आजादी के 65 साल भी शिक्षा अहम चुनौती

नयी दिल्ली: आजादी के बाद पिछले 65 वर्ष में देश की आबादी साढे तीन गुणा बढ़कर 1.20 अरब हो गई लेकिन बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के करीब सात लाख पद रिक्त है, शिक्षण आधारभूत संरचना की कमी है और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है तथा सर्व शिक्षा अभियान पर हर साल 27 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 4, 2013 6:28 PM

नयी दिल्ली: आजादी के बाद पिछले 65 वर्ष में देश की आबादी साढे तीन गुणा बढ़कर 1.20 अरब हो गई लेकिन बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के करीब सात लाख पद रिक्त है, शिक्षण आधारभूत संरचना की कमी है और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है तथा सर्व शिक्षा अभियान पर हर साल 27 हजार करोड़ खर्च करने के बावजूद 80 लाख बच्चे अभी भी स्कूलों के दायरे से बाहर है.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश में अभी भी शिक्षकों के 6. 96 लाख रिक्त पदों में आधे से अधिक बिहार एवं उत्तरप्रदेश में है. देश में शिक्षकों के कुल रिक्त पदों में बिहार और उत्तरप्रदेश का हिस्सा 52.29 प्रतिशत है.

उच्च शिक्षा में सुधार से जुड़े कई विधेयक काफी समय से लंबित है और संसद में यह पारित नहीं हो पा रहे हैं. उच्च शिक्षा सुधार पर सुझाव देने के लिए गठित समिति के सदस्य रहे प्रो. यशपाल ने ‘भाषा’ से कहा कि उच्च शिक्षा में सुधार पर सुझाव देने के लिए गठित समिति ने जून 2009 में 94 पन्नों की उच्च शिक्षा पुनर्गठन एवं पुनरुद्धार रिपोर्ट पेश कर दी. लेकिन कई वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है और कोई खास प्रगति नहीं हुई है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देश के समक्ष बड़ी चुनौती बनी हुई है.

हाल ही में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को देश के समक्ष बड़ी चुनौती करार दिया था. मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री शशि थरुर ने संसद में शिक्षा सुधार से जुड़े विधेयक लंबित रहने पर चिंता व्यक्त की है और संसद के मानसून सत्र में पारित होने की उम्मीद जतायी हैआजादी के छह दशक से अधिक समय गुजरने के बावजूद देश में स्कूली शिक्षा की स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश भर में प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर शिक्षकों के तीन लाख पद रिक्त हैं.

शिक्षाविदों के अनुसार, आजादी के समय साल 1947 में 17 विश्वविद्यालय और 695 कालेज थे जो 2011.12 में बढ़कर करीब 700 विश्वविद्यालय और 33 हजार कालेज तक जा पहुंचे लेकिन इस अवधि में देश की आबादी 34.5 करोड़ से बढ़कर 1 अरब 20 करोड़ हो गया. इतनी बड़ी आबादी में बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना एवं शिक्षण संस्थाओं की व्यवस्था बड़ी चुनौती है.

सरकार ने 2020 तक शत प्रतिशत साक्षरता और सकल नामांकन दर को वर्तमान 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. वहीं, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में शिक्षकों के 2.05 लाख पद रिक्त हैं,

जबकि छह से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करने की पहल के तहत बिहार में शिक्षकों के 1,90,337 पद मंजूर किये गए हैं. राज्य में अभी भी 49.14 प्रतिशत स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं हैं उत्तरप्रदेश में शिक्षकों के 1.59 लाख पद रिक्त है जबकि शिक्षा का अधिकार प्रदान करने की पहल के तहत 3,94,960 पद मंजूर किये गए. राज्य में 81.07 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जहां लड़के और लड़कियों के लिए अलग शौचालय की सुविधा उपलब्ध है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में शिक्षकों के 61,623 पद रिक्त हैं, जबकि झारखंड में 38422, मध्यप्रदेश में 79110, महाराष्ट्र में 26704, गुजरात में 27258 शिक्षक पद रिक्त हैं. शिक्षा का अधिकार प्रदान करने की पहल के तहत पश्चिम बंगाल में शिक्षकों के 264155 पद, झारखंड में 69066 पद, मध्यप्रदेश में 186210 पद, गुजरात में 175196 पद मंजूर किये गए.सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के मार्ग में शिक्षकों की कमी के आड़े आने पर संसद की स्थायी समिति ने भी गंभीर चिंता व्यक्त की है.

शिक्षा के अधिकार के तहत स्कूली आधारभूत संरचना में शौचालयों का विकास महत्वपूर्ण मापदंड बताये गए हैं. पश्चिम बंगाल में करीब 45 प्रतिशत स्कूल में लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग शौचालय नहीं है जबकि असम में 47 प्रतिशत, दिल्ली में 2 प्रतिशत, हरियाणा में 12 प्रतिशत, कर्नाटक में 2 प्रतिशत स्कूल, ओडिशा में करीब 50 प्रतिशत, राजस्थान में 24 प्रतिशत, तमिलनाडु में 34 प्रतिशत स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है.

मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश के 33 प्रतिशत स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है. करीब छह प्रतिशत स्कूलों में ही पेयजल सुविधा है.

शिक्षा के अधिकार कानून के तहत यह व्यवस्था बनायी गई है कि केवल उन लोगों की शिक्षकों के रुप में नियुक्ति की जायेगी जो शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण होते हैं. शिक्षक पात्रता परीक्षा जून 2011 में बैठने वालों में केवल 7.59 प्रतिशत पास हुए जबकि जनवरी 2012 में 6.43 प्रतिशत और नवंबर 2012 में 0.45 प्रतिशत उत्तीर्ण हुए.

गौरतलब है कि देशभर में सरकार, स्थानीय निकाय एवं सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों के 45 लाख पद हैं. शिक्षा का अधिकार कानून के तहत 2012.13 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत 19.82 लाख पद मंजूर किये गए हैं और 31 दिसंबर 2012 तक 12.86 लाख पद भरे गए.

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