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उच्च न्यायालय ने नर्सरी दाखिलों में प्वाइंट सिस्टम रद्द किया

नयी दिल्ली : उपराज्यपाल द्वारा गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के लिए लाए गए प्वाइंट सिस्टम को आज दिल्ली उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया और कहा कि सरकार का फैसला ‘‘न तो प्रक्रियागत लिहाज से उचित है और न ही तर्कसंगत है.’’न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि गैर सहायताप्राप्त निजी स्कूलों को ‘‘छात्रों को प्रवेश […]

नयी दिल्ली : उपराज्यपाल द्वारा गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के लिए लाए गए प्वाइंट सिस्टम को आज दिल्ली उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया और कहा कि सरकार का फैसला ‘‘न तो प्रक्रियागत लिहाज से उचित है और न ही तर्कसंगत है.’’न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि गैर सहायताप्राप्त निजी स्कूलों को ‘‘छात्रों को प्रवेश देने के अधिकार सहित दिन प्रतिदिन के प्रशासन में अधिकतम स्वायत्तता का बुनियादी अधिकार है.’’

अदालत ने यह भी कहा कि ‘‘बच्चों के लिए पास के स्कूल में जाने का विकल्प होना चाहिए, लेकिन उनकी पसंद को उनके क्षेत्र के किसी एक स्कूल तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए.’’ न्यायमूर्ति मनमोहन ने 69 पन्नों के अपने फैसले में कहा कि अदालत यह नहीं चाहती कि आवास से स्कूल की दूरी के आधार पर छात्र का शैक्षिक भविष्य तय हो.अदालत का यह भी मत था कि ‘‘पास की अवधारणा को गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों ने गांगुली समिति की रिपोर्ट में दिए गए दिशा निर्देशों के संदर्भ में तथा 2007 के पूर्व के दाखिला आदेश के तहत दोनों संदर्भों में बेहतर ढंग से लिया था.’’

‘‘इसके परिणामस्वरुप, इन प्रशासनिक आदेशों को निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों की 75 प्रतिशत सामान्य नर्सरी सीटों के संदर्भ में खारिज किया जाता है. ये आदेश दिन-प्रतिदिन के प्रशासन में अधिकतम स्वायत्तता और छात्रों को प्रवेश देने के स्कूल प्रशासन के मूल अधिकार के साथ-साथ माता-पिता के माध्यम से बच्चों के लिए स्कूल चुने जाने के मूल अधिकार का उल्लंघन करते हैं.’’अदालत ने निजी स्कूलों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक समिति और एक मंच की ओर से दायर दो याचिकाओं का निपटान करते हुए यह फैसला सुनाया. इन याचिकाओं में उपराज्यपाल द्वारा पिछले साल 18 दिसंबर और 27 दिसंबर को जारी की गई अधिसूचनाओं को चुनौती दी गई थी, जिनके जरिए प्वाइंट सिस्टम लाया गया था.

पहले की व्यवस्था के तहत, कुल 100 प्वाइंट में से 70 प्वाइंट तब दिए जाते थे, यदि बच्चा स्कूल के पडोस में रहता हो। बाकी के 20 प्वाइंट तब दिए जाते थे, यदि बच्चे का कोई सगा भाई-बहन वहां पढता हो. पांच अन्य प्वाइंट उस स्थिति के लिए थे यदि बच्चे के माता-पिता में से भी स्कूल का पूर्व छात्र रहा हो. अन्य पांच प्वाइंट अंतरराज्यीय स्थानांतरण के मामले के लिए थे. प्रत्येक प्वाइंट के स्तर पर ड्रॉ किए गए। उसके बाद, सरकार ने 27 फरवरी को एक आदेश जारी करके वे पांच प्वाइंट समाप्त कर दिए, जो अंतरराज्यीय स्थानांतरण की स्थिति में दिए जाते थे.

प्वाइंट सिस्टम को रद्द करते हुए, अदालत ने यह भी कहा कि, ‘‘यदि विकल्प की छंटाई का अधिकार सरकार पर छोड दिया जाए तो भविष्य में वह ऐसा भी नियम बना सकती है कि किसी इलाके विशेष के निवासी अपने क्षेत्र में मौजूद अस्पतालों में ही चिकित्सीय उपचार करवाने के अधिकारी होंगे.’’अदालत ने कहा कि स्कूलों की जवाबदेही उन्हें प्रशासनिक स्वायत्तता देकर सुनिश्चित की जा सकती है. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में इस बात का कोई साक्ष्य नहीं मिला है, जो यह दर्शाता हो कि निजी गैर सहायता प्राप्त किसी कदाचार में लिप्त थे या वर्ष 2007 की अधिसूचना के तहत छात्रों को प्रवेश देने के अपने अधिकार का वे दुरुपयोग कर रहे थे.

अदालत ने यह भी कहा कि नर्सरी प्रवेश से जुडे इस अराजकता की प्रमुख वजह पर्याप्त संख्या में अच्छे पब्लिक स्कूल न होना है. न्यायमूर्ति ने कहा, ‘‘जब तक सभी पब्लिक स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार नहीं हो जाता, मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर बना रहेगा. इस अदालत का यह मानना है कि कोई भी प्रशासनिक आदेश, नीति, अधिसूचना या फार्मूला इस अंतर को खत्म नहीं सकता.’’

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