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कोयला घोटाला : सीबीआइ ने अदालत को बताया, मनमोहन सिंह से पूछताछ की नहीं थी अनुमति

नयी दिल्ली : कोयला आवंटन मामले में आज अदालत ने सीबीआई से पूछा कि मामले की जांच के दौरान क्या उसने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पूछताछ की थी जिनके पास उस वक्त कोयला मंत्रालय का प्रभार था? इस मामले में शीर्ष उद्योगपति के एम बिडला, पूर्व कोयला सचिव पी सी पारेख समेत कई अन्य […]

नयी दिल्ली : कोयला आवंटन मामले में आज अदालत ने सीबीआई से पूछा कि मामले की जांच के दौरान क्या उसने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पूछताछ की थी जिनके पास उस वक्त कोयला मंत्रालय का प्रभार था? इस मामले में शीर्ष उद्योगपति के एम बिडला, पूर्व कोयला सचिव पी सी पारेख समेत कई अन्य लोगों के नाम हैं.

अदालत के इस पूछताछ से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मुश्‍किलें बढ़ सकतीं हैं. सीबीआइ ने अदालत को बताया कि कोयला मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पूछताछ की अनुमति नहीं थी.विशेष सीबीआइ न्यायाधीश भरत पराशर ने एजेंसी से पूछा, ‘‘क्या आपको नहीं लगता कि इस मामले में तत्कालीन कोयला मंत्री से पूछताछ जरुरी थी? क्या आपको उनसे पूछताछ की जरूरत महसूस नहीं हुयी? क्या आपको नहीं लगता कि एक स्पष्ट तस्वीर पेश करने के लिए उनका बयान जरुरी था?’’ इस पर जांचकर्ता अधिकारी ने अदालत को बताया कि शीर्ष उद्योगपति के एम बिडला, पूर्व कोयला सचिव पी सी पारेख की संलिप्तता वाले कोयला ब्लॉक आवंटन के मामले की जांच के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के अधिकारियों से पूछताछ की गई थी और यह पाया गया था कि तत्कालीन कोयला मंत्री का बयान जरुरी नहीं था.

बहरहाल, उन्होंने यह बात स्पष्ट की कि तत्कालीन कोयला मंत्री से पूछताछ की अनुमति नहीं दी गई थी. बिडला की कंपनी हिंडाल्को को जब 2005 में ओडिशा के तालाबीरा द्वितीय और तृतीय में कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए , तब कोयला मंत्रालय का प्रभार पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था. जांचकर्ता अधिकारी ने कहा, ‘‘पीएमओ के अधिकारियों से पूछताछ की गई थी. पीएमओ के अधिकारियों के बयान के आलोक में तत्कालीन कोयला मंत्री से पूछताछ नहीं की गई.’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘तत्कालीन कोयला मंत्री से पूछताछ की अनुमति नहीं थी. यह पाया गया था कि उनका बयान जरुरी नहीं है.’’ अदालत ने सुनवाई के दौरान सीबीआई को अदालत के समक्ष केस डायरी जमा कराने का निर्देश दिया। इसके बाद वरिष्ठ सरकारी वकील वी के शर्मा ने कहा कि एजेंसी को सीलबंद लिफाफे में ये दस्तावेज जमा कराने की अनुमति दी जाए.

न्यायाधीश ने आगे की कार्यवाही के लिए 27 नवंबर का दिन तय करते हुए कहा, ‘‘मेरा मानना है कि इस मामले की केस डायरी, फाइलें और आपराधिक फाइलें अदालत मे पेश कराने के लिए मंगाई जाएं और वरिष्ठ सरकारी वकील के अनुरोध के अनुसार, इसे सीलबंद लिफाफे में पेश करने दिया जाना चाहिए.’’ सीबीआई ने बिडला, पारेख और अन्य के खिलाफ पिछले साल अक्तूबर में प्राथमिकी दर्ज की थी. इसने आरोप लगाया था कि पारेख ने ‘‘किसी वैध आधार या परिस्थितियों में बदलाव के बिना’’ कुछ माह के भीतर ही हिंडाल्को को कोयला ब्लॉक आवंटन नहीं करने के अपने फैसले को पलट दिया था और ‘‘अनुचित ढंग से फायदा’’ पहुंचाया था.

यह प्राथमिकी वर्ष 2005 में ओडिशा के तालाबीरा द्वितीय और तृतीय के कोयला ब्लॉकों के आवंटन से जुडी है. सीबीआई ने बिडला, पारेख और हिंडाल्को के अन्य अधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था और इसमें सरकारी अधिकारियों के आपराधिक षडयंत्र और आपराधिक कदाचार भी शामिल थे.

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