बेंगलूर : भारत अपने 450 करोड़ रपये की लागत वाले मिशन को इस साल मंगल पर भेजने की तैयारी कर रहा है और ऐसे में अंतरिक्ष विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देश का पहला मंगल मिशन ओड़िसी केवल गर्व का विषय नहीं है बल्कि सार्थक अनुसंधान से भी जुड़ा है जिसे लेकर कुछ आलोचनाएं हुई हैं.भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने कुछ लोगों के बीच बनी इस धारणा को भी खारिज कर दिया कि मार्स ऑर्बिटर मिशन प्राथमिक तौर पर एक ‘फील गुड’ पैकेज है.
उन्होंने कहा, ‘‘मंगल की खोज का उद्देश्य केवल गौरव हासिल करना नहीं है बल्कि इसका अपना वैज्ञानिक महत्व है और भविष्य के संभावित आवासीय क्षेत्र की तलाश भी है जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं. हो सकता है कि आज से 20 साल या 30 साल लग जाएं. लेकिन यह संभव है.’’भारत मंगल मिशन को भेजने के मामले में अमेरिका, रुस, यूरोप, जापान और चीन के बाद छठा देश होगा. इसरो के अनुसार, प्राथमिक उद्देश्य मंगल के चारों ओर कक्षाओं में उपग्रह भेजने की भारत की तकनीकी क्षमता प्रदर्शित करने का और उस लाल ग्रह पर जीवन के संकेत खोजने, वहां की तस्वीरें लेने और मंगल के वातावरण का अध्ययन करने के लिहाज से सार्थक प्रयोग करने का है.
अंतरिक्ष विभाग में सचिव पद की भी जिम्मेदारी निभा रहे राधाकृष्णन ने कहा, ‘‘मंगल को लेकर सबसे दिलचस्प प्रश्न क्या है?..जीवन. इसलिए हम मीथेन के बारे में बात करते हैं जो जैविक मूल या भूगर्भीय मूल वाली है. इसलिए हमारे पास एक मीथेन सेंसर और एक तापीय अवरक्त :इंफ्रारेड: स्पेक्टोमीटर है. ये दोनों मिलकर कुछ जानकारी देंगे.’’ भारतीय मंगल मिशन के आलोचकों का सवाल है कि क्या देश इस अंतरिक्ष मिशन की भारी–भरकम लागत का खर्च उठा सकता है. ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी–एक्सएल) के माध्यम से प्रक्षेपित किये जाने वाले मंगल उपग्रह में संक्षिप्त वैज्ञानिक प्रयोग होंगे. मंगल की सतह, वातावरण और वहां के खनिज विज्ञान के अध्ययन के लिए इसमें पांच उपकरण होंगे.नवंबर महीने में धरती की कक्षा छोड़ने के बाद अंतरिक्षयान अपनी खुद की संचालन प्रणाली का इस्तेमाल करते हुए 10 महीने तक गहन अंतरिक्ष में भ्रमण करेगा और सितंबर, 2014 में मंगल तक पहुंचेगा. 1350 किलोग्राम वजनी अंतरिक्षयान को मंगल के चारों ओर 80,000 किलोमीटर लंबी दीर्घ वृत्ताकार कक्षा से 372 किलोमीटर अंदर तक प्रविष्ट कराने की योजना है.
राधाकृष्णन के अनुसार, ‘‘हम अनेक तत्वों जैसे- ड्यूटीरियम-हाइड्रोजन अनुपात आदि के लिए मंगल के वातावरण का अध्ययन करना चाहते हैं. हम अन्य घटकों – न्यूट्रल घटकों का भी अध्ययन करना चाहते हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘कई ऐसी चीजें हैं जो मंगल हमें बताएगा. वैज्ञानिक समुदाय मंगल पर जीवन के बारे में यह सब सोचता है.’’इसरो प्रमुख के अनुसार वैज्ञानिकों ने 18वीं सदी से ही मंगल में रचि लेना शुरु कर दिया था. यह रचि का विषय है.उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम मिशन में सफल होते हैं तो भारत उन देशों के समूहों में शामिल हो जाएगा जिनके पास मंगल पर दृष्टि डालने की क्षमता है. भविष्य में इस तरह के अन्वेषण में निश्चित रुप से अनेक देशों के बीच सामंजस्य होगा.’’ राधाकृष्णन ने कहा कि सफल मंगल मिशन के लिए प्रौद्योगिकी से जुड़ी अनेक चुनौतियों से जूझना है.