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मराठा आरक्षण पर न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगी महाराष्ट्र सरकार

मुंबई : महाराष्ट्र में सार्वजनिक सेवाओं और शिक्षा संस्थानों में मराठों के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान पर बंबई उच्च न्यायालय में स्थगन लगने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का आज फैसला किया. यह फैसला महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की अध्यक्षता में आयोजित एक सर्वदलीय बैठक में किया […]

मुंबई : महाराष्ट्र में सार्वजनिक सेवाओं और शिक्षा संस्थानों में मराठों के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान पर बंबई उच्च न्यायालय में स्थगन लगने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का आज फैसला किया.

यह फैसला महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की अध्यक्षता में आयोजित एक सर्वदलीय बैठक में किया गया. ठक के बाद शिव संग्राम के नेता विनायक मेते ने पत्रकारों को बताया, ‘‘राज्य सरकार ने आज हमें आश्वासन दिया कि वह उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख करेगी.’’ मेते ने कहा, ‘‘सरकार अगले हफ्ते उच्चतम न्यायालय जाएगी.’’उन्होंने कहा कि फडणवीस सरकार मराठों और मुसलमानों के साथ है.

सर्वदलीय बैठक में शिरकत करने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व मंत्री नसीम खान ने कहा, ‘‘सरकार मराठों और मुसलमानों के आरक्षण के मुद्दे पर एक सर्वदलीय समिति का गठन करेगी.’’ फडणवीस ने उच्च न्यायालय के आदेश पर प्रतिक्रिया करते हुए कल कहा था, ‘‘राज्य सरकार मराठा कोटा पर पूर्ण समर्थन में है. हम उच्च न्यायालय के आदेश पर उच्चतम न्यायालय में अपील करेंगे। हम यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय करेंगे कि कोटा बरकरार रहे.’’

फडणवीस ने कहा था, ‘‘अगर अदालत ने कानून में कोई खामी इंगित की है तो हम नागपुर में राज्य विधानसभा के शरद सत्र के दौरान उसे दूर करेंगे.’’ बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के पूर्ववर्ती कांग्रेस-राकांपा सरकार के विवादास्पद फैसले के कार्यान्वयवन पर कल रोक लगा दी.

बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में सरकारी नौकरियों में मुसलमानों को पांच फीसद आरक्षण देने के पूर्ववर्ती कांग्रेस-राकांपा सरकार के विवादस्पद फैसले पर भी रोक लगा दी लेकिन यह कहते हुए शिक्षा संस्थानों में पांच फीसद आरक्षण देने की इजाजत दे दी कि मुसलमानों में शिक्षा की बेहद कमी है और उन्हें ‘‘धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की मुख्यधारा’’ में लाना जरुरी है.

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