झारखंड- बिहार के युवाओं पर भी हुआ सर्वे, 31 फीसद तनाव में कई के साथ हुआ भेदभाव
कोरोना वायरस महामारी से अपने परिवार की वित्तीय स्थिति प्रभावित होने को लेकर बीते कुछ महीनों में लगभग 31 प्रतिशत किशोरों ने भारी तनाव का सामना किया . झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार और ओडिशा के 7,300 से अधिक किशोरों पर किये गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है. coronavirus and economy
कोरोना वायरस महामारी से अपने परिवार की वित्तीय स्थिति प्रभावित होने को लेकर बीते कुछ महीनों में लगभग 31 प्रतिशत किशोरों ने भारी तनाव का सामना किया . झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार और ओडिशा के 7,300 से अधिक किशोरों पर किये गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है. गैर सरकारी संगठन ”सेंटर फॉर कैटेलाइजिंग चेंज” द्वारा अप्रैल, जुलाई और अगस्त में दो चरणों में किये गए इस सर्वेक्षण का शीर्षक ”किशोरों का क्या कहना है? कोविड-19 और इसके प्रभाव” था.
क्या है इस सर्वेक्षण में
सर्वेक्षण में कहा गया है 7,324 किशोरों में से 31 प्रतिशत ने स्वीकार किया है कि वे अपने परिवार की वित्तीय स्थिति पर महामारी के प्रभाव को लेकर भारी तनाव का सामना कर रहे हैं. सर्वे में यह भी पता चला है कि इन महीनों के दौरान महामारी के चलते किशोरियों को भारी लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ा.
ऑनलाइन क्लास की स्थिति
सर्वेक्षण के अनुसार, ”जिन किशोरियों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया, उनमें केवल 12 प्रतिशत के पास ही ऑनलाइन कक्षाओं के लिये खुद का मोबाइल फोन था जबकि उनके मुकाबले ऐसे किशोरों की संख्या 35 प्रतिशत थी.” सर्वेक्षण में कहा गया है, ”इसके अलावा, सर्वेक्षण में शामिल 51 प्रतिशत किशोरियों के पास जरूरी पुस्तकों का अभाव था.
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इससे पता चलता है कि महामारी ने किस तरह लड़कियों की शिक्षा को प्रभावित किया.” सर्वेक्षण के अनुसार 39 प्रतिशत लड़कियों ने घरेलू कामकाज में हाथ बंटाया जबकि ऐसे लड़कों की संख्या 35 प्रतिशत रही. इसके अलावा सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि इस दौरान लड़कियों के बाहर आने-जाने में भी कमी आई.
सर्वेक्षण में लड़कियों की स्थिति
इस दौरान केवल 39 प्रतिशत लड़कियों को अकेले घर से बाहर निकलने की अनुमति दी गई जबकि उनके मुकाबले लड़कों की संख्या 62 प्रतिशत रही. सर्वेक्षण में कहा गया है, ”इस दौरान, केवल 36 प्रतिशत किशोरों को हेल्पलाइन नंबरों के बारे में सही जानकारी थी जबकि इन हेल्पलाइनों को इस्तेमाल करने को लेकर उनमें जागरुकता की कमी थी.
केवल 18 प्रतिशत को ही पता था कि घरेलू हिंसा की जानकारी देने के लिये हेल्पलाइन नंबरों का इस्तेमाल किया जा सकता है. केवल 22 से 23 प्रतिशत ही यह जानते थे कि बाल श्रम और बच्चों की तस्करी की जानकारी देने के लिये भी इन हेल्पलाइन नंबरों का इस्तेमाल किया जा सकता है
Posted By – Pankaj Kumar Pathak