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अध्यादेश पर सरकार के शीर्ष मंत्रियों ने किया विमर्श, पर कहा – सबसे ज्यादा अध्यादेश तो कांग्रेस वालों ने लाया
नयी दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा ‘अध्यादेश का रास्ता’ अपनाए जाने पर आपत्ति जताए जाने के दूसरे दिन वरिष्ठ मंत्रियों ने आज बैठक करके इस बात पर विचार किया कि हाल में जारी अध्यादेशों को अगले महीने शुरू हो रहे बजट सत्र में कैसे विधायी कार्रवाई से कानून में बदला जाए. संसदीय कार्य मंत्री […]
नयी दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा ‘अध्यादेश का रास्ता’ अपनाए जाने पर आपत्ति जताए जाने के दूसरे दिन वरिष्ठ मंत्रियों ने आज बैठक करके इस बात पर विचार किया कि हाल में जारी अध्यादेशों को अगले महीने शुरू हो रहे बजट सत्र में कैसे विधायी कार्रवाई से कानून में बदला जाए. संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू की ओर से बुलाई गयी इस बैठक में केंद्रीय मंत्रियों में राजनाथ सिंह, अरुण जेटली और छह अन्य ने इस बारे में विचार किया कि कोयला जैसे क्षेत्रों से जुड़े कुछ अध्यादेशों से संबंधित विधेयक अगर संसद से पारित नहीं करवाए जा सके तो उसके क्या परिणाम होंगे.
मोदी सरकार कम से कम आठ अध्यादेश जारी कर चुकी है, जिनमें बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआइ) की सीमा 26 से बढा कर 49 प्रतिशत करने वाला और कोयला खदानों की ई-निलामी से जुड़ा अध्यादेश भी शामिल है. यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रपति ने एक दिन पहले ही ‘अध्यादेश का रास्ता’ अपनाए जाने के प्रति सरकार को आगाह किया है.
बैठक में अध्यादेशों को विधेयकों से बदलने और संसद के बजट सत्र में उन विधेयकों को पारित कराने के उपायों पर विचार-विमर्श किया गया. यह सत्र फरवरी के तीसरे सप्ताह से शुरू होने की उम्मीद है.
इसमें इस पहलू पर विचार किया गया कि इनमें से कुछ अध्यादेश के बदले लाए जाने वाले विधेयकों को अगर संसद में समर्थन नहीं मिला तो उसके क्या नतीजे होंगे. उदाहरण के तौर पर अगर कोयला संबंधी अध्यादेश को विधेयक में बदल कर पारित नहीं कराया जा सका तो कोयला खानों की निलामी में बाधा आ जाएगी.
नायडू ने बताया कि इस बैठक में लगभग नौ मंत्री अपने सचिवों के साथ उपस्थित हुए और अध्यादेशों को बदलने के लिए लंबित विधेयकों को संसद से पारित कराने के बारे में विचार-विमर्श हुआ. इन विधेयकों में बीमा विधेयक, कोयला विधेयक, खनन विधेयक, भूमि अधिग्रहण विधेयक और नागरिकता संशोधन विधेयक शामिल हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘हमने इन विधेयकों के बारे में विस्तार से चर्चा की. मैंने उन्हें बताया कि क्या प्रक्रिया अपनानी होगी. पूर्व के उदाहरणों को भी सामने रखा और इनके बारे में पहले से ही नोटिस देने और दोनों भाषाओं में इनके अनुवाद मौजूद होने तथा इनकी प्रतियां सांसदों को वितरित करने की जरूरत के संबंध में बताया.’’ नायडू ने कहा कि इस बैठक में उन्होंने इन विधेयकों को पारित कराने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया और सचिवों से कहा कि वे अगले महीने की पहली तारीख तक इस संबंध में पूरी तैयारी कर लें.
बैठक में अन्य मंत्रियों में पीयूष गोयल, राव वीरेंद्र सिंह, राधा मोहन सिंह, राधा कृष्णन सिंह, नरेंद्र सिंह तोमर, सदानंद गौड़ा और उनके मंत्रलयों से जुड़े सभी वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए.
नियम के अनुसार किसी अध्यादेश को संसद सत्र शुरू होने के 42 दिन के भीतर विधेयक के जरिए कानून में बदला जाना जरूरी है अन्यथा वह निरस्त हो जाएगा और एक अध्यादेश केवल तीन बार पुन जारी किया जा सकता है.
अध्यादेश जारी करने का बचाव करते हुए संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि इन्हें देश हित में जारी किया गया क्योंकि निवेश के लिए वातावरण बनाने की जरूरत थी. उन्होंने कहा, सरकार अध्यादेशों को विधेयक में बदलने के संवैधानिक प्रावधानों से परिचित है और इनमें से कुछ विधेयक लोकसभा में पहले ही पारित हो चुके हैं और वे राज्यसभा में लंबित हैं.
विपक्ष पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि उसके बाधाकारी आचरण के चलते राज्यसभा में कार्य नहीं हो सका और वहां विधेयक लंबित हैं. नायडू ने कहा कि सरकार सदन में किसी भी विषय पर चर्चा के लिए तैयार है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि वे आधारहीन मुद्दों पर उच्च सदन को नहीं चलने दे रहे हैं.
विपक्ष से उन्होंने आग्रह किया वह जनादेश का सम्मान करे. उन्होंने कहा, ‘‘ 30 साल के बाद स्पष्ट जनादेश मिलने के कारण लोकसभा व्यापक चर्चा के बाद कई विधेयक पारित करने में सफल रही. ऐसे में यह राज्यसभा जहां राजग अल्पमत में है का कर्तव्य है कि वह विषयों पर चर्चा करे, जबकि विपक्ष सदन की कार्यवाही को बाधित कर रहा है. इस स्थिति के कारण ही अध्यादेश जारी करने पड़े.’’ अध्यादेश जारी करने संबंधी कांग्रेस की आलोचनाओं पर पलटवार करते हुए नायडू ने कहा कि पिछले 62 साल में, खासकर कांग्रेस शासन के दौरान 637 अध्यादेश जारी किए गए, यानी हर साल औसतन 11 अध्यादेश. उन्होंने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में 70, इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 77, राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते 35 और पीवी नरसिंह राव के शासन में 77 अध्यादेश जारी हुए.
वाम दलों को भी आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने कहा कि माकपा समर्थित संयुक्त मोर्चा सरकार ने 1996 से 1998 के अपने कार्यकाल में केवल 61 विधेयक पारित किए जबकि अध्यादेश 77 जारी किए. उन्होंने कहा कि अब वही दल हमारी सरकार द्वारा अध्यादेश जारी करने के खिलाफ संसद को ठप्प करने की धमकी दे रहे हैं.
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