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गंगा पर शोध के लिए वाराणसी में खुलेगा अनुसंधान संस्थान

नयी दिल्ली : गंगा की धारा को अविरल एवं निर्मल बनाने की पहल के तहत वैज्ञानिक आकलन और प्रभावी योजना तैयार करने के साथ शोध को बढावा देने के लिए सरकार वाराणसी में सेंट्रल वाटर एंड पावर रिसर्च स्टेशन (सीडब्ल्यूपीआरएस), पुणो की शाखा खोलने पर विचार कर रही है. जल संसाधन एवं गंगा संरक्षण मंत्रलय […]

नयी दिल्ली : गंगा की धारा को अविरल एवं निर्मल बनाने की पहल के तहत वैज्ञानिक आकलन और प्रभावी योजना तैयार करने के साथ शोध को बढावा देने के लिए सरकार वाराणसी में सेंट्रल वाटर एंड पावर रिसर्च स्टेशन (सीडब्ल्यूपीआरएस), पुणो की शाखा खोलने पर विचार कर रही है.
जल संसाधन एवं गंगा संरक्षण मंत्रलय के एक अधिकारी ने कहा कि नदी मात्र जल निकाय नहीं होकर तलछट, जल, वनस्पति, प्राणी समुच्चय का जटिल तंत्र होती है. इसलिए यह जरूरी है कि इन्हें संरक्षित करने के क्रम में नदी के सभी अवयवों सहित समस्त नदी समुच्चय का अध्ययन किया जाए.
उन्होंने कहा कि गंगा का प्रभाव क्षेत्र बनारस, पटना, पश्चिम बंगाल जैसे उत्तर भारत के क्षेत्र में है, जिसकी लंबाई करीब 2500 किलोमीटर में है. ‘‘ ऐसे में मंत्रलय ने बनारस में गंगा शोध संस्थान स्थापित करने के प्रस्ताव को आगे बढाने की पहल की है.’’ अधिकारी ने बताया कि इस पहल को आगे बढाते हुए वाराणसी में सेंट्रल वाटर एंड पावर रिसर्च स्टेशन (सीडब्ल्यूपीआरएस) की शाखा खोलने पर विचार किया जा रहा है.
इसके तहत मंत्रलय में संयुक्त सचिव के स्तर पर इस पहल को आगे बढाया जा रहा है. सेंट्रल वाटर एंड पावर रिसर्च स्टेशन की एक शाखा दिल्ली में भी स्थापित किये जाने का प्रस्ताव है. हाल ही में दिल्ली में मंत्रलय की ओर से आयोजित ‘गंगा मंथन’ कार्यक्रम में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि विभिन्न संस्थाओं में गंगा नदी के संबंध में अनेक अनुसंधान किये गए हैं, लेकिन ये सूचनाएं बिखरी हुई हैं. इसलिए गंगा नदी के बारे में सम्पूर्ण समग्र अनुसंधान, अध्ययन और अधिक नीतिगत हस्तक्षेप किये जाने की जरूरत है.
गंगा मंथन के प्रस्ताव में कहा गया था कि नदी की दशा के लिए नदी में विद्यमान जलीय जीवन महत्वपूर्ण होता है, लेकिन अनेक जलीय प्रजातियों की संख्या निरंतर कम हो रही है. ऐसे में गंगा नदी के अभिन्न अंग डाल्फिनों, घड़ियालों, कछुओं एवं मछलियों की 384 से अधिक किस्म की प्रजातियों को संरक्षित किया जाए.
प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि गंगा नदी की सुरक्षा के लिए एक कार्यबल गठित किये जाने की आवश्यक्ता है, जिसमें वनीकरण, नदी तट विकास, जागरूकता सृजन और प्रतिबंधित गतिविधियों की निगरानी प्रमुख है. गंगा नदी के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा प्रारंभ किये गए सभी कार्य समयबद्ध, परिणाम अभिमुख और क्रमबद्ध रीति से क्रियान्वित किये जाने चाहिए. पूर्व में हालांकि नीतियां बनायी गयी थीं, लेकिन प्रभावी संस्थानों एवं अंतर विभागीय समन्वय की कमी के कारण परियोजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन और सामयिक रूप से पूरा करने पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा सका.

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