भाजपा को अपने पहले गढ़ दिल्ली में मोदी लहर से ज्यादा किरण लहर पर है भरोसा

राहुल सिंह दिल्ली भाजपा का पहला गढ़ है. इसके पुराने संस्करण जनसंघ का जब पूरे देश में नगण्य जनाधार था और लोकसभा में इसके पास दो-चार सांसद होते थे, तब भी जनसंघ का दिल्ली में मजबूत जनाधार था. दिल्ली के राज्य बनने से बहुत पहले जब उसका शासन नगर निगम के माध्यम से चलता था […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 16, 2015 5:36 PM
राहुल सिंह
दिल्ली भाजपा का पहला गढ़ है. इसके पुराने संस्करण जनसंघ का जब पूरे देश में नगण्य जनाधार था और लोकसभा में इसके पास दो-चार सांसद होते थे, तब भी जनसंघ का दिल्ली में मजबूत जनाधार था. दिल्ली के राज्य बनने से बहुत पहले जब उसका शासन नगर निगम के माध्यम से चलता था तब भी 1967 में वरिष्ठ भाजपा नेता विजय कुमार मल्होत्रा मुख्य कार्यकारी पार्षद होते थे. उस समय इस पद की हैसियत मुख्यमंत्री के बराबर होती थी. ध्यान रहे कि दिल्ली में मुख्यमंत्री का पद 1952 से 1956 तक भी था. फिर जब 1993 में दिल्ली में दोबारा मुख्यमंत्री शासन लागू किया गया तो भारतीय जनता पार्टी के मदन लाल खुराना राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने. खुराना के बाद पार्टी की तरफ से साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री बनाये गये.
प्याज की बढ़ी कीमतों से खिसका जनाधार
वर्मा के कार्यकाल में प्याज की बढ़ी कीमत के कारण भाजपा को मुश्किलों को सामना करना पड़ा और जब तेजी से पार्टी का जनाधार गिरने लगा, तब पार्टी ने युवा चेहरे सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री की जिम्मेवारी सौंपी. लेकिन सुषमा भी दिल्ली में भाजपा की डूबती नैया को 1998 के विधानसभा चुनाव में बचा नहीं सकीं और पार्टी राज्य में विधानसभा चुनाव हार गयी. इसके बाद पार्टी वहां कभी मजबूती से खड़ा नहीं हो सकी.

दिल्ली संवार कर शीला दीक्षित बन गयीं अजेय
शीला दीक्षित ने लगातार तीन चुनावों में भाजपा को पटखनी दी. इसके बाद 2011-12 में हुए अन्ना आंदोलन के गर्भ से जन्मी आम आदमी पार्टी ही कांग्रेस को 2013 के विधानसभा चुनाव में करारी टक्कर दे सकी, जिसका फायदा भाजपा को इस रूप में हुआ कि शीला दीक्षित की अजेय छवि ध्वस्त हो गयी. शीला की यह छवि शानदार प्रशासन और दिल्ली को संवारने के कारण ही बन पायी थी पर, कॉमनवेल्थ गेम के विवाद, दिल्ली दुष्कर्म कांड व यूपीए की खराब होती छवि पर टीम केजरीवाल के तीखे हमले के कारण यह छवि ध्वस्त हो गयी. भाजपा 2013 में सबसे बड़ी पार्टी तो बनी, लेकिन आम आदमी पार्टी उसके सीधे मुकाबले में खड़ी हो गयी. इस तरह अपने मिस्टर क्लीन डॉ हर्षवर्धन का नेतृत्व होने के बाद भी पार्टी एक बार फिर सत्ता से दूर हो गयी. केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से 49 दिनों की सरकार बनायी और फिर नाटकीय अंदाज में कांग्रेस पर काम नहीं करने देने का आरोप लगा कर इस्तीफा भी दे दिया. इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने अपने संगठन कौशल की बदौलत मुहल्ला सभा का गठन किया और पार्टी को मजबूत भी किया.

थम गयी दिल्ली के दिग्गज नेताओं की परंपरा
ऐसे में विजय कुमार मल्होत्रा, मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा से लेकर भाजपा के पितृ पुरुष लालकृष्ण आडवाणी तक की मजबूत और समृद्ध परंपरा वाली दिल्ली भाजपा में अपने सांगठनिक ढांचे के अंदर गढ़े-तैयार किये गये किसी नेता की बदौलत दिल्ली की जंग जीत लेने का आत्मविश्वास जाता रहा. अब, जबकि उसके पास नरेंद्र मोदी जैसा करिश्माई नेतृत्व और अमित शाह जैसा कुशल संगठनकर्ता है. ऐसे में भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचानी जाने वाली देश की पहली आइपीएस अधिकारी किरण बेदी को पार्टी में शामिल किया है. अमित शाह व अरुण जेटली की टिप्पणियों से लगता है कि भाजपा का आत्मविश्वास बेदी के आने से पहले कमजोर था और अब उनकी छवि का लाभ पार्टी को होगा और दिल्ली के जंग में बेदी के सहारे ही वह पार पा सकती है. भाजपा के मजबूत सांगठनिक ढांचे पर किरण बेदी का मजबूत व्यक्तित्व भारी पड़ रहा है.

सांकेतिक स्वीकारोक्ति और केजरीवाल की चुटकी
शायद भाजपा के इस संशय व सांकेतिक स्वीकारोक्ति को ध्यान में रख कर ही अरविंद केजरीवाल ने पहले किरण बेदी का स्वागत तो किया, लेकिन बाद में यह कह कर चुटकी भी ले ली कि इससे यह साफ हो गया कि भाजपा के पास उनके खिलाफ लड़ने वाला शख्स नहीं है, इसलिए उनकी टीम के शख्स को अपने खेमे में कर भाजपा उनके खिलाफ चुनावी जंग में कूदी है.

मोदी के साथ बैनर-पोस्टर पर छायीं बेदी
दिलचस्प यह कि महज 24 घंटे के अंदर किरण बेदी की तसवीर को नरेंद्र मोदी के साथ बैनर-पोस्टर पर अहम जगह दे दी गयी. इन बैनर-पोस्टरों में पहले से ही हाशिये पर चले दिल्ली प्रदेश भाजपा के दूसरे नेता, अब इन नये संकेतों से स्वत: पार्टी की प्रदेश की राजनीति का केंद्र बिंदु बनने की कोशिशों से किनारे लग गये हैं या हाशिये पर ही अपने लिए सुरक्षित जगह को पक्की करने की जुगत लगा ली है. किरण बेदी के भाजपा में शामिल होने के दौरान उपस्थित होकर डॉ हर्षवर्धन ने, उनके नेतृत्व को स्वीकार कर लिया है और उनके अलावा विजय गोयल औरजगदीश मुखी जैसे पुराने भाजपाई नेताओं ने पुष्प गुच्छ से बेदी का स्वागत कर यह संकेत तो दे ही दिया है कि बेदी अगर दिल्ली के मुखिया पद की दावेदार होंगी तो उन्हें इनलोगों का साथ मिलेगा. ऐसे में अब दिल्ली भाजपा में किरण बेदी को छोड़ किसी और की बात करना एक तरह से बेमानी है.

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