टाइटलर के खिलाफ जांच पर रोक लगाने से अदालत का इनकार
नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जगदीश टाइटलर की भूमिका के बारे में आगे की जांच करने के निचले अदालत के आदेश पर रोक लगाने से आज इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति एस पी गर्ग ने जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और […]
नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जगदीश टाइटलर की भूमिका के बारे में आगे की जांच करने के निचले अदालत के आदेश पर रोक लगाने से आज इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति एस पी गर्ग ने जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और शिकायतकर्ता लखविंदर कौर को नोटिस जारी करके उनसे 18 सितंबर तक निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने संबंधी टाइटलर की याचिका का जवाब देने को कहा है.
न्यायमूर्ति गर्ग ने जांच पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘केवल जांच का आदेश दिया गया है और यह अदालत जांच नहीं रोकेगी.’’इससे पहले टाइटलर के वकील मुकुल रोहातगी ने निचली अदालत के आदेश पर रोक लगाने की मांग की और कहा कि निचली अदालत को जांच के तरीकों के बारे में निर्देश देने का अधिकार नहीं है. उन्होंने दलील दी कि निचली अदालत ने कोई भी आदेश पारित करने से पहले उनके मुवक्किल का पक्ष नहीं सुना.
टाइटलर ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए 30 मई को उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. निचली अदालत ने 29 वर्ष पुराने मामले में टाइटलर को क्लीन चिट देकर मामला बंद करने संबधी सीबीआई की रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए जांच एजेंसी से प्रत्यक्षदर्शियों और दंगों के बारे में सूचना रखने का दावा करने वाले लोगों से पूछताछ करने का आदेश दिया है. न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने 31 मई को बिना कोई कारण बताए इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. टाइटलर ने अपनी याचिका में कहा था कि निचली अदालत का आदेश सीआरपीसी की संहिता के विपरीत है. जांच का तरीका तय करने का अधिकार केवल एजेंसी का ही है और अदालत एजेंसी को यह निर्देश नहीं दे सकती कि उसे किससे पूछताछ करनी चाहिए.
उन्होंने अपनी याचिका में कहा था, ‘‘कानून की स्थापित स्थिति यह है कि जांच का आदेश तभी दिया जा सकता है यदि प्रथम दृष्ट्या कोई अपराध किया जाना पाया जाए या किसी व्यक्ति की संलिप्तता प्रथम दृष्ट्या स्थापित हो लेकिन कानूनी तौर पर यह जांच करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता कि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है या नहीं.’’ टाइटलर को सीबीआई द्वारा क्लीन चिट दिए जाने और मामला बंद करने की रिपोर्ट दायर किए जाने के खिलाफ दंगा पीड़ितों ने निचली अदालत में याचिका दायर की थी जिसपर सुनवाई करते हुए अदालत ने आगे जांच करने का आदेश दिया था. याचिकाकर्ता लखविंदर कौर के वकील एच एस फुलका ने अदालत में कहा था कि कई ऐसी सामग्री हैं जिन्हें एजेंसी ने नजरअंदाज कर दिया और सुनवाई करने वाली अदालत के सामने टाइटलर के खिलाफ सबूत भी थे.
हालांकि सीबीआई ने लखविंदर की याचिका खारिज करने की मांग करते हुए निचली अदालत से कहा था कि जांच में यह स्पष्ट हो गया है कि टाइटलर एक नवंबर 1984 को उत्तर दिल्ली के पुलबंगश गुरुद्वारे में मौजूद नहीं थे, जहां तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों में तीन लोग मारे गए थे. इससे पहले मजिस्ट्रेट की अदालत ने भी दिसंबर 2007 में इस संबंध में सीबीआई की मामला बंद करने की रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार दिया था जिसके बाद पुलबंगश गुरुद्वारे में हुई बादल सिंह, ठाकुर सिंह और गुरचरण सिंह की हत्या के मामले में टाइटलर की कथित भूमिका की जांच फिर से की गई थी.
इसके बाद सीबीआई ने दो अप्रैल 2009 को मामले में टाइटलर के खिलाफ सबूतों के अभाव का दावा करते हुए उन्हें एक बार फिर क्लीन चिट दे दी थी. मजिस्ट्रेट ने 27 अप्रैल 2010 में सीबीआई की मामला बंद करने की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए कहा था कि टाइटलर के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए कोई सबूत नहीं है.