नयी दिल्ली : केंद्र ने आज सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि केंद्रीय विद्यालयों (केवी) में छठी से आठवीं तक की कक्षाओं के पाठ्यक्रम में संस्कृत तीसरी भाषा होगी.
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केंद्र ने अदालत से कहा : केवी में कक्षा छठी-आठवीं में संस्कृत होगी तीसरी भाषा
नयी दिल्ली : केंद्र ने आज सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि केंद्रीय विद्यालयों (केवी) में छठी से आठवीं तक की कक्षाओं के पाठ्यक्रम में संस्कृत तीसरी भाषा होगी. प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की पीठ के समक्ष पेश हुए अटार्नी जनरल मुकुल रहतोगी ने केंद्रीय विद्यालयों में तीसरी भाषा के रुप में जर्मन भाषा […]
प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की पीठ के समक्ष पेश हुए अटार्नी जनरल मुकुल रहतोगी ने केंद्रीय विद्यालयों में तीसरी भाषा के रुप में जर्मन भाषा के स्थान पर संस्कृत भाषा को शामिल किए जाने के केंद्र के फैसले से उत्पन्न विवाद में एक हलफनामा दाखिल करने की अनुमति मांगी.
पीठ ने उन्हें हलफनामा दाखिल करने की अनुमति दे दी और इसकी सुनवाई कल के लिए स्थगित कर दी. इससे पहले, 21 नवंबर को न्यायालय मुद्दे पर केंद्रीय विद्यालय के छात्रों के अभिभावकों के एक समूह की ओर से दाखिल याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई के लिए राजी हो गया था.
पीठ ने मामले की सुनवाई आज के लिए मुकर्रर की थी और जनहित याचिका पर केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था.
याचिकाकर्ताओं के वकील की दलील है कि भाषा चयन संबंधी फैसले का अधिकार छात्रों और अभिभावकों पर छोड देना चाहिए और सरकार को, विशेषकर शैक्षिक सत्र के बीच, अपना फैसला नहीं थोपना चाहिए.
मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) के संचालन मंडल ने 27 अक्तूबर को अपनी बैठक में फैसला किया था कि संस्कृत के विकल्प से जर्मन भाषा की पढाई रोकी जाएगी. जर्मन को छात्रों के लिए अतिरिक्त विषय के तौर पर रखा गया है.
फैसले से सभी 500 केंद्रीय विद्यालयों के कक्षा छठी से आठवीं के 70,000 से ज्यादा छात्रों पर असर पडेगा. उन्हें अब जर्मन की बजाए संस्कृत पढना होगा.
फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि केवीएस ने इस तथ्य पर गौर करना मुनासिब नहीं समझा कि इस तरह का फैसला बीच सत्र में नहीं लिया जा सकता क्योंकि इससे प्रभावित छात्रों की समूची शैक्षिक तैयारियों में गडबडी होगी. उन्होंने कहा था, सरकार को ऐसे समय में और प्रभावित छात्रों तथा अभिभावकों के साथ बिना किसी मशविरा के इस तरह का बिना सोचा समझा और मनमाना फैसला नहीं लेना चाहिए.
याचिका में दलील दी गयी है कि प्रतिवादियों की ओर से देश भर के सभी केवी में संस्कृत की जगह जर्मन भाषा को हटाने का फैसला इस तरह के केवी में पढ रहे छात्रों के हित और फायदे पर विचार किये बिना हड़बडी में किया गया.
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