बेंगलूर: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पाया है कि मनरेगा में खर्च तो हो रहा है, लेकिन कोई टिकाउ संपत्ति नहीं बन रही है. यही वजह है कि कर्नाटक में ऐसे परिवारों की संख्या में तेज गिरावट आई है जो मनरेगा स्कीम के तहत रोजगार मांग रहे हैं.
आज विधानसभा में पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2009.10 में मनरेगा के तहत रोजगार मांगने वाले परिवारों की संख्या 36.26 लाख थी जो 2011.12 में घटकर 16.64 लाख रह गई.
रिपोर्ट के मुताबिक, 2007.07 से 2011.12 के दौरान अनुसूचित जनजातियों की हिस्सेदारी 19 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशत रह गई, जबकि अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत से घटकर 16 प्रतिशत रह गई.