राष्ट्रपति चुनाव परिणाम की आधिकारिक घोषणा के पूर्व ही श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे ने अपनी हार स्वीकार कर ली. उनके प्रेस सचिव के अनुसार निवर्तमान राष्ट्रपति ने गैलेरोड स्थित सरकारी आवास (टेंपल ट्री ) खाली कर दिया है.
राष्ट्रपति राजपक्षे पिछले एक दशक से सत्ता पर काबिज थे और उन्होंने वर्षों से चले आ रहे गृह युद्ध को समाप्त कर व्यापक लोकप्रियता हासिल की थी. हालांकि बाद में उनपर और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. जानकारों की माने तो भ्रष्टाचार के आरोपों ने सिंघल समुदाय (खासकर ग्रामीण ) उनके पकड़ को कमजोर किया जिसकी परिणिति उनके पराजय के रूप में हुई. ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि उनके प्रतिद्वंद्वी और विजयी उम्मीदवार मैथ्रिपाला सिरिसेना भी सिंघल समुदाय से हैं.
तमिल एवं अल्पसंख्यक वोटों का प्रभाव
इस बार के चुनाव में दोनों उम्मीदवार बहुसंख्यक सिंघल समुदाय से थे इन सबके बीच सिंघल समुदाय में राजपक्षे की कमजोर होती साख ने तमिल एवं अल्पसंख्यक वोटों को निर्णायक स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया. चुनाव प्रचार के दौरान राजपक्षे ने तमिल लोगों से उनको माफ कर देने की अपील भी की थी हालांकि इस अपील को कोई प्रभाव मतदान के दौरान नहीं दिखा. परिणाम इस बात की पुष्टि करते हैं कि तमिल एवं अल्पसंख्यक लोगों ने उनको वोट नहीं किया.
भारत ने क्या खोया क्या पाया
मोटे तौर पर राजपक्षे के एक दशक के कार्यकाल के दौरान भारत श्रीलंका संबंध भारी तनाव के दौर से गुजरे. इस दौरान एक ओर जहां राजपक्षे ने श्रीलंका के द्वार चीन के लिए खोल दिए वहीं यूपीए -2 के कार्यकाल के दौरान भारत ने जिनेवा में यूएन ह्यूमेन राईट्स काउंसिल में श्रीलंका के खिलाफ लाये गए रेजूलूशन के पक्ष में वोट भी दिया. यह पूरा का पूरा मामला अल्पसंख्यक तमिलों पर कठोर और अमानवीय वार काईम से जुड़ा हुआ था. हालांकि बड़ी ही समझदारी के साथ भारत ने श्रीलंका से इस मुद्दे पर ठोस एवं प्रमाणिक कदम उठाने का आग्रह किया और आशा व्यक्त किया कि यह सब अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार होगा.
हालांकि दिल्ली में नयी सरकार आने के बाद दोनों देशों के संबंधों में नयी गरमाहट और जोश की अनुभूति दिखाई दी. श्रीलंका ने भारत के मछुआरों को रिहा करके और फांसी की सजा माफ करके संबंधों में पुराने विश्वास को बहाल करने की कोशिश की.
मोदी की सरकार ही नहीं मोदी की पार्टी भी श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे के करीब होती देखी गयी. रिपोर्टों के अनुसार भाजपा ने अपने आईटी सेल से कुछ विशेषज्ञों को श्रीलंका रवाना किया ताकि वो भी राजपक्षे के पक्ष में वैसी हीं फिजा बना सकें जैसा उन्होंने भारत में आम चुनाव के दौरान मोदी के पक्ष में किया था. यहां तक कि लोकसभा चुनाव के पहले मोदी को गुड मैन बताने वाले लोकप्रिय अभिनेता सलमान खान ने भी श्रीलंका में चुनाव प्रचार किया.
I spoke to Shri Maithripala Sirisena & congratulated him. I congratulate the people of Sri Lanka on the peaceful & democratic poll process.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 9, 2015
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंकाई चुनाव में राजपक्षे को पटखनी देने वाले मैथ्रिपाला सिरिसेना को उनके विजय पर बधाई दी है और मतदान में भाग लेने के लिए श्रीलंका की जनता का धन्यवाद किया है.
Rajapaksa defeat at polls is not unknown in history. Churchill led Britain to victory in WW II &PVN gave us an econ miracle yet both lost
— Subramanian Swamy (@Swamy39) January 9, 2015
इन सबके बीच मोदी सरकार और राजपक्षे के बीच बड़ी भूमिका निभा रहे सुब्रह्मण्यम स्वामी ने राजपक्षे की पराजय को इतिहास के झरोखे से देखने की कोशिश की.
As a close friend & neighbour, reaffirmed India's continued solidarity & support for Sri Lanka's peace, development & prosperity.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 9, 2015
निश्चित तौर पर राजपक्षे के एक दशक के कार्यकाल के दौरान भारत श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित रहा अब जबकि नयी दिल्ली और कोलंबो दोनों जगहों पर नई सरकारें सत्ता पर काबिज हैं तो दोनों के पास गलतियां करने की गुंजाईश भी कम बची हुई हैं.