हर तरफ सेल्फी के क्रेज ने ऑटोग्राफ को पीछे छोड़ दिया है. वर्ष 2014 के दौरान भारत में सेल्फी शहरी संस्कृति के एक हिस्से के रुप में उभर कर सामने आया है. चाहे नयी केश सज्जा दिखानी हो, सेलिब्रिटी से मुलाकात की खबर देनी हो, दोस्तों के साथ पार्टी या किसी सुंदर जगह की सैर की जानकारी देनी हो, सेल्फी क्लिक करना लाखों लोगों की पसंद बन गया है.
सेल्फी का मतलब खुद की तस्वीर लेना है और फिलहाल यह खुद को अभिव्यक्ति करने का बेहतर माध्यम माना जा रहा है. फिल्म अभिनेता शाहरुख खान जब कोलकाता में अपनी फिल्म ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के प्रचार के लिए सेंट जेवियर्स कॉलेज पहुंचे थे तब किसी ने कागज-कलम निकाल कर उनसे ऑटोग्राफ की मांग नहीं की. इसके बजाय हर कोई मोबाइल फोन उनके चेहरे के पास ले जाकर क्लिक कर रहा था ताकि जल्दी से फेसबुक पर डाला जा सके.
आस्ट्रेलियाई क्रिकेट के दिग्ग्ज खिलाडी रहे शेन वार्न ऑटोग्राफ युग की समाप्ति की घोषणा करने वाले पहले व्यक्तियों में शामिल थे.मई में उन्होंने ट्वीट किया ‘आठ बजे सुबह से पहले, सुबह की सैर के दौरान अब तक लोगों के साथ पांच सेल्फी ली गयी है और इसके साथ मुझे लगता है कि ऑटोग्राफ का युग समाप्त हो गया है.’
ऐसा नहीं है कि सेल्फी का जादू सिर्फ युवाओं और छात्रों पर छाया है बल्कि राजनेताओं, फिल्मी हस्तियों, खिलाडियों, आम लोगों और यहां तक की पोप भी सेल्फी का इस्तेमाल कर रहे हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई बार सेल्फी लिए. वह जब अपनी मां से मिलने गए तो उस वक्त भी उन्होंने सेल्फी लिया. उनकी यह सेल्फी बेहद लोकप्रिय हुईं और बडी संख्या में रि-ट्वीट की गई थी.