भोपाल गैस त्रासदी के 30 साल, दर्द अभी भी है बाकी
भोपाल : मध्यप्रदेश के भोपाल में आज से 30 साल पूर्व 2-3 दिसंबर 1984 को जहरीली गैस रिसाव से हजारो लोगों को जान से हाथ गवांनी पड़ी. इससे निपटने के लिए 30 सालों बाद भी सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया ऐसा मामना है त्रासदी में प्रभावित लोगों का. आज भी […]
भोपाल : मध्यप्रदेश के भोपाल में आज से 30 साल पूर्व 2-3 दिसंबर 1984 को जहरीली गैस रिसाव से हजारो लोगों को जान से हाथ गवांनी पड़ी. इससे निपटने के लिए 30 सालों बाद भी सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया ऐसा मामना है त्रासदी में प्रभावित लोगों का. आज भी आलम यह है कि गैस इस त्रासदी का प्रभाव जन्म लेने वले बच्चों पर देखा जा रहा है. इस त्रासदी ने मानवता को तार-तार तो किया ही, साथ ही जनता के रखवालों की पहचान करवाने का काम भी किया. ता्रसदी से संबंधित कई मार्मिक तस्वीरें और विडीयो आज भी सोशल साइट्स पर देखे जा सकते हैं.
अभीतक कचरे को भी ठिकानें नही लगाया जा सका
कार्बाइड संयंत्र में रखे 350 मीट्रिक टन रासायनिक कचरे के कारण पर्यावरण और विशेषकर भूजल दूषित हो रहा है लेकिन सरकार इस कचरे के निपटान के लिये कोई कदम नहीं उठा पायी है. वर्ष 2004 में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में जहरीली गैस कांड संघर्ष मोर्चा की ओर से दायर याचिका में गैस प्रभावित बस्तियों में पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे इस रासायनिक कचरे को नष्ट किए जाने की मांग की गयी थी. लगभग एक दशक पहले उच्च न्यायालय ने केंद्र एवं राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि इस जहरीले कचरे को धार जिले के पीथमपुर में इन्सीनरेटर में नष्ट कर दिया जाए.
मोर्चा के संयोजक आलोक प्रताप सिंह ने बताया कि उस समय इस निर्देश का पालन नहीं किया जा सका क्योंकि अनेक गैर सरकारी स्वंय सेवी संगठनों ने यह कहकर इसका विरोध किया था कि इसे जलाने से पीथमपुर में लोगों की जान पर खतरा हो सकता है. सिंह ने कहा कि पीथमपुर में कचरा जलाने के विरोध को देखते हुए उच्च न्यायालय ने गुजरात के अंकलेश्वर में यह जहरीला कचरा जलाने के निर्देश दिये. वहां की तत्कालीन सरकार ने जहरीला कचरा जलाने की अनुमति दी थी, लेकिन वहां के लोगों ने कचरा जलाने का विरोध किया.
उसके बाद गुजरात सरकार ने भी उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करके इस मामले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया था. इसपर उच्चतम न्यायालय ने जहरीले कचरे को नागपुर के निकट रक्षा अनुसंधान विकास संगठन के इंसीनरेटर में नष्ट करने के निर्देश दिये. लेकिन गैर सरकारी संगठनों के विरोध के चलते महाराष्ट्र सरकार ने भी नागपुर में जहरीला कचरा जलाने से असमर्थता प्रकट कर दी. सिंह ने कहा कि इस जहरीले कचरे को जलाने से रोकने के लिये महाराष्ट्र विधान सभा में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था.
भोपाल गैस त्रासदी एवं पुनर्वास विभाग के उपसचिव के. के. दुबे ने बताया कि इस बीच जर्मनी की एक कंपनी जीआईजेड इस कचरे के निपटान के लिये दृश्य में आयी और उसने केंद्र एवं राज्य सरकार को इस कचरे को जर्मनी में जलाने के लिये प्रस्ताव दिया. उन्होंने बताया कि जब यह मामला समाचार पत्रों में सामने आया तो जर्मनी में भी इसको लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये तथा जीआइजेड कंपनी ने भी अपने पैर पीछे खींच लिये.
दुबे ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने इसके बाद 17 अप्रैल को अपने आदेश में इसी प्रकार का दस मीट्रिक टन कचरा पीथमपुर के इंसीनरेटर में परीक्षण के तौर पर जलाने के निर्देश देते हुए, बाद में पीथमपुर में ही शेष कचरे के निपटान के लिए कहा गया. उन्होंने बताया कि जिस प्रकार का जहरीला कचरा यूनियन काबाईड परिसर में पडा है वैसा ही दस टन कचरा परीक्षण के तौर पर कोच्चि (केरल) की एक संस्था से प्राप्त कर पीथमपुर में परीक्षण के तौर पर नष्ट किया जा चुका है.
