जानिए, आखिर वाजपेयी कैबिनेट से कितना अलग है मोदी कैबिनेट?

नयी दिल्ली : अपनी टीम में अच्छे लोगों को शामिल करना और बेहतर परिणाम दे पाना किसी भी लीडर के लिए सबसे बडी व्यावहारिक चुनौती होती है, उसकी तुलना में सैद्धांतिक बातें करना और तर्क वितर्क करना आसान होता है. गुजरात जैसे पूर्व से विकसित राज्य की कमान संभाल कर अपेक्षाकृत पिछडे व विकासशील भारत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 10, 2014 2:36 PM
नयी दिल्ली : अपनी टीम में अच्छे लोगों को शामिल करना और बेहतर परिणाम दे पाना किसी भी लीडर के लिए सबसे बडी व्यावहारिक चुनौती होती है, उसकी तुलना में सैद्धांतिक बातें करना और तर्क वितर्क करना आसान होता है. गुजरात जैसे पूर्व से विकसित राज्य की कमान संभाल कर अपेक्षाकृत पिछडे व विकासशील भारत की कमान संभालने वाले नरेंद्र मोदी को पिछले पांच महीने में इस बात का अच्छे से इल्म हो गया.
इसलिए उन्होंने अपेक्षाकृत छोटे कैबिनेट की सोच से यू टर्न लेते हुए 45 सदस्यों वाले मंत्रिपरिषद को डेढ गुणा किया और अब इसमें 66 लोग शामिल हैं. मोदी के नये कैबिनेट में जो एक सबसे अहम बात है, वह यह कि मोदी ने 14 नये राज्यमंत्री शामिल किये. मोदी के आरंभिक कैबिनेट में मात्र 12 राज्यमंत्री थे. मोदी के अपने कार्यालय यानी प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्यमंत्री के रूप में काम संभाल रहे डॉ जितेंद्र सिंह के पास शायद इसी कम संख्या के कारण नौ विभागों का प्रभार था. नये बदलाव के बाद भी छह विभाग तो उनके पास हैं ही.
मोदी कैबिनेट के पुराने स्वरूप में एक तो कई कैबिनेट मंत्री एक से अधिक विभागों का काम संभाल रहे थे, उस पर उनमें से ज्यादातर के पास सहयोग के लिए के लिए राज्यमंत्री नहीं थे. अब कैबिनेट के पहले विस्तार के बाद ज्यादातर कैबिनेट मंत्रियों को अपने विभाग के लिए राज्यमंत्री मिल गया है.
नि:संदेह मोदी के मंत्रिमंडल सिनियर व जूनियर दोनों स्तरों पर कुछ बेहद प्रतिभाशाली लोग हैं, पर ज्यादातर औसत या उससे नीचे की प्रतिभा की लोग हैं. ऐसे में मोदी और उनके कैबिनेट के उन चुनिंदा परफार्मर के कंधे पर यह भी जिम्मेवारी है कि वह अपने औसत व कम क्षमतावान साथियों की कमियों को अपने ज्यादा उम्दा काम से छिपायें.
मोदी कैबिनेट बनाम वाजपेयी कैबिनेट
नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी के सर्वोच्च नेता व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के कामकाज की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं. अपनी पूरी चुनावी सभाओं में वे एक न एक बार जरूरी वाजपेयी सरकार का नाम लेते थे और अकसर यह कहते सुने जाते थे कि उन्हें अगर एक और मौका मिला होता तो देश की तसवीर दूसरी होती. दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी शुरुआती दिनों से केंद्रीय राजनीति में रहे. इस कारण नि:संदेह किसी क्षत्रप की तुलना में उनका आउटलुक अधिक बडा था. वे लोगों की क्षमताओं, संभावनाओं का सटिक आकलन करने में माहिर थे. ये बातें उनके विरोधी भी मानते हैं. वाजपेयी ने अपना कैबिनेट कभी छोटा रखने के बारे में सोचा भी नहीं. उनके कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या हमेशा तीन अंकों से कुछ ही कम रही. इसके उलट मोदी खुद के शब्दों के अनुसार, दिल्ली दरबार के लिए आउटसाइडर हैं. ऐसे में उन्हें अरुण जेटली जैसे अपने गहरे मित्र व सहयोगी के कई मोर्चो पर सहयोग की जरूरत पडती है.
