Save Soil|World Environment Day|आठ साल (वर्ष 2003-05 और 2011-13 के बीच) तक रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट से मिले चित्र बताते हैं कि भारत की कुल भूमि का 30 फीसदी अपकर्षण के दौर से गुजर रहा है. इस आठ साल के दौरान 293 लाख हेक्टेयर भूमि, जो भारत के कुल भू-भाग का 0.5 फीसदी है, की गुणवत्ता प्रभावित हुई है. वहीं, मरुस्थल में तब्दील हो रही भूमि का आकार वर्ष 2011-13 में 11.6 लाख हेक्टेयर बढ़ कर 826.4 लाख हेक्टेयर हो गया. अलग-अलग राज्यों में कटाव की दर 10 फीसदी से लेकर करीब 69 फीसदी तक है.
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय अंतरिक्ष शोध संगठन (इसरो) की अगुवाई 20 संस्थानों के माध्यम से एक शोध कराया है, जिसमें कहा गया है कि कटाव क्षेत्र में हर साल 18.7 लाख हेक्टेयर भूमि जुड़ता जा रहा है. यह आकार देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.57 फीसदी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि मिट्टी में हो रहे कटाव या अवक्रमण से 36.3 लाख हेक्टेयर भूमि की उत्पादकता कम हो गयी है. 7.4 लाख हेक्टेयर भूमि कटाव के कम गंभीर श्रेणी से गंभीरतम श्रेणी में आ गयी है.
रिपोर्ट के मुताबिक, केरल, असम, मिजोरम, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और अरुणाचल प्रदेश में 10 फीसदी से कम भू-भाग कटाव के दायरे में. वहीं, झारखंड, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात और गोवा ऐसे राज्य हैं, जहां 50 फीसदी से अधिक भूमि कटाव क्षेत्र में आ गये हैं. इसमें झारखंड सबसे ऊपर है.
वर्ष 2003 में वीसी झा और एस कापट ने झारखंड के गढ़वा जिले में भूमि का अध्ययन किया. उन्होंने कहा कि यहां की ऊंची-नीची (असमान) भौगोलिक स्थिति के कारण मिट्टी का तेजी से कटाव हो रहा है. इसकी वजह से उपजाऊ भूमि तो खत्म हो ही रही है, वनस्पतियां भी तेजी से नष्ट हो रही हैं. उन्होंने बताया कि झारखंड के 79 लाख हेक्टेयर कुल भू-भाग में से 23 लाख हेक्टेयर में मिट्टी का कटाव हो रहा है. सामान्य से लेकर तेज कटाव के कारण 30 लाख हेक्टेयर भूमि की गुणवत्ता हर साल कम हो रही है. यानी हर साल कुल भूमि के 40 फीसदी की उर्वरा शक्ति कम हो रही है.
समुद्र तल से 650 से 750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खेतों के अध्ययन के बाद झा और कापट ने कहा कि कृषि योग्य भूमि को बचाने के लिए मिट्टी के कटाव को रोकने के प्रयास बेहद जरूरी हैं. जून, 2013 में एशियन जर्नल सॉयल साइंस में छपी अपनी रिपोर्ट में झा और कापट ने कहा है कि कटाव के कारण खेतों की मिट्टी के पोषक तत्व खत्म हो रहे हैं. खेतों की उर्वरा शक्ति घट रही है और वनस्पतियां नष्ट हो रही हैं.
इससे पहले, वर्ष 2002 में सुंदरियाल और वर्ष 1999 में ध्यानी व त्रिपाठी ने भी अलग-अलग शोध रिपोर्ट में कहा कि दुनिया भर में मिट्टी के कटाव के कारण भूमि का लगातार अपकर्षण (गुणवत्ता में ह्रास) हो रहा है. यानी कृषि योग्य भूमि खत्म होते जा रहे हैं. इससे भी पहले वर्ष 1992 में रवांडा के कोिनग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि नमीवाले क्षेत्रों में बारिश से मिट्टी का कटाव तेजी से हो रहा है.
भारत सरकार के लिए अध्ययन करनेवाले 20 संस्थानों की रिपोर्ट का सार यह है कि भारत में सूखाग्रस्त इलाकों की वजह से संकट बड़ा है. कटाववाले 70 फीसदी भूमि सूखाग्रस्त इलाकों में हैं. धीरे-धीरे यहां की जमीन बंजर होती जा रही है. वैज्ञानिकों का मानना है कि बढ़ती आबादी के कारण कृषि भूमि का अत्यधिक दोहन के साथ-साथ चारागाह, जल संसाधन, वनों का कटाव तेजी से हो रहा है. इसी वजह से यह स्थिति उत्पन्न हुई है.
स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, एक बार मरुस्थल में तब्दील हो चुकी भूमि को 60 साल तक उसके पुराने स्वरूप में नहीं लाया जा सकता. रिपोर्ट बताते हैं कि 24 अरब टन उपजाऊ मिट्टी और 27,000 जीव-जंतुओं की प्रजातियां हर साल नष्ट हो रही हैं.