उन्होंने बताया कि इस संबंध में केंद्रीय पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा अदालत में रिपोर्ट भी पेश की जा चुकी है. दुबे ने कहा कि अब हम सीपीसीबी के निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं. निर्देश मिलते ही उन्हें कार्बाइड परिसर में पडा कचरा सौंप दिया जायेगा. उन्होंने बताया कि भोपाल गैस त्रसदी को लेकर चल रहे आपराधिक प्रकरण में अदालत के जून 2010 में आये आदेश के बाद केंद्र में इस मामले में मंत्री समूह गठित किया गया था, जिसने कचरे के निपटान के लिये 315 करोड रुपये सुरक्षित रख लिये थे.
जानिये त्रासदी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें
यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी जहरीली गैस ने दो-तीन दिसंबर 1984 की रात को जमकर तबाही मचायी थी. इस त्रासदी ने इतनी भयानक तबाही मचायी, जिसका अंदाजा इसी से लगाया जा कसता है कि कई दिनों तक मृत लोगों के शवों को ठिकाने लगाने का सिलसिला चलता रहा. इस हादसे के कारणों पर ध्यान दें तो 1969 में ही सरकार ने ब्रिटेन की एक कंपनी को भोपाल में कार्बाइड कंपनी लिमिटेड के नाम से एक संयंत्र लगाने की सहमती दी थी.
इसी संयंत्र से जो जहरीली गैस का रिसाव हुआ तो इसने हजारो जानों को लील लिया. हादसे को लेकर यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वारेन एंडरसन के खिलाफ हर किसी में जबर्दस्त गुस्सा देखा गया था. सभी लोगों का यही मानना था कि वही हजारों लोगों का कातिल एंडरसन ही है. हर तरफ से एंडरसन की गिरफ्तारी की मांग के बावजूद भी सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया और इंडियन एयरलाइंस की विमान से भोपाल पहुंचे एंडरसन और उनके दो साथियों को ना केवल पुलिस ने सुरक्षित दिल्ली पहुंचाया बल्कि उसकी गिरफ्तारी स्वीकार कर जनता को भी गफलत में रखा.
एंडरसन की मौत के साथ खत्म हुआ जांच का सिलसिला
त्रासदी के मुख्य आरोपी वोरेन एंडरसन पर सबसे पहले एक दिसंबर 1987 को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया था. नौ फरवरी 1989 को सीजेएम की अदालत ने एंडरसन के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया, मगर वह नहीं आया. आखिरकार एक फरवरी 1992 को अदालत ने एंडरसन को भगोड़ा घोषित कर दिया. 27 मार्च 1992 को सीजेएम अदालत ने एंडरसन के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिया.
कोर्ट ने उसे गिरफ्तार कर पेश करने के आदेश भी दिया. जून 2004 में यूएस स्टेट एंड जस्टिस डिपार्टमेंट ने एंडरसन के प्रत्यार्पण की भारत की मांग खारिज कर दी. भोपाल की सीजेएम अदालत ने सात जून 2010 को सात भारतीय अधिकारियों को दो-दो वर्ष की सजा सुनायी. लेकिन इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनलोगों को तुरंत ही जमानत पर रिहा कर दिया गया. इस बीच खबर आयी कि 29 सितंबर, 2014 को फ्लोरिडा के एक नर्सिग होम में एंडरसन की मौत हो गयी.
पीडितों को आज भी न्याय का है इंतजार
एंडरसन की मौत और बाकी लोगों की रिहाई या सजा के बाद आज भी पीडित लोगों को न्याय का इंतजार है. इतना ही नहीं जहांतक मुआवजे की बात है विभिन्न सरकारों की ओर से घोषणाएं तो की गयी लेकिन धरातल पर नहीं उतारा जा सका. हजारों लोग अपना हक न मिलने से दुखी हैं. उन्हें अफसोस इस बात का भी है कि तीन दशकों में कितनी सरकारें आयी, मगर कोई सरकार यह भी पता नहीं लगा पायी कि वारेन एंडरसन की रिहाई किसके कहने पर हुई थी. आज भी भोपाल गैस त्रासदी की तस्वीरें वहां के लोगों की आंखों में तैरती रहती है.
विभिन्न फिल्मों में भी दिखी इस त्रासदी की झलक
भोपाल त्रासदी के कुछ वर्षों बाद ही से इसपर विभिनन प्रोडक्सन हाउस की ओर से कई फिल्में तैयार की गयी. इन फिल्मों में त्रासदी को काफी अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया गया और सरकार की आंखें खोलने का भी प्रयास किया गया. लेकिन तमाम उपायों के बाद भी सरकार कभी भी इस मामले पर उतनी गंभीर नहीं दिखी जितनी अन्य मामलों में नजर आती है. इन तीन दशकों में कितनी ही सरकारें आयी और चली गयी, लेकिन मुआवजे की घोषणा के अलावे कुछ विशेष नहीं किया जा सका. अभी वर्तमान में मोदी सरकार से वहां की जनता को काफी उम्मीदें हैं.