नयी दिल्ली: एक तरह से अगले आम चुनावों के लिए अभियान की शुरुआत करते हुए वाम दलों ने आज कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर उनके बिना कोई गठबंधन संभव नहीं है और कांग्रेस तथा भाजपा की ‘जन-विरोधी, नव-उदारवादी’ सोच के खिलाफ एक वैकल्पिक मंच के लिहाज से सभी लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को एक हो जाना चाहिए.
नीतिगत मुद्दों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच कोई वास्तविक अंतर नहीं बताते हुए चारों वाम दलों के शीर्ष नेताओं ने कहा कि दो बड़े दल ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों को चलाते हैं जो जनता के हित में नहीं हैं.
माकपा, भाकपा, आरएसपी और फॉरवर्ड ब्लॉक ने यहां अपने संयुक्त राष्ट्रीय राजनीतिक सम्मेलन में कहा, ‘‘आज जरुरी है कि कांग्रेस और भाजपा की नीतियों तथा उनके राजनीतिक प्लेटफार्म को खारिज किया जाए.’’ सम्मेलन में वामपंथी दलों ने सर्वसम्मति से एक घोषणापत्र और 10 सूत्री वैकल्पिक नीति वाले मंच के प्रस्ताव को स्वीकार किया.
माकपा के प्रकाश करात और सीताराम येचुरी, भाकपा के ए बी वर्धन और एस सुधाकर रेड्डी, फॉरवर्ड ब्लॉक के देवव्रत विश्वास तथा आरएसपी के अबनि रॉय आदि नेताओं ने अपील की कि सभी लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष दलों को शोषित जनता के हितों के लिए इस मंच के समर्थन में आगे आना चाहिए. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से चार्टर में अंकित मुद्दों पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने के लिए तथा अगले चार महीनों तक सभाओं और रैलियों के आयोजन के लिए कहा.
करात ने कहा, ‘‘लोकसभा चुनाव अगले साल होने हैं. हालांकि ये पहले भी हो सकते हैं. हम इन चुनावों के लिए एक गैर-कांग्रेसी, गैर-भाजपाई दलों का मोर्चा बना सकते हैं. लेकिन हमारा अनुभव बताता है कि ऐसा कुछ संभव नहीं हो सका है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर कोई विकल्प केवल चुनावों के लिए तैयार किया जाए तो यह संभव नहीं होता. यह एक वैकल्पिक नीति वाले मंच की बुनियाद पर होना चाहिए.’’ भाकपा महासचिव सुधाकर रेड्डी ने कहा कि कांग्रेस नीत संप्रग और भाजपा नीत राजग, दोनों ही गठबंधन विवादों से घिरे हैं और आकार में छोटे हो गये हैं.
उन्होंने कहा कि भाजपा के साथ अब केवल शिवसेना और अकाली दल ही बचे हैं जबकि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय राजग में 24 दल शामिल थे. इसी तरह द्रमुक और तृणमूल कांग्रेस जैसे अहम सहयोगी संप्रग से अलग हो गये.रेड्डी ने कहा कि दोनों ही दल न केवल भ्रष्टाचार की होड़ में शामिल हैं बल्कि केंद्र में तथा अपने शासन वाले राज्यों में विनाशकारी आर्थिक नीतियां चला रहे हैं.