चेन्नई : भारत के नवीनतम पीढ़ी के अंतरिक्ष यान जीएसएलवी एमके 3 का प्रक्षेपण इसरो ने कर दिया है. आज सुबह चेन्नई के निकट श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसे अंतरिक्ष में भेजा गया.
इस अभियान में ‘क्रू मॉड्यूल एटमॉसफेयरिक रि-एंटरी एक्सपेरीमेंट’ (केयर) भी किया गया.रॉकेट को गुरुवार सुबह 9.30 बजे छोड़ा गया. 630 टन वजनी इस रॉकेट को तरल एवं ठोस ईंधन से ऊर्जा दी गई.
Successful launch of GSLV Mk-III is yet another triumph of brilliance & hardwork of our scientists. Congrats to them for the efforts. @isro
— Narendra Modi (@narendramodi) December 18, 2014
प्रधानमंत्री ने इसके सफल प्रक्षेपण पर इसरों को बधाई दी है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि एक बार फिर हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लायी है. उनकी कठोर मेहनत की वजह से ही भारत ने अंतरिक्ष में एक और ऊंची छलांग लगाई है. मेरी ओर से उन्हें बधाई.
आज सुबह नौ बजकर 30 मिनट पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र की दूसरी प्रक्षेपण पट्टी :लॉन्च पैड: से इसके प्रक्षेपण के ठीक 5.4 मिनट बाद मॉड्यूल 126 किलोमीटर की उंचाई पर जाकर रॉकेट से अलग हो गया और फिर समुद्र तल से लगभग 80 किलोमीटर की उंचाई पर पृथ्वी के वातावरण में पुन: प्रवेश कर गया. यह बहुत तेज गति से नीचे की ओर उतरा और फिर इंदिरा प्वाइंट से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाडी में उतर गया. इंदिरा प्वाइंट अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का दक्षिणतम बिंदू है.
एलवीएम3-एक्स की इस उडान के तहत इसमें सक्रिय एस 200 और एल 110 के प्रणोदक चरण हैं. इसके अलावा एक प्रतिरुपी ईंजन के साथ एक निष्क्रिय सी25 चरण है, जिसमें सीएआरई :क्रू मॉड्यूल एटमॉस्फेरिक री-एंटरी एक्सपेरीमेंट: इसके पेलोड के रुप में साथ गया है. तीन टन से ज्यादा वजन और 2.7 मीटर लंबाई वाले कप-केक के आकार के इस चालक दल मॉड्यूल को आगरा स्थित डीआरडीओ की प्रयोगशाला एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेबलिशमेंट में विशेष तौर पर तैयार किए गए पैराशूटों की मदद से समुद्र में उतारा जाना था. 3.1 मीटर के व्यास वाले इस चालक दल माड्यूल की आंतरिक सतह पर एल्यूमीनियम की मिश्र धातु लगी है और इसमें विभिन्न पैनल एवं तापमान के कारण क्षरण से सुरक्षा करने वाले तंत्र हैं.
इस परीक्षण के तहत देश में बने अब तक के सबसे बडे पैराशूट का भी इस्तेमाल किया गया. 31 मीटर के व्यास वाले इस मुख्य पैराशूट की मदद से ही चालक दल मॉड्यूल ने जल की सतह को सात मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार के साथ छुआ. सफल प्रायोगिक परीक्षण के कुछ ही समय बाद इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने आनंदित स्वर में कहा, ‘‘चार टन वजन की श्रेणी के तहत आने वाले संचार उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने में समर्थ, आधुनिक प्रक्षेपण वाहन के विकास के कारण भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में यह बहुत महत्वपूर्ण दिन है.’’
क्या है उद्देश्य
जीएसएलवी एमके-3 की परिकल्पना और उसकी डिजाइन इसरो को इनसेट-4 श्रेणी के 4,500 से 5,000 किलो वजनी भारी संचार उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की दिशा में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनायेगा. इससे अरबों डॉलर के वाणिज्यिक प्रक्षेपण बाजार में भारत की क्षमता में इजाफा होगा.