भारत के साथ समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में निकट सहयोग चाहता है जापान
नयी दिल्ली: जापान ने आज भारत के साथ समुद्री सुरक्षा क्षेत्र में मजबूत सहयोग संबंध स्थापित करने पर बल देते हुए कहा कि दोनों देशों को इस क्षेत्र में ‘‘मुक्त और स्थिर सागर क्षेत्र’’ सुनिश्चित करने के लिए ‘‘ सक्रिय तौर पर अपनी जिम्मेदारियां’’ निभानी चाहिए. जापान की यह टिप्पणी दक्षिण चीन सागर में प्रभुत्व […]
नयी दिल्ली: जापान ने आज भारत के साथ समुद्री सुरक्षा क्षेत्र में मजबूत सहयोग संबंध स्थापित करने पर बल देते हुए कहा कि दोनों देशों को इस क्षेत्र में ‘‘मुक्त और स्थिर सागर क्षेत्र’’ सुनिश्चित करने के लिए ‘‘ सक्रिय तौर पर अपनी जिम्मेदारियां’’ निभानी चाहिए. जापान की यह टिप्पणी दक्षिण चीन सागर में प्रभुत्व दिखाने की चीन की बढती कोशिशों के संदर्भ में देखी जा रही है.
भारत यात्रा पर आए जापान के विदेश मंत्री फुमियो किशिदा ने आज यहां कहा कि भारत और जापान को अपनी विशेष भागीदारी के तहत समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त रुप से कार्य करना चाहिए. किशिदा ने कहा कि हिंद महासागर से लेकर दक्षिण चीन सागर और प्रशांत सागर तक फैले क्षेत्र में इन दोनों देशों के भारी हित जुडे हैं.
राजधानी में वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद (आईसीडब्ल्यूए) में एक व्याख्यान में जापानी विदेश मंत्री ने दक्षिण चीन क्षेत्र में विवाद को लेकर चीन पर परोक्ष रुप से तंज कसते हुए जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे द्वारा रखे गए ‘‘समुद्र संबंधी कानून के तीन सिद्धांतों का’’ उल्लेख किया जिसमें किसी प्रकार के दावे के लिए ‘बल या धौंस’ के प्रयोग की वर्जना भी शामिल है.
किशिदा ने कहा, ‘‘ जापान और भारत समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में आपसी सहयोग से बढा रहे हैं. इसके लिए, रक्षा अधिकारियों के बीच समुद्री अभ्यास के साथ साथ दोनों देशों तटरक्षक संगठनों के बीच बातचीत और संयुक्त अभ्यास किए जा रहे हैं. हमारे बीच इस सहयोग को और बढाना महत्वपूर्ण है.’’ किशिदा ने कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. जापान में प्रधानमंत्री एबे की चुनाव में दोबारा ऐतिहासिक जीत के बाद किशिदा पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना है.
जापान के राजनयिक सूत्रों ने कहा कि जापान चाहता है कि भारत एशिया प्रशांत क्षेत्र में केंद्रीय भूमिका निभाए. उन्होंने यह बात जापान के इर्दगिर्द समुद्र और हवाई क्षेत्र में चीन की गतिविधियां बढने के संदर्भ में कहीं. आरोप है कि चीन खासकर सेनकाकू द्वीप समूह में समुद्री सीमा का अतिक्रमण कर रहा है.
किशिदा ने कहा कि जापान और भारत एशिया में सबसे सफल लोकतांत्रिक और खुली व्यवस्था वाले देश हैं. उन्होंने कहा कि भारत और जापान समुद्री सीमा वाले देश हैं और दोनों के हित समुद्री मार्गों की सुरक्षा से जुडे हैं. इसी संदर्भ में उन्होंने हिंद.प्रशांत महासागर क्षेत्र में भारत और जापान के नेतृत्व को महत्वपूर्ण बताया.
किशिदा ने आर्थिक वृद्धि का एक वैश्विक ‘अड्डा’ बनने में भारत की दिल खोलकर मदद करने का वादा करते हुए दक्षेस देशों के बीच एक उर्जा नेटवर्क बनाने का आज प्रस्ताव किया ताकि इस क्षेत्र में व्यापार एवं निवेश की अच्छूती संभावनाओं का पूर्ण दोहन किया जा सके.
भारत-जापान रक्षा सहयोग के बारे में उन्होंने समुद्री सुरक्षा अभ्यास का जिक्र किया और कहा कि जल.थल दोनों जगह से उडाने भरने और उतरने में समर्थ यूएस-2 विमान पर बातचीत चल रही है और दोनों पक्ष मिलकर इसका संयुक्त उत्पादन कर सकते हैं. ‘‘दोनों देश रक्षा उपकरण के क्षेत्र में भी सहयोग पर बातचीत कर रहे हैं.
भारत के साथ जापान के संबंधों को ‘खास’ बताते हुए जापान के विदेश मंत्री किशिदा ने कहा कि दोनों देशों के संबंधों से भारत.प्रशांत क्षेत्र वैश्विक समृद्धि का एक शक्ति स्नेत बन सकता है. उन्होंने दक्षिण चीन सागर में विवादों को लेकर चीन में परोक्ष रुप से तंज भी कसा.
बाद में यह पूछे जाने पर कि अरणाचल प्रदेश की स्थिति को लेकर चीन के रख के चलते क्या जापान अरणाचल प्रदेश में ढांचागत परियोजनाओं में शामिल नहीं होगा, उन्होंने कहा कि यद्यपि उनकी सरकार पूर्वोत्तर में संपर्क सुविधाओं में सुधार देखना चाहती है, लेकिन उस राज्य को किसी तरह की मदद उपलब्ध कराने की योजना नहीं है.
किशिदा ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘ आप खास तौर पर पूर्वोत्तर भारत में अरणाचल प्रदेश की ओर इशारा कर रहे हैं जोकि भारत का क्षेत्र है और जो चीन के साथ विवाद में फंसा है. फिलहाल मेरी समझ से इस राज्य को कोई सहायता उपलब्ध कराने की जापान की कोई योजना नहीं है.’’ उन्होंने कहा कि जापान इस क्षेत्र में संपर्क बढाने और इसे दक्षेस क्षेत्र व आसियान देशों के साथ जोडने के लिए ‘जबरदस्त’ योगदान उपलब्ध कराने को तैयार है.
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि जापान ‘मेक इन इंडिया’ पहल में योगदान करेगा ताकि भारत को भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए और अंतत: विश्व के लिए आर्थिक वृद्धि का केंद्र बनाने में सहयोग मिल सके. उन्होंने कहा कि समुद्री और जमीनी रास्तों , दोनों के जरिए दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच संपर्क बढाना क्षेत्र की भारी आर्थिक संभावनाओं के दोहन के लिए आवश्यक है. ‘‘ जापान का इरादा दक्षेस क्षेत्र के भीतर उर्जा नेटवर्क के निर्माण में सहयोग करने का है.’’