नई दिल्ली : मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर बच्चों को समय पर अस्पताल ले जाया जाता और उचित इलाज प्रदान किया जाता तो बिहार में मिड–डे मील त्रासदी में कम बच्चों की मौत होती. रिपोर्ट में साथ ही परोसे जाने वाले खाने के बारे में बच्चों की शिकायतों की अनदेखी करने के लिए स्कूल की प्रधानाध्यापिका को जिम्मेदार ठहराया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि घटना होते ही प्रधानाध्यापिका घटनास्थल से ‘गायब’ हो गई थी और बच्चों को स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाने में मदद करने के लिए बहुत कम लोग थे. स्कूल की प्रधानाध्यापिका के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है.
बिहार के सारण जिले में 16 जुलाई को एक सरकारी स्कूल में मिड–डे मील खाने के बाद 23 बच्चों की मौत हो गई थी. सूत्रों ने बताया कि रिपोर्ट में एक अन्य प्राथमिक विद्यालय के निकट स्कूल के होने के मुद्दे पर भी विचार किया गया.
रिपोर्ट में ऐसा समझा जाता है कि कहा गया है कि स्कूल के कमरे में चावल और आलू की सब्जी खाने के चंद मिनटों के बाद ही बच्चे बीमार पड़ गए थे. उन्होंने उल्टी करनी शुरु कर दी थी और पेट में दर्द से छटपटाने लगे थे.
खाने में जहरीले कीटनाशक की मौजूदगी की पुष्टि करते हुए फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला ने कहा कि दूषित खाने में मोनोक्रोटोफॉस (एक ऑर्गेनोफॉस्फेट कीटनाशक) था. विशेषज्ञों ने कंटेनर में रखे तेल, थाली में बचे खाने और बर्तनों में बचे खाने के नमूनों की जांच के बाद इसकी पुष्टि की थी.
इस बीच, सूत्रों ने बताया कि मानव संसाधन विकास मंत्री एम एम पल्लम राजू की अध्यक्षता में बनाई जाने वाली नई गुणवत्ता निगरानी समिति को अभी अंतिम रुप दिया जाना बाकी है. स्कूल शिक्षा सचिव कल राज्य सचिवों के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग करेंगे जिसमें योजना के कार्यान्वयन की समीक्षा की जाएगी. इसके तहत खासतौर पर बच्चों को परोसे जाने वाले खाने की गुणवत्ता और साफ सुथरे स्थानों पर इसे बनाया जाना सुनिश्चित करने के बारे में कदमों पर विचार किया जाएगा. राजद प्रमुख लालू प्रसाद के 25 जुलाई को यहां राजू से मिलने की उम्मीद है.