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विशेष : ”भारत-रत्न” अटल बिहारी वाजपेयी की 5 सर्वश्रेष्ठ कवितायें

आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक और देश की राजनीति के शलाकापुरुष माने जाने वाले राजनेता एवं कवि श्री अटल बिहारी वाजपेयी का 90वां जन्मदिवस है. कल 24 दिसंबर को केन्द्र की भाजपा नीत नरेन्द्र मोदी सरकार ने अटल जी एवं स्व. मदन मोहन मालवीय को देश […]

आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक और देश की राजनीति के शलाकापुरुष माने जाने वाले राजनेता एवं कवि श्री अटल बिहारी वाजपेयी का 90वां जन्मदिवस है. कल 24 दिसंबर को केन्द्र की भाजपा नीत नरेन्द्र मोदी सरकार ने अटल जी एवं स्व. मदन मोहन मालवीय को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित करने की घोषणा कर दी है.

आज 25 दिसंबर है और आज ही दुनियाभर में क्रिसमस का त्यौहार मनाया जाता है. अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस के इस अवसर पर आज हम आपके सामने उनके कविता संग्रहों में से कुछ ऐसी कवितायें रखने जा रहे हैं, जिनकी रचना कवि अटल बिहारी वाजपेयी ने विभिन्न काल-खंडों में की थी लेकिन ये कवितायें आज भी मानव हृदय को भाव-विभोर कर देने की क्षमता रखती हैं.

1. आओ फिर से दिया जलायें

आओ फिर से दिया जलायें,
भरी दुपहरी में अंधियारा,
सूरज परछाई से हारा,
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगायें.
आओ फिर से दिया जलायें.
हम पड़ाव को समझे मंज़िल,
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल,
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलायें.
आओ फिर से दिया जलायें.
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा,
अपनों के विघ्नों ने घेरा,
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलायें.
आओ फिर से दिया जलायें.
2. टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते,
सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता निरंकुशता से,
अंधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अंतिम अस्त होती है.
दीप निष्ठा का लिये निष्कंप,
वज्र टूटे या उठे भूकंप,
यह बराबर का नहीं है युद्ध,
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध,
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज,
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज,
किन्तु फिर भी जूझने का प्रण,
अंगद ने बढ़ाया चरण,
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार,
समर्पण की माँग अस्वीकार,
दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते,
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते.
3. हिरोशिमा की पीड़ा
किसी रात को
मेरी नींद चानक उचट जाती है,
आँख खुल जाती है
मैं सोचने लगता हूँ कि
जिन वैज्ञानिकों ने अणु अस्त्रों का
आविष्कार किया था,
वे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण
नरसंहार के समाचार सुनकर
रात को कैसे सोए होंगे?
क्या उन्हें एक क्षण के लिए सही
ये अनुभूति नहीं हुई कि
उनके हाथों जो कुछ हुआ
अच्छा नहीं हुआ!
यदि हुई, तो वक़्त उन्हें कटघरे में खड़ा नहीं करेगा
किन्तु यदि नहीं हुई तो इतिहास उन्हें
कभी माफ़ नहीं करेगा!
4. मैं अखिल विश्व का गुरू महान
मैं अखिल विश्व का गुरू महान,
देता विद्या का अमर दान,
मैंने दिखलाया मुक्ति मार्ग,
मैंने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान.
मेरे वेदों का ज्ञान अमर,
मेरे वेदों की ज्योति प्रखर,
मानव के मन का अंधकार,
क्या कभी सामने सका ठहर?
मेरा स्वर नभ में घहर-घहर,
सागर के जल में छहर-छहर,
इस कोने से उस कोने तक,
कर सकता जगती सौरभ भय.
5. गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए तारों से फूटे वासन्ती स्वर,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात,
कोयल की कुहुक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी?
अन्तर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी.
हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ

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