शांति का नोबेल पाने वाले दूसरे भारतीय हैं कैलाश सत्यार्थी
पिछले कई दशकों से भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और अमन के प्रयासों के मद्देनजर ना जाने कितनी पहल की गयी. दुनिया भर में भारत और पाकिस्तान के बीच छायी अशांति की खबरों के बीच इस वर्ष 2014 कानोबेल शांति पुरस्कार पाने वाले दो चेहरे इन्हीं दो देशों से संबद्ध रखते हैं. भारत में […]
पिछले कई दशकों से भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और अमन के प्रयासों के मद्देनजर ना जाने कितनी पहल की गयी. दुनिया भर में भारत और पाकिस्तान के बीच छायी अशांति की खबरों के बीच इस वर्ष 2014 कानोबेल शांति पुरस्कार पाने वाले दो चेहरे इन्हीं दो देशों से संबद्ध रखते हैं. भारत में जन्में 60 वर्षीय कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तानी मूल की मलाला यूसूफजाई को साझा रूप से बुधवार शाम को इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है.
महज 17 साल की छोटी सी उम्र में शांति का नोबेल पुरस्कार पाने वाली मलाला दुनिया की सबसे कम उम्र में यह पुरस्कार पाने वाली शख्स बन गयी हैं. वहीं कैलाश सत्यार्थी भारत में जन्में पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें इतने बडे सम्मान से नवाजा जा रहा है. उन्हें आज नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में नोबेल शांति पुरस्कार दिया जा रहा है.
मलाला के तालिबान में बच्चों और किशोरों पर हुए उत्पीडन के खिलाफ मुहिम और बच्चों के शिक्षा अनिवार्यता को लेकर किए गए संघर्ष को देखते हुए इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है. भारत के कैलाश सत्यार्थी को बच्चों के अधिकार के लिए मुहिम छेडने और ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ जैसे गैर-सरकारी संगठन स्थापित करने के लिए नामांकित किया गया है.
नोबेल पुरस्कार स्वीडेन के अलफ्रेड बर्नाड नोबेल के सम्मान में दिया जाता है. वे एक महान रसायनशास्त्री, इंजीनियर, इनोवेटर और युद्ध सामग्र निर्माता थे. नोबेल पुरस्कार की शुरुआत वर्ष 1895 में की गयी. मुख्य रूप से यह पुरस्कार रसायन, भैतिकी, साहित्य, फिजियोलॉजी और चिकित्सा और शांति स्थापित करने के क्षेत्र में उत्कृष्ठ योगदान के लिए दिया जाता है.
भारत में अबतक चार लोगों को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. इनमें पहले भारतीय रविंद्रनाथ टैगोर को 1913 में साहित्य का, 1930 में सी वी रमन को भैातिकी, 1979 में मदर टेरेसा को शांति के लिए और वर्ष 1998 में अमर्त्य सेन को अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था.
कैलाश सत्यार्थी से पहले मदर टेरेसा को ‘पीड़ितों की मदद’ और ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था.