वाजपेयी ने हर अहम मंत्रलय में क्षमतावान कैबिनेट मंत्री नियुक्त किये और हर बडे मंत्रलय में कम से दो राज्यमंत्री नियुक्त किये. ताकि देश को शानदार परिणाम दिये जा सकें. उसके परिणाम भी दिखे. वाजपेयी ने अपने सबसे पुराने सहयोगी लालकृष्ण अडवानी को गृह मंत्रलय सौंपा, तो जसवंत सिंह व यशवंत सिन्हा जैसे क्षमतावान नेताओं से वित्त व विदेश मंत्रलय में काम कराया. बिहार के दिग्विजय सिंह जैसे योग्य नेताओं का इनके मंत्रलय में राज्य मंत्री के रूप में सहयोगी बनाया.
डॉ मुरली मनोहर जोशी को उनके व्यक्तित्व व क्षमता के अनुरूप मानव संसाधन मंत्रलय सौंपा और नीतीश कुमार जैसे योग्य नेता को रेल मंत्रलय का जिम्मा सौंपा, जहां से रेलवे में सुधारवादी कदमों की शुरुआत हुई. इससे उलट मोदी के कैबिनेट में सदानंद गौडा अबतक रेलमंत्री रहे, जो उम्मीद के अनुरूप कोई खास कमाल नहीं दिखा सके. इसलिए मोदी ने कानून मंत्रलय में उनका स्थानांतरण कर बेहद क्षमतावान माने जाने वाले सुरेश प्रभु को रेल मंत्रलय सौंपा है. मानव संसाधन जैसे अहम मंत्रलय का जिम्मा मोदी ने बेहद कम प्रशासनिक अनुभव वाली स्मृति इरानी को सौंपा है. इस मंत्रलय को हमेशा बेहद कद्दावर व दृष्टिवान राजनीतिक शख्सियतों ने संभाला है, सिवाय कुछ अपवादों को छोड कर. कोई आश्चर्य नहीं कि भविष्य में मोदी इस मंत्रलय को लेकर भी अपने नजरिये बदलें और उसके बाद वहां का नेतृत्व भी बदल जाये. वाजपेयी विवाद पैदा करने वालों को बाहर का रिश्ता दिखाने में कोताही नहीं करते. राम जेठमलानी इसके उदाहरण है. वे बडे स्तर पर विभागों में बदलाव करते. पर, मोदी फिलहाल ऐसा करते नहीं दिखे. सदानंद गौडा, डॉ हर्षवर्धन व जेपी नड्डा किसी ने किसी तरह विवाद में आये ही हैं.
मोदी ने पूर्णकालिक राजनीतिक नेतृत्व की कमियों का सामना करने वाले रक्षा मंत्रलय की जिम्मेवारी मनोहर पर्रिकर जैसे क्षमतावान नेता को सौंपा है. मोदी ने जयंत सिन्हा को वित्त मंत्रलय में राज्यमंत्री के रूप में भेज कर अपने कैबिनेट के सबसे अच्छे परफार्मर अरुण जेटली का भार थोडा हल्का कर दिया.
बहरहाल, मोदी के कैबिनेट की रथ को गति देने की जिम्मेवारी जिन सात नेताओं पर है, उनमें राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी, वेंकैया नायडू, मनोहर पर्रिकर, सुरेश प्रभु हैं. इन्हें न सिर्फ अपने विभागों में बेहतर परफारमेंस करना होगा, बल्कि अपने दूसरी साथियों को भी मार्ग दिखाना होगा. इनके अलावा, रविशंकर प्रसाद, निर्मला सीतारमण, प्रकाश जावडेकर, पीयूष गोयल से बेहतर परफारमेंस की उम्मीद होगी.

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