संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2020 में एक रिपोर्ट जारी की थी जो भारत में प्रसव के दौरान होने वाली मौत पर आधारित थी. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 24000 महिलाओं की मौत गर्भावस्था या प्रसव के दौरान हो जाती है. कुछ साल पीछे जायें तो बेशक यह कहा जा सकता है कि स्थिति सुधरी है, लेकिन 24 हजार महिलाओं की मौत अभी भी बहुत बड़ा आंकड़ा है और इसमें कमी लाने की सख्त जरूरत है. भारत अभी भी विश्व का दूसरा ऐसा देश है जहां प्रसव के दौरान सबसे अधिक मौत होती है.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘ट्रेंड्स इन मैटरनल मोर्टिलिटी’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी. प्रति लाख जीवित जन्मों पर मातृ मृत्यु की गणना की जाती है. वर्ष 2000 में यह 384 था, जो 2020 में घटकर 73 रह गया है. संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य 2030 तक इसे 70 पर लाना है.
अगर भारत की स्थिति पर ध्यान दें तो हम पायेंगे कि सरकार ने सुरक्षित मातृत्व को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के प्रयास किये हैं, जिसकी वजह से सुरक्षित मातृत्व संभव हो पाया है. प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान की शुरुआत से ना सिर्फ महिलाओं को पोषाहार उपलब्ध कराया गया, बल्कि संस्थागत प्रसव को भी काफी बढ़ाया गया, ताकि महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान ना हो.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार पहली तिमाही में प्रसव पूर्व जांच कराने वाली माताएं कुल 70 प्रतिशत है, जिनमें से 75.5 शहरी क्षेत्रों की और 67.9 ग्रामीण इलाके की हैं. जबकि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के अनुसार यह आंकड़ा 58.6 था.
प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत हर महीने की नौ तारीख को हर स्वास्थ्य केंद्र पर गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य जांच होती है. उनका टीकाकरण होता है और साथ ही उनके बीच पोषाहार और दवाओं का वितरण भी किया जाता है. इस अभियान के तहत जोखिम वाले गर्भावस्था की पहचान भी जाती है और उन्हें स्टिकर उपलब्ध कराया जाता है, ताकि उन्हें समय पर डाॅक्टरी सलाह और देखभाल मिले.
गर्भावस्था का रजिस्ट्रेशन कराने के बाद महिलाओं को हर तरह की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है. सुरक्षित डिलीवरी हो इसके लिए उनकी जांच नियमित रूप से की जाती है. पांच हजार रुपये तक इलाज भी कराया जाता है. साथ ही उनके खानपान का खास ख्याल रखा जाता है ताकि महिलाओं में खून की कमी ना हो. प्रसव के बाद भी महिला और उसके बच्चे की देखभाल की जाती है और उन्हें पोषाहार मिले और उनका टीकाकरण सही से हो पाये.
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