एकतरफा धर्मांतरण कानून लाने की सरकार की नहीं है योजना : वेंकैया
तिरुवनंतपुरम : पुनर्धर्मांतरणों को लेकर विवाद उत्पन्न होने पर धर्मांतरण विरोधी कानून लाने का विचार व्यक्त करने वाली सरकार ने आज स्पष्ट किया कि वह ऐसा कानून एकतरफा तौर पर नहीं लाएगी. केंद्र में संसदीय मामलों के मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने यहां कहा, ‘धर्मांतरण रोधी कानून लाना सरकार की प्राथमिकता नहीं है और सरकार […]
तिरुवनंतपुरम : पुनर्धर्मांतरणों को लेकर विवाद उत्पन्न होने पर धर्मांतरण विरोधी कानून लाने का विचार व्यक्त करने वाली सरकार ने आज स्पष्ट किया कि वह ऐसा कानून एकतरफा तौर पर नहीं लाएगी.
केंद्र में संसदीय मामलों के मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने यहां कहा, ‘धर्मांतरण रोधी कानून लाना सरकार की प्राथमिकता नहीं है और सरकार का एकतरफा तौर पर धर्मांतरण विरोधी कानून लाने का कोई इरादा नहीं है.’ यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार किसी धर्मांतरण विरोधी कानून पर काम कर रही है, उन्होंने नकारात्मक जवाब दिया.
यद्यपि नायडू ने कहा, यदि आमसहमति बनती है और अगर विपक्ष भी सोचता है कि इसकी जरुरत है, तो इस पर विचार किया जा सकता है. नायडू ने कहा कि सरकार की देश के कुछ हिस्सों में चल रहे ‘घर वापसी’ कार्यक्रमों में कोई भूमिका नहीं है. उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन व्यक्तियों द्वारा किया जा रहा है.
उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह नरेंद्र मोदी सरकार के विकास के एजेंडा को पटरी से उतारने के लिए धर्मांतरण का मुद्दा उठा रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस कम्युनिस्टों की सहायता से सरकार के खिलाफ ‘दुष्प्रचार अभियान’ चला रही है.
वेंकैया नायडू ने कहा कि देश में धर्मांतरण वर्षों से चल रहा था. पूरे देश में लाखों लोगों का ‘प्रलोभन और विदेशी धन का इस्तेमाल करके’ धर्मांतरण कर दिया गया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की.
उन्होंने कहा, पुनर्धर्मांतरण पिछले 100 वर्षों से हो रहा है. कांग्रेस के कई नेता स्वामी दयानंद सरस्वती की ओर से शुरु किये गए ‘शुद्धि अभियान’ के प्रमुख लोगों में शामिल थे. उन्होंने कहा, जब मैंने उनकी चिंता के समाधान के लिए एक कानून का सुझाव दिया तो कांग्रेस को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह बचाव में आ गई. उन्होंने बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और भूमि अधिग्रहण सुधार के लिए अध्यादेश का रास्ता अपनाने को उचित ठहराते हुए कहा कि सरकार कांग्रेस पार्टी की नकारात्मक मानसिकता के चलते अध्यादेश का रास्ता अपनाने के लिए बाध्य हुई.