पाकिस्तानी शरणार्थियों को ‘स्थायी निवासी’ का दर्जा देने की सिफारिश का विरोध
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा की पार्टियों के साथ-साथ अलगाववादी संगठनों ने भी केंद्र सरकार के ऐसे किसी भी कदम का कडा विरोध किया है जिसके तहत पश्चिम पाकिस्तान से आकर बसे शरणार्थियों को राज्य के ‘‘स्थायी निवासी’’ का दर्जा और वोट देने का अधिकार दिए जाने की तैयारी है.नेशनल कांफ्रेंस ने तो यहां तक धमकी […]
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा की पार्टियों के साथ-साथ अलगाववादी संगठनों ने भी केंद्र सरकार के ऐसे किसी भी कदम का कडा विरोध किया है जिसके तहत पश्चिम पाकिस्तान से आकर बसे शरणार्थियों को राज्य के ‘‘स्थायी निवासी’’ का दर्जा और वोट देने का अधिकार दिए जाने की तैयारी है.नेशनल कांफ्रेंस ने तो यहां तक धमकी दी कि संसद की एक स्थायी समिति की सिफारिश के आधार पर केंद्र ने यदि ऐसा कोई कदम उठाया तो इसके विरोध में आंदोलन किया जाएगा.
नेशनल कांफ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘यदि ऐसा होता है तो हम आंदोलन शुरु करेंगे. हम इसका विरोध करेंगे.’’ अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रंेस के उदारवादी धडे ने भी पश्चिमी पाकिस्तान से आकर जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में बसे शरणार्थियों को जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी का दर्जा देने की सिफारिश का कडा विरोध किया. हुर्रियत ने कहा कि यह राज्य के जनसांख्यिकी से छेडछाड करने की कोशिश है.
यहां एक बैठक के बाद जारी बयान में हुर्रियत ने कहा, ‘‘जमीनी स्तर पर तथ्यों में बदलाव के लिए जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकी से छेडछाड करने की पुरजोर कोशिश नजर आ रही कवायद से हुर्रियत बेहद चिंतित है. इस कवायद का अंतिम लक्ष्य लोगों के आत्म-निर्णय के अधिकार को नुकसान पहुंचाना है.’’ हुर्रियत ने केंद्र सरकार के इस कदम को ‘‘अंतरराष्ट्रीय रुप से विवादित राज्य का जबरन एकीकरण एवं सम्मिलन’’ करार दिया.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकडों के मुताबिक, पश्चिम पाकिस्तान से पलायन करने के बाद करीब 5,764 परिवारों के 47,215 लोग दशकों पहले जम्मू, कठुआ और राजौरी जिलों के विभिन्न इलाकों में बस गए. बहरहाल, जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुसार वे राज्य के स्थायी निवासी नहीं हैं. साल 1971 में बांग्लादेश के गठन से पहले मौजूदा पाकिस्तान को पश्चिम पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था. पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया.