी बढ़ी ताकत के बाद एक-एक कर अपने सहयोगियों पर कूटनीतिक तरीके से राजनीतिक हमले बोल रही है. उसमें यह आत्मविश्वास बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से रिश्ते टूटने के बाद भी उसे नुकसान नहीं होने पर आया.
नरेंद्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी ने इस बार बड़ी कुशलता से शिवसेना को किनारे लगाया. पार्टी ने हरियाणा में हरियाणा जनहित कांग्रेस से भी अपनी दोस्ती तोड़ी. भाजपा ने पहले ही यह संकेत दे दिया था कि वह इस बार शिवसेना के दबाव में वह नहीं आयेगी. इसके बाद वह चुनाव के पहले फेज के नामांकन की आखिरी तारीख से एक दिन पूर्व तक सीटों पर बात करती रही और फिर अचानक उससे गंठजोड़ तोड़ने का एलान कर अकेले चुनाव मैदान में उतर गयी. अब चुनाव बाद सरकार में शामिल होने को इच्छुक शिवसेना को भाजपा तरह-तरह से छका रही है.
अपने विस्तार के लिए भाजपा अब शायद ऐसा ही पंजाब में करे. पंजाब के भाजपा प्रभारी राम शंकर कथेरिया ने इशारों में संकेत दिया है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश में अकेले लड़ सकती है. हालांकि उन्होंने यह संकेत भाजपा के हितों की रक्षा की बात कहते हुए दिया है.
भविष्य में अपने एकछत्र वर्चस्व की रणनीति के तहत ही भाजपा ने बिहार में हाशिये पर जा चुकी रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा से गंठजोड किया, जिनके माजिर्न वोट का भाजपा को समग्रता में लाभ हुआ. अब वह ऐसा ही झारखंड में आजसू से विधानसभा चुनाव में गंठबंधन कर कर रही है. भाजपा राज्य के अपने बड़े सहयोगियों को अब किनारे लगाकर छोटे सहयोगियों के साथ अपना वर्चस्व बढ़ा रही है. महाराष्ट्र में आरएसपी, शेतकारी संगठन और यूपी में अपना दल के साथ उसकी दोस्ती इसके प्रमाण हैं.
भले ही आज भाजपा के वार का सामना जदयू, शिवसेना व अकाली दल जैसे प्रदेश के बड़े राजनीतिक दल कर रहे हैं, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कल को यह परिस्थिति उसके मौजूदा छोटे सहयोगियों के समक्ष भी आ सकती है.
कांग्रेस पर अपनों का वार
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर पी चिदंबरम, एके एंटोनी, दिग्विजय सिंह व शीला दीक्षित जैसे नेताओं ने भले ही संकेतों में सवाल उठाया हो और बिहार से लेकर राजस्थान तक के सांसदों ने राहुल गांधी के नेतृत्व कौशल पर सवाल उठाया हो, लेकिन अब इस पार्टी की नयी पीढी के नेता भी सवाल उठाने लगे हैं. पी चिदंबरम के बेटे व इस बार चुनाव लड़ चुके कार्ति चिदंबरम ने कांग्रेस के हाइकमान कल्चर पर सवाल उठा दिया है. उन्होंने कहा है कि तमिलनाडु कांग्रेस को अपना काम करने की आजादी होनी चाहिए, हमें हाइकमान कल्चर के बारे में विचार करने की जरूरत है. उन्होंने कहा है कि प्रदेश इकाई को अपने फैसले लेने की आजादी होनी चाहिए. कार्ति ने ये बातें एक अंगरेजी चैनल से बातचीत में कही. उनसे पहले दिग्गज कांग्रेसी जीके मूपनार के बेटे जीके वासन ने कई दर्द गिना कर कांग्रेस छोड़ अपनी पार्टी बनाने का एलान कर दिया. यह सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है. सच है कि अगर पहलवान बूढा व शरीर से कमजोर हो जाता है, तो गांव का पराया तो पराया अपने परिवार का बच्च भी उस पर कई बार ढेला फेंकने में परहेज नहीं करते.

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